साहित्यकारों ने अपना-अपना कुनबा बना लिया : डॉ. उषा किरण खां

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Punya smaran ceremony at College of Commerce, Arts and Science

पटना। इन दिनों सभी साहित्यकारों ने अपना-अपना कुनबा बना लिया है। आज के समय कोई एक साथ नहीं चल रहा है। यह वक़्त है साहित्य के लिए कुछ करने का, अगर आज इसके लिए नहीं सोचा जाएगा तो साहित्य को खत्म होने में समय नहीं लगेगा। उक्त बातें वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. उषा किरण खान ने शनिवार को कॉलेज ऑफ कॉमर्स, आर्ट्स एंड सायंस के हिंदी सभागार में आयोजित डा० सीताराम दीन-डॉ० उषा रानी सिंह के पुण्य स्मरण में कहीं।
डॉ. उषा किरण विश्विद्यालय प्रशासन से थोड़ी नाराज़ भी दिखीं। उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि एक ही दिन एक ही विश्विद्यालय में एक तरह के दो कार्यक्रम होना, इससे दिक्कत होती है। साहित्य को साथ मे न होने के कारण यह स्थिति देखने को मिलती है।
ज्ञात रहे आज ही ए.एन. कॉलेज में पुस्तकालय सभागार में लेख़क नीलांशु रंजन का नवीन उपन्यास ‘खामोश लम्हों का सफर’ का विमोचन ममता कालिया जी के हाथों हुआ।
डॉ० सीताराम दीन- डॉ० उषा रानी सिंह पुण्य स्मरण में उनकी बेटी मंगला रानी (हिंदी विभाग अध्य्क्ष, कॉलेज ऑफ कॉमर्स) ने कहा माँ ने मुझे समझाया था ‘स’ हित से साहित्य होता है। माँ की तरह मैं भी सबको साथ लेकर चलना पसन्द करती हूँ।
मौके पर मौजूद बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्य्क्ष अनिल सुलभ ने डॉ० सीताराम दीन के याद में कहा सीताराम में कबीरवादी कई झलक मिलती है। आज का साहित्य तो प्रपंचो से भरी पड़ी है।
सीताराम दिन के बेटे प्रभात रंजन दिन (सम्पादक चौथी दुनिया) ने कहा बिहारी होने के कारण उनकी माँ को वह पहचान नहीं मिल सका, जिस पहचान की वह काबिल थी।
मौके पर लघुकथा के भीष्म पितामह डॉ० सतीश राज पुष्करणा, डॉ० ध्रुव गुप्त, शांति जैन इत्यादि मौजूद थे।
इस मौके पर 30 युवा कवियों ने अपना कविता पाठ किया।

Book release of Nilanshu Ranjan at AN College

वहीं दूसरी ओर ए. एन. कॉलेज के पुस्तकालय सभागार में वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार नीलांशु रंजन की नाविन उपन्यास ‘खामोश लम्हो का सफर’ का लोकार्पण महशूर लेखिका ममता कालिया ने किया। इस मौके पर ‘हिंदी कथा साहित्य: स्त्री-पुरुष सम्बन्धो के विविध आयाम’ पर परिचर्चा हुई। इस मौके पर नीलांशु रंजन के इस उपन्यास पर एक फ़ीचर फ़िल्म बनने की भी घोषणा हुई। मुंबई से आए फ़िल्म निर्माता राहुल रंजन ने कहा कि इस उपन्यास में फ़िल्म बनने के सारे तत्व मौजूद है और यह एक बेहतरीन प्रेम कथा है।

swatva

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