पटना: वसंत पंचमी का दिन विद्या की अधिष्ठात्री सरस्वती मां के वंदन व पूजन का दिवस है। जिस विद्या से सदाचार व विनयशीलता आ जाए, वही सच्ची विद्या है। हमारे ऋषियों ने ‘सा विद्या या विमुक्तये’ का सूत्र दिया है, जिसका अर्थ ही है— जो हमें बंधनों से मुक्त करे, वही विद्या है। उक्त बातें बिहार सांस्कृतिक विद्यापीठ परिसर में बुधवार को आयोजित वसंत पंचमी के मुख्य कार्यक्रम में संस्था के कुलपति सह अध्यक्ष स्वामी केशवानंद जी ने कहीं। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति में विभिन्न गुणों के लिए एक भगवान की अवधारणा है, यानी गुणों का मानवीकरण किया गया है।
उन्होंने कहा कि माता सरस्वती को शुभ्रता कहा गया यानी एकदम श्वेत, उसमें लेशमात्र का भी दाग नहीं। सरस्वती मां को ‘श्वेत पद्मासना’ भी कहा गया है, जिसका अर्थ है— सफेद कमल पर विराजित। कमल कीचड़ में खिलता है, लेकिन उसका पुष्प हर प्रकार की गंदगी से मुक्त होता है। यहां तक कि उसके पुष्प पर पानी भी नहीं ठहर सकता। कमल के समान ही हमें हर प्रकार की गंदगी से मुक्त रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि बिहार सांस्कृतिक विद्यापीठ शिक्षा का केंद्र है, इसे और भी विस्तार दिया जाएगा।
इस अवसर पर बिहार सरकार के मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बिहार सांस्कृतिक विद्यापीठ में आकर मां सरस्वती की आरती की एवं प्रसाद ग्रहण किया। पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस राजेंद्र प्रसाद ने ‘अहं ब्रह्मोस्मि’ के सूत्र का सरलीकरण करते हुए कहा कि हर व्यक्ति के अंदर वही ब्रह्म व्याप्त है। प्रख्यात न्यूरोसर्जन डॉ. रवि भूषण शर्मा ने कहा कि विद्या की देवी की अराधना हम अपनी वैचारिक समृद्धि के लिए करें। श्रीराम कर्मभूमि न्यास के अध्यक्ष कृष्णकांत ओझा ने कहा कि इस विद्यापीठ में युगानुकुल शिक्षा की व्यवस्था होगी, तभी रामराज्य की संकल्पना साकार होगी। इससे पूर्व बिहार सांस्कृतिक विद्यापीठ के सचिव महंथ कमल नारायण दास ने स्तृति वंदना से प्रबोधन कार्यक्रम का शुभारंभ किया। विद्यापीठ के उपसचिव डॉ. सुरेंद्र राय, महंथ गजेंद्र दास आदि ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। इस अवसर पर जानीमानी चिकित्सक पद्मश्री डॉ. शांति राय, गिरिजा शंकर प्रसाद, श्याम नंदन प्रसाद, रामविनोद प्रसाद, सत्यपाल श्रेष्ठ समेत सैकड़ों की संख्या में विद्यार्थी, बुद्धिजीवी व स्थानीय नागरिक उपस्थित थे।