देश के विभिन्न हिस्सों में नागरिकता कानून, एनपीआर और एनआरसी को लेकर धरना प्रदर्शन जारी है। राजनीतिक पार्टियां सत्तापक्ष पर आरोप लगा रही है कि केंद्र सरकार इन सभी चीजों को लागू कर देश में तुष्टिकरण का माहौल बनाना चाहती है। र्केद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है। लेकिन, कुछ राज्यों में भाजपा क्षेत्रियों पार्टियों के साथ गठबंधन है। तथा गठबंधन की सरकार चला रही है।
बिहार में एनआरसी लागू किए जाने को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार साफ़ कह चुके हैं कि बिहार में एनआरसी लागू नहीं होगा। नागरिकता कानून को लेकर तत्कालीन भाजपा के अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह वैशाली में जागरूकता सभा को सम्बोधित कर रहे थे। सम्बोधन के दौरान वे एनआरसी पर चुप्पी साधे रहे और एक बार भी एनआरसी का ज़िक्र नहीं किये। लेकिन, नीतीश कैबिनेट में बीजेपी कोटे के मंत्री कृष्ण कुमार ऋषि का कहना है कि बिहार में एनआरसी लागू किया जाएगा। मंत्री कहते हैं कि मैं सीमांचल इलाके से आता हूँ , इसलिए मुझे पता है कि बिहार में एनआरसी की कितनी आवश्यकता है।
आखिर बिहार में क्यों ज़रूरी है एनआरसी
पूर्वोत्तर के सात राज्यों से लेकर बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में धर्माधारित जनसांख्किी का गहन अध्ययन करने वाले विधान परिषद के पूर्व सदस्य हरेंद्र प्रताप का मानना है कि असम जैसी स्थिति बंगाल, बिहार, और उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में भी हो गई है। लेकिन, इस मुद्दे पर सभी मौन साधे बैठे हैं। देर होने पर स्थिति नियंत्रण से बाहर होगी। इस विकट संकट के परिप्रेक्ष्य में एनआरसी एक सामाधान के रूप में सामने आया है।
राजनेताओं ने मीडिया के एक वर्ग के साथ मिलकर देश मेें एक ऐसा चित्र बनाया कि असम में होनेवाली हिंसा, वहां के स्थानीय बोडो जमात तथा मुसलमानों के बीच का मामला है। जबकि सच्चाई है कि यह संघर्ष बंगलादेशी मुसलमान घुसपैठिये तथा असम की जनता के बीच का है। राष्ट्रद्रोही राजनेताओं के कारण पीडित हिंदुओं को अपने देश में ही निर्वासित जैसी जिंदगी जीने को मजबूर होना पड़ा है। असम जैसी स्थिति पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों की भी हो गयी है। इसके बावजूद इस मामले पर कोई कुछ नहीं बोल रहा हैै।
बिहार के पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज व अररिया जिलों के हालात बहुत खराब हैं। इन जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की अवैध बस्तियां धड़ल्ले से बसी हुई हैं। उन अवैध बस्तियों में अवैध धंधेबाजों व अपराधियों के अड्डे बने हुए है। बिहार के इन जिलों से देश विरोधी व आतंकी गतिविधियां संचालित होती रही हैं। दलितों के साथ अत्याचार के भी मामले सामने आते रहे हैं। लेकिन, तुष्टीकरण की राजनीति में इन अवैध घुसपैठियों पर कार्रवाई की बात गुम हो जाती रही है। जनगणना रिपोर्ट साक्षी है कि अवैध घुसपैठियों के कारण इन जिलों की जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
बिहार के 9 विधानसभा क्षेत्रों में हिंदू मतदाता अल्पसंख्यक हैं
कटिहार, अररिया, किशनगंज और पूर्णिया जिले के नौ विधानसभा क्षेत्रों में हिंदू मतदाता अल्पसंख्यक हो गए हैं। अररिया जिले के जोकीहाट में मुसलिम मतदाताओं की सख्या 67.47 प्रतिशत है। अररिया विधानसभा क्षेत्र में 58.97, किशनगंज के बहादुरगंज में 59.19, ठाकुरगंज में 62.68, कोचाधामन में 74.21, पूर्णिया के अमौर में 74.30, बायसी में 69.05, बलरामपुर में 65.10 प्रतिशत तक मुसलिम मतदाताओं की संख्या पहुंच चुकी है। यह स्थिति पिछले 25 वर्षों में हुई है। वहीं पूर्वी व उत्तर बिहार के 10 विधानसभा क्षेत्रों में हिंदू और मुसलिम मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर हो गयी है। वहीं करीब 30 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुसलिम मतदाताओं की संख्या कुल मतदाताओं की संख्या के 20 प्रतिशत से ऊपर है। ऐसी स्थिति घुसपैठियों के कारण हुई है।
बांग्लादेशी घुसपैठिए सरकारी भूमि पर कब्जा कर बैठे हैं
बंगलादेश से आने वाले घुसपैठिए मजदूर बहुत कम पारिश्रमिक में ही काम करते थे। इसलिए भारतीय ठेकेदार बांग्लादेशी घुसपैठियों को ही काम देने लगे। इसके कारण हिंदू मजदूर बेकार होने लगे। बंगलादेशी घुसपैठिए सरकारी भूमि पर बसने लगे। धीरे-धीरे उनकी स्थिति मजबूत होने लगी। असम के ‘उल्फा’ आतंकी संगठन में भी बंगलादेशी घुसपैठियों की संख्या अधिक थी। असम के कोकराझार और आसपास के जिलों में दो साल पहले हुई हिंसा में कम से कम 77 लोग मारे गए थे और कई लापता हो गए थे। बोडो आदिवासियों के गांव दुरामारी में ही पक्की सड़क की दूसरी तरफ रहने वाले बोडो-कचारी आदिवासियों के एक बड़े वर्ग में रोष इस बात को लेकर है कि अपनी ही जमीन पर वो अल्पसंख्यक होते जा रहे हैं। लेकिन, कई ऐसे भी हैं, जो अब इस राजनीति से उकता गए हैं और चाहते हैं कि कोई उनके गांवों के विकास की भी बात करे।