शांत हो गया महिला उद्यमिता का स्वर

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संजीव कुमार : बिहार की गिनती भारत के बीमारू राज्यों में होती है। बिहार में वह सारी बीमारियां हैं जो एक अविकसित राज्यों में होती है। जिस राज्य में महिलाएं सड़कों पर नहीं दिखती थी उस राज्य में महिलाओं को उद्यमिता का सपना दिखाना एक दूर की कौड़ी थी। लेकिन पुष्पा चोपड़ा ने महिलाओं का यह सपना बिहार में साकार करके दिखाया। न स्वयं एक सफल उद्यमी बनीं बल्कि कई महिलाओं को उद्यमी बनने के लिए प्रेरित किया। उद्यमिता की राह पर उन्हें चलना सिखाया। जब महिलाओं के पैर लड़खड़ाने लगते थे तो एक हाथ सहारा देने के लिए सदैव तत्पर था। और वह हाथ था, पुष्पा चोपड़ा का। उन्होंने इंदु अग्रवाल सरीखे महिलाओं के साथ मिलकर बिहार की महिलाओं के लिए मंच उपलब्ध कराया। महिला उद्यमियों के हक के लिए सदैव स्वर दिया और उनके सपने को साकार कर महिलाओं की प्रेरणास्रोत बनीं।

स्वर्गीय पुष्पा चोपड़ा का जन्म बिहार के प्रतिष्ठित डालमिया परिवार में 1943 ई. को हुआ। 1961 में शादी के बाद आपने समाजसेवा का मार्ग चुना। आपके प्रेरणास्रोत पूज्य पिता स्वर्गीय गौरीशंकर डालमिया थे। महिलाओं के भाग्य को संवारने का सपना लेकर साठ के दशक से पुष्पा चोपड़ा सदैव सक्रिय रही। 1965 में अपने परिवार की विधवा भाभी की दोबारा शादी कराकर उन्होंने समाज और परिवार से लोहा लेने का काम शुरू किया। 1979 में उन्होंने चोपड़ा उद्योग प्रारंभ किया। चोपड़ा उद्योग शुरु करने का उद्देश्य हैंडीक्राफ्ट के माध्यम से गांव के महिलाओं को उद्यमिता सिखाना था। समाज की अंतिम पंक्ति की लड़कियांे, जिन्हें सामान्य भाषा में अनाथ कहा जाता है उनकी शादी के लिए आप सदैव तत्पर रहती थीं। जब भी विपदा की घड़ी आती थी तो आप बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती थी। बाढ़ के समय राहत हो या ब्लड डोनेशन कैंप अथवा नेत्र चिकित्सा शिविर सबमें आपने बढ-चढ़कर सहभागिता की ।दहेज, तलाक और स्त्री भू्रण हत्या ने दबे पांव जब समाज को कुचलना शुरू किया तो आपने नारा दिया कि ‘जब बेटियां नहीं जलती तो बहुंए क्यों जलती हैं?’ 1983 में आपने तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हाॅल में आयोजित कराया। इस सेमिनार को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह, केंद्रीय मंत्री पार्वती गुप्ता सरीखे लोगों ने संबोधित किया था। महिलाओं के मुद्दे को स्वर देने के लिए आपने अखिल भारतीय महिला मारवाड़ी संघ प्रारंभ किया। 14 राज्यों में 450 शाखाओं के द्वारा महिलाओं को न सिर्फ आंदोलन के लिए बल्कि समर्पण के लिए भी प्रेरित किया।

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महिलाओं के साथ लंबे समय तक काम करने के बाद आपको महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन की आवश्यकता महसूस हुई और आपने पूरे देश में यह स्वर मुखरित किया कि ‘नारी को सुरक्षित नहीं स्वरक्षित होना है।’ 1995 में इस उद्देश्य के साथ आपने बिहार महिला उद्योग संघ की स्थापना की जिसके माध्यम से लघु एवं सूक्ष्म महिला उद्यमियों को प्रेरित किया। आपने सदैव ग्रामीण हर जरूरतमंद महिला उद्यमियों के पांच दशकों तक मदद की। आज बिहार के हैंडीक्राफ्ट कहीं नजर आते हैं तो उसका एक मात्र कारण पुष्पा चोपड़ा हैं।

पुरूष वर्चस्व वाले बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के कई दायित्वों का आपने सफलतापूर्वक निर्वहन किया। 1991 से 1996 तक आप एक्जक्यूटिव मेंबर, 1996 से 1998 तक कोषाध्यक्ष और 2004 से 2006 तक बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के उपाध्यक्ष का दायित्व आपने निर्वहन किया। समाज सेवा के दुरूह रास्ते पर चलते हुए भी आपने राज्य सरकार के कई संस्थानों का सफलतापूर्वक मार्गदर्शन किया। बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन द्वारा आपको 1994 मंे  कुशलता सम्मान प्रदान किया गया। अमरीकन बायोग्राफिकल इंस्टीट्यूट द्वारा ‘वुमन आॅफ दि ईयर’ का सम्मान भी आपको 2000 ई. में प्रदान किया गया। ग्रामीण व्यवसाय एवं महिला उद्यमिता के लिए आपको हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा 2009 में जानकी देवी बजाज पुरस्कार प्रदान किया गया। ऐसे सैंकड़ों पुरस्कार से आपको सम्मानित किया गया। पुष्पा जी दधिचि देहदान से भी जुड़ीं थी। महिला और ग्रामीण उद्यमिता को स्वर देने वाली पुष्पा जी 27 अप्रैल को लंबी बीमारी के बाद शांत हो गईं। बिहार चेंबर आॅफ काॅमर्स में 1 मई, 2018 को पुष्पा चोपड़ा की श्रद्धांजलि सभा में दूर-दराज से कई महिलाएं आईं थी और इस सभा में एक ही संकल्प उठा- ‘महिलाओं के स्वर को लगातार मुखरित करेंगे और पुष्पा जी ने जो मशाल जलाई है उसे आगे बढ़ायेंगे।’

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