…ताकि शेष न रहे पितृदोष

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बृहत पराशर होरा शास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली में 14 प्रकार के शापित योग हो सकते हैं। इनमें पितृदोष, मातृदोष, भ्रातृदोष, मातुलदोष, प्रेतदोष आदि को प्रमुख माना गया है। इन दोषों के कारण व्यक्ति को स्वास्थ्य हानि, आर्थिक संकट, व्यवसाय में रुकावट एवं संतान संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। पितृ दोष प्रत्येक कुंडली में अलग-अलग तरह के नुकसान करने वाले हो सकते हैं। इसकी जानकारी कुंडली के गहन अध्ययन के बाद ही होती है। पितृदोष के निवारण और उपचार के लिए कुंडली में सबसे पहले यह पता लगाना होता है कि किन ग्रहों के कारण यह दोष बन रहा है। उन ग्रहों की पहचान करके उससे संबंधित उपाय करने से पितृदोष के बुरे प्रभावों को कम किया जा सकता है।

सूर्य, मंगल और गुरु का प्रभाव

कुंडली में मुख्यतः तीन ग्रहों के चलते पितृदोष बनता है। ये ग्रह हैं-सूर्य, मंगल और गुरु। जब ये तीनों ग्रह भाव विशेष में पाप ग्रहों के साथ होते, उनके मध्य होते हैं, या उनके द्वारा देखे जाते हैं, कुंडली में पितृदोष बनता है। पाप ग्रह से मतलब राहु, केतु और शनि से है। हालांकि सूर्य और मंगल भी पाप और क्रूर ग्रह माने गए हैं। लेकिन, दोनों मित्र ग्रह होने के चलते इनका पापत्व खत्म हो जाता है। इसे राहु, सूर्य, मंगल और बृहस्तपति की विभिन्न भावों में स्थिति से कुंडली में पितृदोष के प्रभाव का पता लगाया जा सकता है।
कुंडली में सूर्य से पुरुष, चन्द्रमा से स्त्री या माता, मंगल से भाई, गुरु से बड़े परिजनों और शुक्र से पत्नी संबंधित पितृदोषों के असर पहचाने जाते हैं। यदि सूर्य पाप ग्रह से युक्त हो या पाप कर्तरी योग में हो अर्थात पाप ग्रह के मध्य हो अथवा सूर्य से सप्तम भाव में पाप ग्रह हो तो उसका पिता असामयिक मृत्यु प्राप्त करता है। यह पितृ दोष का एक कारण है। सूर्य के लिए पाप ग्रह केवल शनि, राहु और केतु हैं, इसलिए सूर्य के साथ शनि, राहु और केतु हो तो पितृ दोष लगता है या पितृ ऋण चढ़ जाता है। यही पितृ दोष की पहचान भी है। सूर्यश्च पाप मध्यगतः सूर्य, यदि शनि, राहु और केतु के बीच में हो अर्थात् पूर्व ओर राहु, केतु, शनि हो तो इससे पितृदोष आ जाता है।

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प्रारब्ध से दोष का जुड़ाव

चूंकि सूर्य, आत्मा एवं पिता का कारक है अतः पूर्व जन्म में अपने पिता (अर्थात् पितृध्पूर्वज) को किसी भी तरह से संतुष्ट नहीं करने के कारण यह दोष चढ़ता है। पिता की हत्या कर देना। अपने कार्य से पिता को संतुष्ट और खुश न रखना। पिता की अच्छी तरह से सेवा न करना। विपरीत प्रतिष्ठा के कारण पिता की प्रतिष्ठा, मान-सम्मान में कमी करना। वह पाप-अपराध, जिसका प्रायश्चित बड़ी मुश्किल से हो या न हो आदि। उपरोक्त कार्यों से मनुष्य पर पितृ ऋण का दोष आ जाता है। चूंकि जन्मकुंडली, मनुष्य के प्रारब्ध का दर्पण है, अतः कुंडली देखने से जब सूर्य ग्रह, पाप ग्रहों से युक्त होता है तो यह समझा जाता है कि मनुष्य पूर्व जन्म के पितृ दोष से मुक्त नहीं हो पाया है।

(सर्वभूत)

प्रतिदिन के उपाय

  • हर रोज आधे घंटे के लिए खिड़की जरूर खोलें, इससे कमरे से नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकल जाएगी और साथ ही सूरज की रोशनी के साथ घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश हो जाएगा।
  • घर में अधिक कबाड़ एकत्रित ना होने दें। शाम के समय एक बार पूरे घर की लाइट जरूर जलाएं। सुबह-शाम सामूहिक आरती करें।
  • गाय की सेवा कीजिए। चिड़ियों को बाजरे के दाने डालिए। कौवों के लिए रोटी डालिए।
  • प्रतिदिन तुलसी जी की सेवा कीजिए, पीपल के वृक्ष पर मध्याह्न में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल व काले तिल चढ़ाएं। संध्या समय में दीप जलाएं।
  • नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें। ब्राह्मण को भोजन कराएं।
  • सुंदर कांड, गीता और आदित्य हृदय स्रोत का पाठ भी पितृदोष में शांति देता है। सरसों के तेल का दीपक जलाकर, प्रतिदिन सर्पसूक्त एवं नवनाग स्तोत्र का पाठ करें।

 

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