भगवान राम इस धरा पर अवतार लेकर आए। युवा होने के साथ जब वे पहली बार अयोध्या से कहीं बाहर निकले तो सीधे बक्सर पहुंचे। महर्षि विश्वामित्र के साथ उनके जीवन की पहली यात्रा थी। धर्म की स्थापना एवं यज्ञ संपन्न कराने हेतु जिस ज्ञान और धनुर्विद्या की आवश्यकता थी। वह ज्ञान विश्वामित्र जी से प्राप्त हुआ। तब यहां चैत्ररथ वन हुआ करता था। शास्त्र बताते हैं यहां चरित्र निर्माण होता था। यहां आकर श्रीराम, भगवान राम के रूप में जगत विख्यात हुए। विश्वामित्र मुनि ने उन्हें धनुष और ऐसा तूणीर प्रदान किया जिसके बाण कभी समाप्त नहीं होते। शास्त्र बताते हैं यह वह भूमि है जहां तप करने के बाद ही देव अथवा मानव को देवत्व प्राप्त होता है। भगवान अपने जन्म स्थान को एक बार पुनः जगत प्रकाशित करने के लिए महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के निमित्त बनकर यहां आए। वामनाश्रम, सिद्धाश्रम, बक्सर, चरित्रवन बक्सर धाम आकर मारीच, सुबाहू, ताड़का आदि का विनाश कर विश्वामित्र जैसे अनेक तपरू संतों को निर्भय कर गौतम नारी अहिल्या को कृतार्थ किया। देव भूमि, करुष क्षेत्र की गरिमा को जगत में सर्वोत्तम स्थापित करने हेतु, भगवान श्रीराम करुष देश स्थित तत्तत अहिरौली, नदांव, भभुअर, छोटका नुआंव व चरित्रवन में पंचकोश परिक्रमा का पालन करते हुए पुरातन करुष देश स्थित बक्सर की महिमा को पुनरू स्थापित किए। आज भी वैदिक, पौराणिक, ऐतिहासिक बक्सर की गरिमा जगत विख्यात है। यहां गुरुकुल की शिक्षा प्राप्त कर भगवान श्रीराम जगत में अतुलनीय, विज्ञ, वेदज्ञ और शास्त्रज्ञ बने। इसी की बदौलत विदेह राजा की प्रतिज्ञा को पूर्ण कर भूमिजा सीता को पत्नी रूप में वरण किए तथा गृहस्थ आश्रम की गरिमा को गौरवान्वित किए। यही वह बक्सर है जहां साधना और स्वाध्याय के कारण भगवान श्रीराम परशुराम जी जैसे महाप्रतापी वीर के प्रभाव को निस्तेज किए। यहां से ज्ञान प्राप्त करने के उपरांत ही श्रीराम जगत विख्यात, विश्व विजयी लंकेश रावण और उसके बहुतेरे वीरों के संहार किए। बक्सर के तप पुंज के सुंगध से सुगंधित होकर भगवान श्रीराम ने ग्यारह हजार वर्षों तक राज किया। अर्थात भगवान श्रीराम को युग पुरुष बनाने का पूरा श्रेय बक्सर को जाता है। महान संत लक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामी जी कहते हैं कि भगवान विष्णु का इस सिद्ध क्षेत्र से बहुत लगाव है। इसलिए यहां बार-बार आए। उन्होंने पहली बार मानव रूप धारण किया तो इसी सिद्धाश्रम में वामन के रूप में अवतरित हुए। उन्हीं के चरण से मोक्ष दायिनी गंगा का जन्म हुआ। राजा बलि से दान स्वरूप भूमि लेने के क्रम में जब उन्होंने पहला पग बढ़ाया तो सीधे ब्रह्मलोक तक नाप दिया। उसी समय ब्रह््माजी ने प्रभु चरण को धोकर अपने कमंडल में रख लिया। तब गंगा का नाम विष्णुपाद्योद्दकी पड़ा। अर्थात सिद्धाश्रम वर्तमान समय का बक्सर भगवान विष्णु को काफी प्रिय है। जीयर स्वामी जी कहते हैं गोसाईं जी ने रामचरित मानस में लिखा है-विश्वामित्र महामुनि ज्ञानी, बसहीं विपिन शुभ आश्रम जानी। अर्थात बक्सर की भूमि महान तीर्थस्थल है। भारतीय अध्यात्म में बक्सर का स्थान अतुलनीय बताया गया है। वराह पुराण में लिखा गया है-
सत्यं-सत्यं पुनरू सत्यं भुजमुत्थाय चोच्यते।
सिद्धाश्रमसमं तीर्थ न भूतं न भविष्यति।।
मार्कण्डेय पुराण, भविष्य पुराण, वाल्मीकि रामायण, महाभारत आदि ग्रंथों में बक्सर का वेदगर्भापुरी के नाम से विस्तृत विवरण मिलता है। धर्मशास्त्र के अनुसार यहां वेद की अनेक ऋचाएं लिखी गई हैं। जीयर स्वामी जी बताते हैं पूज्य गुरुदेव त्रिदण्डी स्वामी ने बक्सर महात्म्य पुस्तक लिखी है, जिसमें अनेक उदाहरण मिलते हैं। यहां भगवान विष्णु ने स्वयं तप कर सिद्धियां प्राप्त की हैं। नारद पुराण, विष्णु पुराण, मार्कण्डेय पुराण, वामन पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण के क्रमशः 4, 23, 9, 16वें एवं श्रीमद्भागवत गीता के 8, 18, 56वें श्लोक में बक्सर के स्वर्णिम इतिहास को कहने वाली गाथाएं मौजूद हैं।
त्रैलोक्य पृथिवि धन्या मन्या पुण्यवती सती, तत्र भारत वर्ष च कर्मणा फलदं शुभम।
धन्यं यशस्यं पूज्य च पुण्यक्षेत्रे च भारते।, सिद्धाश्रमं महापुण्यक्षेत्रं मोक्षप्रदं शुभम।।
अर्थात तीनों लोक में पृथ्वी और पुण्यवती सती धन्य हैं। इस पृथ्वी पर भारत वर्ष धन्य है, जहां शुभ कर्मों का फल मिलता है। पुण्य भूमि भारत वर्ष में बक्सर (सिद्धाश्रम) धन्य है जहां मोक्ष प्राप्त होता है। यहां मनु-सतरुपा, ब्रह्मा जी, भूत भावन शंकर जी, इन्द्र आदि देवगण ने तप कर देवत्व को प्राप्त किया है। इस भूमि ने 84 हजार ऋषियों को तपस्या करने का मौका दिया है। आज भी इस क्षेत्र में संत, महात्मा तप करते हैं और जगत उद्धार करते हैं। हाल के संतो में महान संत त्रिदण्डी स्वामी जी, मामा जी उसी श्रेणी के संत हुए हैं। करुष क्षेत्र का मतलब है पश्चिम में काशी, पूरब में सोन नद, उत्तर में गंगा एवं दक्षिण में विंध्य पर्वत।
भगवान श्रीराम को भी मिली है ब्रह्म दोष से मुक्ति
बक्सर के नया बाजार में सीताराम विवाह आश्रम है। इसकी स्थापना करने वाले महान संत श्रीमननारायण दास भक्तमाली उपाख्य मामा जी के शिष्य राजाराम शरण दास जी महाराज बताते हैं। मामा जी कहते थे भगवान राम लंका विजय के बाद पुन: बक्सर आए। उन्हें रावण के वध के बाद ब्रह्म हत्या का दोष लगा। गुरु वशिष्ठ आदि ऋषियों के परामर्श के बाद वे बक्सर आए। यहां आकर रामरेखा घाट पर उन्होंने गंगा स्नान के उपरांत रामेश्वर मंदिर में पूजा अर्चना की। जब किशोर अवस्था में भगवान राम यहां आए थे। तभी रामेश्वर मंदिर की स्थापना की थी। यहां तप और पूजन से उन्हें उस दोष के प्रभाव से मुक्ति प्राप्त हुई। जब किशोर अवस्था में भगवान राम यहां आए थे। उसी समय पंचकोश यात्रा हुई थी, जिसका वर्णन वराह पुराण के अध्याय 147 श्लोक 49 व 52 में मिलता है। यह परंपरा आज भी विद्यमान है। यहां पंचकोश का मेला लगता है। अंतिम दिन लिट्टी-चोखा का मेला लगता है। इस मेले ने बिहार को अलग पहचान दी। आज भी अगहन माह के कृष्ण पक्ष की नौमी तिथि को बक्सर में लिट्टी-चोखा का मेला लगता है। और भीड़ अपने राम को याद करती हुई युग युगांतर से चली आ रही इस परंपरा का श्रद्धा के साथ निर्वहन करते हैं। लोग बक्सर के पांच कोस के दायरे में बसे पांच गांवों (गौतम ऋषि-अहिरौली, नारदमुनि -नदांव, भार्गव ऋषि-भभुअर, उद्वालक ऋषि-नुआंव, विश्वामित्र -चरित्रवन) में स्थित पांच आश्रमों की परिक्रमा करते हैं। ठीक उसी तरह जैसे कभी उनके राम ने किया था। पांच दिनों की इस यात्रा में लोग हर एक रात ऋषि आश्रमों में प्रवास करते हैं और वही बना के खाते हैं जो कभी उनके राम ने खाया था। बक्सर वाले अपने राम को आज भी उसी लगन से, उसी श्रद्धा से याद करते हैं। पूजते हैं। उन्हें नहीं मालूम कि दुनिया के लिए राम क्या हैं। वे बस इतना ही जानते हैं की राम ही उनके सबकुछ हैं। उनके जीवन का आधार। इतना ही नहीं भगवान का विवाह भी यहां उत्सव के रूप में मनाया जाता है। जिसके नाम पर यहां सीता-राम विवाह आश्रम स्थित है। यहां प्रति वर्ष मार्ग शीर्ष महीने में उसी तिथि को विवाह उत्सव मनाया जाता है। जिस तिथि को शास्त्रों में उनके विवाह का वर्णन मिलता है।
अविनाश उपाध्याय