‘सत्यमेव जयते’: यानी मसाला फिल्मों की जय हो

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Satyameva jayate

‘गब्बर इज बैक’ याद है? तीन साल पहले अक्षय कुमार अभिनीत इस मसालेदार एक्शन फिल्म में गब्बर भ्रष्ट सरकारी कर्मियों को सजा देता था। आज रिलीज हुई जॉन अब्राहम अभिनीत ‘सत्यमेव जयते’ में भी यही कथा है, बस पात्र व घटनाएं अलग हैं। मूल बात दोनों में यही है कि भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कानून तोड़कर भ्रष्टाचारियों को मार दो। मिलाप जावेरी के निर्देशन में बनी इस फिल्म में वे सारे मसाले हैं, जो किसी सामान्य बॉलीवुड (हिंदी सिनेमा नहीं) फिल्म में होते हैं। धूम—धड़ाका वाला एक्शन, वजनदार डायलॉग, खून—खराबा, भाग—दौड़, उपदेशात्मक संवाद, नाच—गाने यानी सबकुछ है।

a scene from film Satyameva Jayate

वीर (जॉन) ने भ्रष्ट पुलिसवालों को मारकर महकमे की नींद उड़ा देता है। अपने बॉस के आदेश पर डीसीपी शिवांश (मनोज बाजपेयी) वीर को काबू करने में लगता है। फिर शुरू होती इनके बीच की जंग और इसी समय से कहानी एक मोड़ लेती है। अंत वैसे ही होता है, जैसे एक्शन से भरपूर मिथुन, सुनील शेट्टी, अक्षय कुमार, अजय देवगन या फिर स्वयं जॉन की अन्य मसाला फिल्मों का होता है।
मद्रास कैफे व परमाणु जैसी फिल्मों के माध्यम से जॉन ने स्थापित किया कि वे महज मॉडल से एक फिल्म स्टार नहीं है, बल्कि सिनेमाई समझ रखने वाले कलाकार हैं। लेकिन, ठहरे तो वे एक फिल्मी हीरो। उसमें भी एक्शन स्टार। जैसे फोर्स टाइप की फिल्मों में करते आए हैं। मजबूत मसल्स, लार्जर दैन लाइफ एक्शन, पंचेज़ और भी बहुत कुछ। मिलाप ने दिमाग लगा दिया। मारधाड़ व एक्शन के लिए जॉन और धारदार संवाद के लिए मनोज को ले लिया। एक कर्मिशियल व एक कलात्मक। स्कूल, कॉलेजों में पढ़ते—बढ़ते हुए हम ऐस दर्जनों फिल्में देख चुके हैं।
‘सत्यमेव जयते’ शीर्षक तो भारी—भरकम है। लेकिन, फिल्म की कहानी और प्रस्तुति औसत है। नयापन का अभाव है। मिलाप ने इससे पहले ‘मस्तीजादे’ बनाई थी। उसी कैजुअल अंदाज में ‘सत्यमेव जयते’ भी परोस दिया। वैसे वह चंद सफल फिल्मों के लिए पटकथा—संवाद लिख चुके हैं। इसका असर रहा कि इस फिल्म में ताली बटोरने वाले कुछ संवाद हैं।
मनोज के अलावा और किसी का अभिनय याद रखने लायक नहीं है। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर रिलीज हुई देशभक्ति वाले शीर्षक एवं भ्रष्टाचार जैसे ज्वलंत समस्याओं के साथ यह ध्यान तो खींचने में सफल हो गई। इसमें कोई दो राय नहीं है। स्वच्छ भारत अभियान व 56 इंच का सीना की भी झलक मिलती है। मतलब देश की वर्तमान परस्थितियां से लेकर देशभक्ति के भाव तक को भुनाने के प्रयास किया गया है। यही इसकी एकमात्र विशेषता है।

swatva

(प्रशांत रंजन)

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  1. गब्बर इज़ बैक से प्रेरित
    और जॉन अब्राहम पुनर्मुशिको भव

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