बिहारशरीफ/नालंदा : लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार में सियासत का ऊंट गजब हिचकोले खा रहा है। खासकर महागठबंधन की राजनीति तो कुछ और ही संकेत दे रही है। एक तरफ जहां महागठबंधन के बड़े दलों—राजद और कांग्रेस के नेता चुनाव प्रचार में अभी तक एक दूसरे से दूरी बनाए हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ जीतनराम मांझी महागठबंधन के सबसे मिलनसार नेता बनकर उभरे हुए हैं। अब तक कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की जितनी भी चुनावी सभाएं बिहार में हुईं हैं, उनमें से किसी में भी राजद नेता तेजस्वी यादव ने उनके साथ मंच शेयर नहीं किया है। वहीं, जीतनराम मांझी महागठबंधन तो छोड़िए, एनडीए के नेताओं के घर भी पहुंच जा रहे हैं। साफ है कि यह स्थिति महागठबंधन की एकता पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगा रही है।
मामला तब और उलझता प्रतीत हुआ जब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व महागठबंधन के नेता जीतनराम मांझी नालंदा में एनडीए के एक नेता के घर जा पहुंचे। इस मुलाकात ने एक और सियासी चर्चे को हवा दे दी। दरअसल, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतनराम मांझी कल नालंदा में थे। उन्होंने अस्थावां विधानसभा क्षेत्र से लोजपा के पूर्व प्रत्याशी छोटे लाल यादव से उनके घर जाकर मुलाक़ात की। इस दौरान मांझी ने छोटे लाल यादव के घर पर मछली चावल का भी स्वाद चखा।
हालांकि मांझी ने कहा कि वे बस शिष्टाचार मुलाक़ात के लिए आये हैं। इस दौरान किसी भी तरह की कोई पॉलिटिकल बात नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि जब यहां से हमारे प्रत्याशी का नामांकन हो जाएगा, तब कोई राजनीतिक बातचीत होगी।
अब मांझी चाहे लाख सफाई दें, लेकिन महागठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है। जहां मधुबनी में कांग्रेस और राजद के बागियों ने महागठबंधन के प्रत्याशी की खटिया खड़ी कर दी है, वहीं सुपौल में तो कहानी महागठबंधन के प्रत्यक्ष चीरहरण वाली प्रतित हो रही है। सुपौल में तो राजद ने खुल्लमखुल्ला महागठबंधन की कांग्रेस प्रत्याशी रंजीता रंजन का विरोध कर दिया है। ऐसे में बिहार की जनता महागठबंधन की नीतियों और उसके एजेंडे को लेकर कनफ्यूज है। उन्हें यह तय करने में कठिनाई हो रही है कि वे किसे और क्यों वोट करें।
Swatva Samachar
Information, Intellect & Integrity