पटना : वैसे तो क्रिसमस की वजह से राजधानी देर रात तक गुलजार थी। लेकिन, ज्ञान भवन के पास हजारों लोग भीतर प्रवेश को आतुर थे। जिनके हाथों में पास थे, वे तो साधिकार जगह पा ले रहे थे। बाकी हाथ मलते रह गए। हो भी क्यों न। ऑडिटोरियम में कुमार विश्वास, वासिम बरेलवी, अंकिता सिंह, तेज नारायण बेचैन, मदन मोहन समर और मुमताज नसीम की आवाजें गूंज रही थीं। कुमार का विश्वास खासकर युवाओं के सिर चढ़कर बोल रहा था।
इस कवि सम्मलेन की खासियत थी कि वाद्य यंत्रों (म्यूजिकल) से सुसज्जित थी। श्री के चुटीले अंदाज के सभी कायल थे। अध्यक्षता यानी उद्—घोषणा के क्रम में भी तंज-व्यंग्य हंसने को मजबूर कर रहे थे। कुमार सरकार और व्यवस्था को अपने अंदाज में खरी-खरी सुना रहे थे। एक प्रसंग की चर्चा में पात्र थे, नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी। दोनों ने एक-दूसरे से तृतीय पुरुष (उपेंद्र कुशवाहा) के बारे में कहा : “जो मेरा नहीं हो सका वो तेरा हो नहीं सकता…। यहीं नहीं रुके, राहुल गांधी के बारे में ‘अधूरी जवानी का क्या फायदा’। फिर नरेंद्र मोदी, ‘बिन कथानक कहानी का क्या फायदा’। अब मेरावाल (यानी अरविंद केजरीवाल) ‘जख्म भर जाएंगे, तुम मिलो तो सही, दिन संवर जाएंगे, तुम मिलो तो सही…’। म्यूजिकल कवि सम्मलेन कम देखने को मिलते है। नया प्रयोग है। शब्दों के संयोजन और प्रस्तुति में माहिर श्री कुमार मंच के सिरमौर बने रहे। प्रेम रस के साथ-साथ वीर रस में भी पूरा विश्वास दिखा। वैसे वीर रस के मदनमोहन समर ने युवाओं में खूब जोश भरे। अजीम शायर वासिम बरेलवी ने जब अपना कलाम—’किनारा करने वालों से, किनारा कर लिया हमने’, पढ़ा, सारा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। कमोबेश सभी कवियों ने लोटपोट कराया।