कहानियों का बेजोड़ संग्रह, छंटते हुए चावल

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पुस्तक समीक्षा
छँटते हुए चावल (कहानी संग्रह)
प्रकाशक : शब्द प्रकाशन
लेखक  : नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’
मूल्य   :  140 रुपये मात्र

जब खुद के जीवन के अनुभव कड़वे होते हैं, तब कलम की ताकत खुद-ब-खुद बढ़ जाती है। इस कथन को, नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’ जी की किताब—“छँटते हुए चावल” पूर्ण रूप से चरितार्थ करती दिखाई देती है । छोटी—छोटी कहानियों द्वारा उद्भेदित हो रहे स्त्री विमर्श पर उनके द्वारा लिखी गयी यह किताब आज के मध्यम वर्गीय एवं निम्नवर्गीय औरतों का परिचय कराती नज़र आती है।

किताब की पहली कहानी “छंटते हुए चावल” में उन्होंने चॉल में रहने वाले लोगों, खासकर औरतों के जीवन को अच्छे ढंग से उतारा है। कहानी के माध्यम से उन्होंने यह बताया है कि औरतों के समूह में एक नेता (नेत्रित्वकर्ता) होती है । पूरे चॉल की महिलाएं उसके आगे पीछे लगी रहती हैं। कहानी के अंत में सरिता द्वारा कहा गया संवाद उनकी बाध्यकारी शून्यता को दर्शाता है—“पति के जाने के बाद हम औरतों के पास कोई काम नहीं होता है। अत: चावल छांटते वक़्त किसी की बुराई कर लेते हैं”। इस पंक्ति में कहानी का सार नज़र आ जाता है। सरिता औरतों की सच्चाई भी बता देती है, और साथ में यह भी बता देती है कि इस काम में उसे और बाकी औरतों को ऐसा करने में भी एक तरह के रस की प्राप्ति होती है ।

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किताब की बात करूं तो इस कहानी संग्रह में चौदह कहा​नियां आपको पढ़ने को मिलेंगी। अधिकतर कहानी सुखद अंत का एहसास कराने वाले क्लाइमैक्स की हैं। कुछ ही कहानियां दुःखद अंत के साथ ख़त्म हुईं हैं।

“बिछावन” कहानी का अंत आपको झकझोर कर रख देगा। लेकिन फिर कहानी “काला अध्याय” में लेखिका दोहरावपन का शिकार होती दिखती हैं। ऐसी कहानी बहुत लेख़क पहले भी लिख चुके हैं।

पर जैसे ही आप कहानी “आस भरा इंतज़ार” की ओर बढ़िएगा, आपको एक दफा, यकीन मानिए “प्रेमचंद” जी की याद जरूर आ जायेगी। लीला के मन में पूड़ी और रोटी का जो अंतर्द्वंद्व चल रहा था, वह सही मायने में अमीरी—गरीबी की खाई को दिखाती है।

क्षेत्रीयता का प्रभाव भी किताब में नज़र आता है। “माफ करना” कहानी में छठ पूजा के दृश्य बड़े मनोरम तरीके से लिखे गए हैं। लोकभाषा के कुछ शब्दों के इस्तेमाल से कहानी में जान और बढ़ गयी है। पाठक इस चीज़ से और अच्छे तरीके से जुड़़ पाएंगे। कहानियाँ पढ़ते वक्त आपको यह अहसास होगा की इनके सभी पात्र हमारे आस-पास ही कहीं मौजूद हैं। पर हमें नज़र क्यों नहीं आते? क्योंकि हमारे पास एक लेखक वाली नज़र नहीं होती। किताब को मैं 5 में से 4 रेटिंग स्टार दूंगा । एक स्टार इसलिए कम करुंगा कि आज हर दूसरा लेख़क स्त्री विमर्श के मुद्दे पर लिख रहा है। तो अब इन मुद्दों पर लिखी कहानियां पहले से पढ़ी हुई लगने लगती हैं। एक विनती और, कहानी पढ़ने से पहले इस किताब में लिखा “आत्म संवाद” अवश्य पढ़िए। किताब से और अच्छे तरीके से आप जुड़ सकेंगे ।

समीक्षक
अभिलाष दत्ता

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