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‘लक्ष्मण रेखा’ की कसम : संदेह के साए में हिलन-मिलन गवारा नहीं

‘रहिमन विपदा हू भली, जो थोड़े दिन होय।’ शाम ढलने को है। सब बंद। कुछ आते-जाते लोग एक-दूसरे को देखने को तैयार नहीं। हालाँकि एक तबका इससे महफूज। पराया-पराया। चौक-चौराहों पर बैरिकेडिंग के साथ पुलिस की तैनाती। ये उनपर है…