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6 साल की शराबबंदी में अकेले पिछले वर्ष 66 मौतें! फिर PM मोदी की तरह नीतीश क्यों नहीं रहे मान?

पटना : आप बस आंकड़ों पर गौर करें। बिहार में वर्ष 2016 में शराबबंदी लागू हुई। लेकिन करीब छह वर्षों की शराबबंदी के बावजूद आज बिहार में प्रतिदिन शराब की खपत बिना शराबबंदी वाले महाराष्ट्र से ज्यादा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक आज बिहार में 15.5 फीसदी पुरुष दारू पीते हैं। जबकि महाराष्ट्र में महज 13.9 फीसदी पुरुष ही रोजाना शराब का सेवन करते हैं।

लगातार हो रही जहरीली शराब से मौत की घटना

एक और चौंकाने वाली बात यह कि करीब 6 वर्षों से रोक के बाद भी बिहार में जहरीली शराब से सैंकड़ों लोग मारे गए। अकेले वर्ष 2021 में जहर वाली शराब पीकर 66 लोग मर गए…सिलसिला अब भी जारी है। यक्ष सवाल यह कि नीतीश कुमार दारूबंदी की जिद क्यों धरे बैठे हैं। पीएम मोदी की भांति किसानों वाले मामले का अनुसरण कर इस कानून की खामियों और इसके तौर तरीकों में बदलाव पर विचार क्यों नहीं कर रहे?

नीतीश के पास मुद्दों की कमी, दारूबंदी कैसे छोड़ें?

दरअसल नीतीश कुमार आधी आबादी के वोट बैंक का मोह नहीं त्याग पा रहे। वर्ष 2015 में दारूबंदी का वादा कर उन्होंने चुनाव लड़ा। उन्हें महिलाओं का भरपुर समर्थन मिला। लेकिन इसे लागू करते वक्त उन्होंने जरूरी होमवर्क करने, पिछड़े और अशिक्षित बिहारी समाज में जागरुकता के कदम उठाने जैसे प्रारंभिक कदमों को दरकिनार कर एकाएक दारूबंदी लगा दी। हालंकि अब वे डैमेज कंट्रोल के लिए समाज सुधार आदि यात्राएं करने लगे हैं। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह उन्हें दारूबंदी से पहले करना चाहिए था। पहले जनमानस को तैयार करते, फिर दारूबंदी लागू करते।

आज कोई राजनीतिक दल दारूबंदी पर साथ नहीं

दूसरी तरफ, बिहार में राजनीतिक परिस्थितियां भी 2015 के मुकाबले काफी बदल गईं हैं। आज उनकी लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से नीचे आया है। मुद्दों का टोटा है सो अलग। राजनीतिक तौर पर पाला बदल की भी संभावना क्षीण है क्योंकि वे खुद को न लालू—तेजस्वी के साथ सहज देख पा रहे हैं, और बीजेपी तीसरे नंबर की पार्टी कहकर उन्हें ज्यादा भाव नहीं दे रही। आज की तारीख में दारूबंदी पर तो न भाजपा और न हीं राजद उनसे हाथ में हाथ मिलाकर मानव चेन बनाकर खड़ा होने को तैयार है।

हावी होने हसरत और बिहार में तीसरे नंबर का दर्द

दरअसल, नीतीश कुमार अपने खुद के बनाए बिहार के एकमात्र करिश्माई नेता वाली छवि में कैद होकर रह गए हैं। गठबंधन में होने के बावजूद वे शुरू से हावी होने और अपनी चलाने की कोशिश करते रहे हैं। चाहे भाजपा हो या राजद, दोनों को गठबंधन में नीतीश हमेशा बैकफुट पर रख राज करने की जुगत भिड़ाते रहे हैं। लेकिन अब परिस्थितियां अलग हैं। आज जदयू बिहार में संख्याबल में भाजपा और राजद से पीछे तीसरे नंबर पर है। ऐसे में जहां वे सम्राट अशोक का मामला उठाकर भाजपा पर दबाव बना रहे तो वहीं दारूबंदी पर हमलावर हो बीजेपी जदयू को हैसियत बता रही।