बेगूसराय में मुस्लिमों के लिए टुकड़े—टुकड़े हुआ लेनिनग्राद, कैसे?

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बेगूसराय : कभी बिहार का लेनिनग्राद माना जाने वाला बेगूसराय कल एक अहम निर्णय लेने वाला है। 29 अप्रैल को यहां होने वाली वोटिंग पर समूचे देश और दुनिया की नजरें टिकी हैं। क्या बेगूसराय के वोटर अपनी किस्मत लाल झंडे के हवाले करेंगे, या फिर भगवा की छांव में अपनी इज्जत और तकदीर को ज्यादा सुरक्षित मानेंगे। आइए जानते हैं कि पिछले 15 दिनों से यहां मचे चुनावी प्रचार युद्ध के निहितार्थ क्या हैं? ये क्या संकेत दे रहे हैं?

बेगूसराय में मुकाबला कहा तो त्रिकोणीय जा रहा है, लेकिन यहां प्रचार युद्ध मोटे तौर पर भाजपा के फायरब्रांड गिरिराज सिंह और सीपीआई के जेएनयू ब्रांड कन्हैया कुमार के बीच ही केंद्रीत रहा। दोनों के बीच चले तीखे वार—पलटवार में ‘साम, दाम, दंड, भेद’ सबकुछ देखने को मिला। कल की वोटिंग से पहले आज और अभी तक जो चुनावी मिजाज बन पाया है, वह बेगूसराय में पूरे वोटिंग पैटर्न को ही दो धड़ो में बंटने का इ्शारा देता है। लब्बोलुआब यह कि बेगूसराय में इन दोनों की चुनावी टसल ने हिन्दू—मुस्लिम ध्रुवीकरण को सतह पर ला दिया। इस ध्रुवीकरण को उभारने में गीतकार जावेद अख्तर और शेहला राशिद की भूमिका उल्लेखनीय रही।

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कन्हैया के हर वार पर गिरिराज का पलटवार

कन्हैया कुमार ने सबसे पहले गिरिराज की नवादा से बेगूसराय शिफ्ट करने की नाराजगी को नौटंकी बता उन्हें टारगेट करना शुरू किया। फिर उसके बाद उन्होंने बाहरी का मुद्दा बनाया। कई बार उन्होंने अपने और गिरिराज की उम्र का भी मुद्दा बनाया। लेकिन इस सबके बीच य़क्ष प्रश्न यह है कि क्या कन्हैया इन मुद्दों पर जनता को जोड़ने में कामयाब रहे? लेकिन जो संकेत मिल रहे हैं उसके मुताबिक गिरिराज सिंह अपने मुद्दे को भुनाने में कामयाब रहे। इधर जब गिरिराज पर बाहरी होने का आरोप लगा तो उन्होंने अपने प्रचार के तरीकों से इसे काटते हुए हवा का रुख अपनी ओर मोड़ लिया। गिरिराज ने ज्यादातर अपने स्थानीय कार्यकर्ताओं को लेकर चुनाव प्रचार शुरू किया तो कन्हैया अपने जेएनयू और बाहरी दोस्तों के साथ घूमते रहे। कन्हैया ने कई बाहरी नेताओं—अभिनेताओं को बुलाया जिसे मुद्दा बनाते हुए गिरिराज ने खूब भुनाया।

सोशल मीडिया पर चलती रही जुबानी जंग

गिरिराज सिंह ने कन्हैया पर ज्यादा जुबानी हमला बोलने की बजाये, खुद को हिंदुत्ववादी बनाकर उभारा और वे मोदी के नाम पर वोट मांगते रहे। गिरिराज ने पूरे चुनाव को हिंदुत्व और वामपंथ की लड़ाई से जोड़ दिया। वामपंथियों की पकड़ काफी सालों से बेगुसराय से ख़त्म हो गई है। स्थानीय लोग बताते हैं कि सीपीआई का वोट अब ज्यादा नहीं है। 2014 में जो 2 लाख के करीब वोट सीपीआई को मिले थे, उसमें जदयू का भी वोट जुड़ा था। ऐसे में कन्हैया अगर उस 2 लाख वोट के चक्कर में बेगूसराय आये हैं तो उन्हें बड़ा नुकसान होगा। क्योंकि उन दो लाख वोटों में पता नहीं कितना वोट जदयू का था और कितना सीपीआई का।एनडीए नेताओं खासकर नीतीश कुमार ने भी बेगूसराय में कई रैलियों को संबोधित किया। इससे भी गिरिराज सिंह ने माहौल बदलने में काफी कामयाबी हासिल की है। वैसे तो सोशल मीडिया और भाषणों में कन्हैया ने खूब माहौल बनाने का काम किया, अब देखना दिलचस्प होगा कि कल किसकी तरफ लोग वोट देते हैं।

कन्हैया कुमार को आरएसएस और भाजपा का कट्टर विरोधी माना जाता है। और पूरे देश मे घूम-घूमकर उन्होंने भगवा और हिन्दू धर्म को नीचा दिखाते और दिखवाते रहे। इससे कन्हैया कुमार की छवि बेगूसराय में एन्टी हिन्दुत्व की बन गई है। दूसरी तरफ भाजपा के गिरिराज सिंह हैं जो समय-समय पर हिंदुओं के समर्थन में बयान देते रहे हैं। मीडिया का एक वर्ग उनके हर बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश करता रहा है। इसने गिरिराज सिंह की छवि को एन्टी मुस्लिम बना दिया।
यदि गिरिराज सिंह बेगूसराय से चुनाव जीत जाते हैं तो वे एक हीरो बनकर उभरेंगे और भाजपा में उनकी एक अलग और विशिष्ट पहचान बनेगी। वहीं अगर कन्हैया कुमार वहां से चुनाव जीतते हैं तो वह एक चैंपियन के तौर पर उभरेंगे।

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