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पर्दे पर राम

राम जब लोगों के रोम-रोम में बसे हैं, तो उनका फिल्म व टीवी में भी होना स्वाभाविक है। आमतौर पर कफ्र्यु के समय सड़के सूनीं हो जाती हैं। लेकिन, जब पहली बार रामचरितमानस के दोहों से निकलकर राम टीवी के पर्दे पर आए थे, तब उन्हें देखने के लिए लोग अपना सारा काम छोड़कर टीवी सेट के पास बैठ जांते थे। वह अस्सी का दशक था, जब भारत में किसी-किसी के पास टीवी सेट होता था। 1986-87 में रामानंद सागर ने छोटे पर्दे पर राम की ऐसी माया रची कि जब हर रविवार को सुबह साढे नौ बजे ’रामायण’ धारावाहिक शुरू होता था, तो सड़कें व बाजार सुनीं हो जातीं। दुकानें बंद रहतीं। घर का चुल्हा-चैका स्थगित रहता। बच्चों को पढ़ाई से छूट मिल जाती। बच्चे, युवा, अधेड़, वृद्ध आदि सब एक होकर 14 इंच के पर्दे पर रामकृसीता को निहारते। रविवार सूर्योदय से ही रामायण देखने की तैयारी शुरू होती। टीवी की सफाई होती, फूल की माला पहनाई जाती। कुछ महिला दर्शक अपने साथ लाए फूल को टीवी के सेट के आगे श्रद्धा-भाव के साथ श्रीराम को अर्पित करतीं। राम के वनवास वाले एपिसोड में न जाने कितने दर्शकों की आंखें भींग गईं। यह पता होते हुए भी कि राम का पात्र अरुण गोविल द्वारा अभिनीत है, दर्शकों के मन में उस टीवी पात्र के लिए असली प्रभु राम वाली भक्ति थी। यहां तक कि रामायण धारावाहिक बनने के बाद किसी सार्वजनिक स्थान पर जाते, तो लोग उन्हें श्रीराम जैसा ही सम्मान देते थे। राम से बड़ा राम का नाम ऐसे ही नहीं कहा जाता। केंद्र सरकार के अनुरोध पर रामानंद सागर ने इसे 52 कड़ी की बनायी थी। बाद में लोकप्रियता को देखते हुए तीन बार इसका विस्तार किया गया और अंततः 78 कड़ी प्रसारित होने के बाद यह पूर्ण हुआ। भारत के अलावा इसे दुनिया के 54 अन्य देशों में प्रसारित किया गया। उस वक्त करीब 65 करोड़ लोगों ने रामायण देखा था।

लंका दहन फिल्म में सबसे पहले डबल रोल तकनीक का प्रयोग हुआ था

यह ऐसा कल्ट क्लासिक है, जिसे नब्बे के दशक में ज़ीटीवी ने और 21वीं सदी के आरंभ में स्टार प्लस व स्टार उत्सव ने पुनःप्रसारित किया। पहले 2008 और फिर 2012 में इसके रीमेक वर्जन का प्रसारण हुआ, जिसे नई पीढ़ी ने बड़े चाव से देखा।
टीवी के आने के 70 साल पहले श्रीराम को फिल्मी पर्दे पर दिखाया जा चुका था। छोटे पर्दे (टीवी) के साथ-साथ श्रीराम की महिमा बड़े पर्दे (सिनेमा) पर भी खूब दिखायी गई। समय-समय पर अलग-अलग भाषाओं में प्रभु राम की कहानी बड़े पर्दे पर आयी।
सबसे पहले 1917 में दादा साहब फाल्के ने ’लंका दहन’ बनायी। यह खूब लोकप्रिय रही। विजय भट्ट ने ’रामराज्य’ (1943) और ’रामायण’ (1954) नाम से फिल्में (हिंदी) बनायीं। 1958 में के. सोमू द्वारा ’संपूर्ण रामायणम’ (तमिल), 1961 में बाबूभाई मिस्त्री द्वारा ’संपूर्ण रामायण’(हिंदी), 1963 में लवकृकुश (तेलुगु), 1971 में बापू द्वारा ’संपूर्ण रामायणम’ (तेलुगु), चंद्रकांत द्वारा 1976 में ’बजरंगबली’ (हिंदी), वी. मधुसूदन राव द्वारा 1997 में ’लव-कुश’ (हिंदी) जैसी फिल्में बनायी गईं। दिलचस्प बात है कि रामानंद सागर वाले ’रामायण’ में राम का किरदार निभाने वाले अरुण गोविल ने इस फिल्म में लक्ष्मण का किरदार निभाया, वहीं जितेंद्र ने राम व जयाप्रदा ने सीता का किरदार निभाया था।
जापानी फिल्मकार युगो साको ने ’रामायण: दि लीजेंड आॅफ पिं्रस राम’ (1992) बनायी। भारत-जापान संबंध के 40 वर्ष पूरे होने पर सवा दो घंटे लंबे इस एनिमेशन फिल्म को बनाया गया था। 2005 में ’हनुमान’ व 2008 में ’रामायण: दि एपिक’ नाम से दो एनिमेशन फिल्में आईं।
अब राम को फिर से बड़े पर्दे पर लाने की तैयारी चल रही है। यह अब तक की सबसे भव्य प्रस्तुती होगी। इसके लिए तीन फिल्म निर्माताओं मधु मंटेना, अल्लु अरविंद और नमित मल्होत्रा ने हाथ मिलाया है। निर्माताओं ने उत्तर प्रदेश सरकार के साथ समझौता-पत्र साइन किया, जिसमें इस महाफिल्म की शूटिंग उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में होगी और इसमें यूपी सरकार सहयोग भी करेगी। हिंदी, तमिल व तेलुगु भाषा में इस हिमालयनुमा फिल्म को बनाने के लिए करीब 500 करोड़ रुपए का शुरुआती बजट तय किया गया है। फिल्म को 3डी में शूट किया जाना है। निर्माण के बाद इसे तीन खंडों में रिलीज किया जाएगा।
श्रीराम का चरित्र ही ऐसा है कि लोग उन्हें बार-बार देखना चाहते हैं। 2015 में विदेश मंत्रालय ने राम पर 25 मिनट की फिल्म बनाने के लिए देश के फिल्मकारों को चिट्ठी लिखी थी। भारत मानता है कि दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ प्रगाढ़ संबंध बनाने में ’रामायण’ एक महत्वपूर्ण कड़ी हो सकता है। हो भी क्यो न! दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों जैसे मलेशिया, इंडोनेशिया, वियतनाम, थाईलैंड आदि में ’रामायण’ के बारे में बच्चा-बच्चा जानता है। थाईलैंड में इसे राष्ट्रीय महाकाव्य का दर्जा प्राप्त है। मुसलमान बहुल देश इंडोनेशिया व मलेशिया में पूरी श्रद्धा के साथ रामलीला का मंचन होता है। दरअसल, आदर्श मानदंडों के प्रतीक पुरुष श्रीराम ने मानव जाति के इतिहास में अपने व्यक्तित्व और कतृत्व के ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए कि हर युग की पीढ़ी में श्रीराम को बार-बार देखने, सुनने व गुणने का बोध स्वतः जागृत हो उठता है। राम का पर्दे पर बार-बार आना, इसकी पुष्टि करता है।