राष्ट्रनायक अटल

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नायक संस्कारों के साथ जन्म लेते हैं, प्रकृति व समाज मिलकर उसके व्यक्तित्व को गढ़ते हैं। चंबल के बीहड़ के समीप योगेश्वर श्रीकृष्ण की लीला की साक्षी रही यमुना के संस्कारों को अपने रक्त में लिए बालक अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व को भी प्रकृति व समाज ने ही आकार दिया। बालक अटल ने जब आंखें खोलीं तब गुलाम राष्ट्र का दर्द व सामाजिक भेदभाव का विकृत चित्र सामने था। उन्हें पुराने लीक पर चलना स्वीकार्य नहीं था। सनातनी परंपरा वाले पारिवारिक परिवेश से निकलकर बालक अटल अपने जीवन का लक्ष्य व मार्ग स्वयं निर्धारित करते हुए आर्य कुमार सभा और आरएसएस की शाखा तक पहुंच गए। बचपन में शून्य से शुरू वह यात्रा जब विघ्न-बाधाओं को पार करती हुई शिखर तक पहुंची तब अटल राष्ट्र नायक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। राष्ट्रकवि दिनकर ने ऐसे ही महानायकों के लिए कहा है-पौरुष अपना पंथ स्वयं गढ़ता है।

हार नहीं मानने वाला जिद्दी संस्कार अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व का मूल तत्व है। यही उन्हें कतार में खड़े प्रतिभावान नेताओं से बहुत अलग पहचान दी थी। उनके व्यक्तित्व को ऐसा निखारा कि वे राजनीति के केंद्र में स्थापित हो गए। किशोर अटल पर रामचंद्र वीर की पुस्तक ‘अमर कीर्ति विजय पताका’ के गहरे प्रभाव का यह परिणाम था। रामचंद्र वीर का मानना है कि भारत वर्ष के पिछले एक हजार साल के इतिहास को हार और गुलामी का नहीं, बल्कि संघर्ष और विजय के इतिहास के रूप में देखा जाना चाहिए। अटल जी ने इस विचार को अपने मन में बैठा लिया। किशोरावस्था में बीज रूप में हृदय में बैठा यह संस्कार उत्तरोत्तर विकसित होता गया और हिंदुत्व के विराट जीवन दर्शन के साथ तादात्म्य बैठाते हुए एक नवीन व्यावहारिक दर्शन के रूप में सामने आया। अटल जी की कविता-हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं…उनके व्यक्तित्व के इस पक्ष का ही उद्घोष है।

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अटल जी के सामाजिक चिंतन क्षितिज का विस्तार तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं, कार्यक्रमों व प्रशिक्षण वर्गों में ही हुआ था। इस बात को स्वीकार करते हुए उन्होंने एक स्थान पर लिखा है-आरएसएस लोगों की सोच को प्रभावित करता है। मेरे बड़े भाई भी शाखा जाने लगे थे। मेरे आग्रह पर वे भी संघ के शीत शिविर में शामिल हुए। वहां सभी स्वयंसेवक एक साथ भोजन करते थे। लेकिन, ब्राह्मण होने के कारण उन्हें यह मान्य नहीं था। उन्होंने शिविर की व्यवस्था में लगे स्वयंसेवकों से कहा कि वे अपना भोजन स्वयं पकाना चाहते हैं। संघ के पदाधिकारियों ने उनके उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था। लेकिन, दो दिनों में ही उनका मन बदल गया और वे स्वयं सबके साथ भोजन करने के लिए तैयार हो गए।
राजनीति के शिखर पर पहुंचने के बाद भी अटल जी को अपने पुराने दिन याद थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने एक साक्षत्कार में बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मेेरी आत्मा है। शरीर से यदि आत्मा निकल जाए तो शरीर निष्प्राण हो जाता है।

उस साक्षत्कार में उन्होंने संघ से जुड़ाव की अपनी पुरानी यादों के जिक्र किए थे। उन्होंने कहा था-नारायण राव तर्टे नामक प्रचारक नागपुर से ग्वालियर आए थे। संघ कार्य में उनके प्रयास से ही मैं दृढ़ हो सका था। वाकई वे शानदार व्यक्ति थे, एकदम सरल, विचारक और संगठनकर्ता। मैं जो भी हूं श्री तर्टे जी की वजह से ही हूं। उनके बाद में दीनदयाल जी और भाउरावजी से प्रेरित हुआ। 1941 में जब वे स्कूल में अंतिम वर्ष के छात्र थे तब संघ के उच्चस्तरीय प्रशिक्षण (ओटीसी) में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा था आज मैं लखनऊ का सांसद हूं। कभी संघ के कार्यकर्ता के रूप में शाखा का कार्य करता था। लखनऊ शहर के पास ही शांडिला नामक स्थान पर रहकर कुछ माह तक शाखा लगाने व नए कार्यकर्ताओं को संघ से जोड़ने का कार्य करता था। आगे चलकर इसी लखनऊ में पत्रिका प्रकाश की जिम्मेदारी भी निभायी।

1942 में स्वतंत्रता आंदोलन अचनाक तेज हो गया था। अटल बिहारी वाजपेयी वे उनके बड़े भाई प्रेम बिहारी वाजपेयी भी आंदोलनात्मक गतिविधि में शामिल होने लगे। इस बात की जानकारी जब उनके शिक्षक पिता को मिली तब वे चिंतित हो उठे। ग्वालियर में रहकर वे पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन, उनके पिता ने उन्हें आंदोलन से दूर रखने के लिए अपने पैतृक गांव बटेश्वर पहुंचा दिया। वहां भी आंदोलन का वातावरण था। अटल जी अपने गांव के युवक लीलाधर वाजपेयी के साथ मिलकर आंदोलन में शामिल हो गए। एक दिन आंदोलन के दौरान ही अटल बिहारी वाजपेयी, उनके भाई प्रेम बिहारी वाजपेयी और लीलाधर वाजपेयी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। अटल जी उस समय नाबालिग थे। बटेश्वर में उनकी गिरफ्तारी की सूचना जब ग्वालियर मंे उनके पिता तक पहुंची तब वे बेचैन हो उठे। नाबालिग होने के कारण उन्हें जेल से निकाल लिया गया, जबकि उनके साथ गिरफ्तार किए गए लीलाधर वाजपेयी को जज ने जमानत देने से इनकार कर दिया था। अटल जी के विरोधी यह आरोप लगाते रहे हैं कि उन्होंने कोर्ट में यह बयान दे दिया था कि लीलाधर के बहकावे के कारण वे आंदोलन में शामिल हो गए थे। जबकि ऐसी बात नहीं थी। इस आरोप के पक्ष में न तो कोई दस्तावेजी प्रमाण है और न ही लीलाधर वाजपेयी ने ही इसे सही माना है।

हार नहीं मानने वाले संस्कार से युक्त अटल जी ही थे, जिन्होंने मई 1998 में पोखरण में दो दिनों में पांच परमाणु विस्फोट करा कर भारत को परमाणु शक्ति से पूरी तरह सम्पन्न देश के रूप में विश्व में स्थापित कर दिया था। प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी इस कीर्ति को भारत कभी भुला नहीं सकता। तमाम अंतर्राष्ट्रीय दबावों के बावजूद उन्होंने इस कार्य को पूरा कराया। अमेरिकी खुफिया एजेंसी के सैटेलाइट्स द्वारा रात दिन की निगरानी के बावजूद पोखरण-2 को सफल बनाने में उन्होंने कोई कसर बाकी नहीं रखी। हालांकि इस परीक्षण के बाद भारत को तमाम अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध भी झेलने पड़े। इतना ही नहीं, भारत के अंदर भी कुछ दल और राजनेताओं ने उनकी कटु आलोचना की थी। लेकिन, पीएम अटल बिहारी झुके नहीं। उनके नेतृत्व में भारत उन प्रतिबंधों से भी पार पाकर प्रगति के पथ पर बढ़ता रहा।

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