एक ही स्कूल में बार-बार एडमिशन

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स्कूल और अस्पताल दो ऐसी सेवाएं हैं, जो चाहे या अनचाहे सभी के लिए जरूरी हैं। क्या अमीर, क्या गरीब, सभी बेहतर सुविधा पाने की कोशिश करते हैं, फिर इसके लिए रकम कितनी भी अदा करनी पड़े। जबसे आर्थिक उदारीकरण का दौर आया, शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों का व्यवसायीकरण भी शुरू हो गया। ऐसे में कुकुरमुत्ते की तरह देश के अन्य हिस्सों की भांति बिहार में भी प्राइवेट स्कूल व अस्पताल उग आए। बिहार जैसे पिछड़े राज्य में बिना किसी मजबूत अंकुश के संचालित इन संस्थानों ने जोंक की तरह राज्य की गरीब जनता को सेवा के नाम पर चूसना शुरू कर दिया। सरकारी विकल्प की गिरावट और प्राइवेट विकल्प की चकाचैंध ने लोगों को एक तरह से जकड़ लिया। क्रांति की भूमि बिहार से इसके खिलाफ आवाज भी उठी। इसी जनभावना से प्रेरित होकर बिहार की नीतीश सरकार ने निजी स्कूलों पर नकेल कसने का निर्णय कर लिया। सरकार ने इन स्कूलों के संचालन से लेकर इनकी मनमानी फीस वृद्धि को एक कानून के दायरे में लाने के लिए प्राइवेट स्कूल रेगुलेशन बिल 2019 विधानसभा में पेश किया। बिल के पास हो जाने पर निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगेगी। आइए जानते हैं कि क्या-क्या है इस कानून में और कैसे यह प्राइवेट संस्थानों पर लागू होगा।

कैसे काम करेगा यह कानून

अब निजी स्कूल मनमाने ढंग से न तो फीस बढ़ा पाएंगे और न ही किताब-कॉपियों के नाम पर लूट की जा सकेगी। साथ ही नामांकन के नाम पर मोटी रकम की वसूली पर भी अंकुश लगेगा। शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा के मुताबिक, निजी स्कूल अब अधिकतम सात फीसदी ही फीस की वृद्धि कर पाएंगे। नये कानून के पास होने से अभिभावकों को बड़ी राहत मिलेगी। साथ ही बिल में प्रावधान किया गया है कि अगर कोई स्कूल नियमों का उल्लंघन करता है तो सरकार उस स्कूल का निबंधन भी रद्द कर सकती है।

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अगर किसी निजी स्कूल को तय सीमा से अधिक फीस बढ़ाने की जरूरत होगी तो उसे प्रमंडलीय आयुक्त की अध्यक्षता में गठित कमेटी से इजाजत लेनी होगी। कानून का उल्लंघन करने पर स्कूल प्रबंधन को दंडित भी किया जा सकेगा। कानून बनाने के लिए राज्य सरकार ने गुजरात, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल और पंजाब में टीम भेजकर वहां के कानून का अध्ययन कराया था।

विधानसभा में इस विधेयक को पेश करते हुए शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा ने कहा कि निजी स्कूलों की फीस में बड़े स्तर पर बढ़ोतरी और मनमानी की शिकायतें मिल रही थीं। जनभावना का ध्यान रखते हुए यह कदम उठाया गया। सरकार प्राइवेट स्कूलों के साथ किसी तरह का टकराव नहीं चाहती, लेकिन जनता के हितों के लिए सरकार उनके शोषण को कतई बर्दाश्त नहीं कर सकती।

लागू प्रावधान

इस विधेयक में पिछले शैक्षणिक वर्ष से फीस में सात प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी प्राइवेट स्कूल नहीं कर सकते। इसमें प्रवेश शुल्क, पुनर्नामांकन, विकास, मासिक, वार्षिक, पुस्तक, पाठ्यसामग्री, पोशाक, आवागमन समेत अन्य तरह की फीस शामिल है। इससे अधिक बढ़ोतरी का कोई मामला शुल्क विनियमन समिति से समीक्षा के बाद ही लागू होगा। स्कूल को क्लासवार पुस्तकों की सूची, ड्रेस के प्रकार और अन्य अपेक्षित सामग्री की सूची स्कूल की वेबसाइट और सूचनापट्ट पर जारी करनी होगी।

स्कूल की तरफ से निर्धारित दुकान या किसी स्थान से इनकी खरीद करना अनिवार्य नहीं होगा। इसका उल्लंघन करने वाले स्कूलों पर जुर्माना और अन्य तरह के दंड लगाये जाएंगे। पहली बार गलती करने वाले स्कूलों को एक लाख का जुर्माना लगाया जायेगा। इसके बाद प्रत्येक अपराध के लिए दो-दो लाख रुपये देने होंगे। निर्धारित जुर्माना एक महीने में जमा नहीं करने या बार-बार नियमों का पालन नहीं करने पर स्कूल की मान्यता रद्द करने का अनुमोदन किया जायेगा।

60 दिनों में करनी होगी सुनवाई

सभी बातों की मॉनीटरिंग के लिए ‘शुल्क विनियमन समिति’ का गठन किया गया है। इसके अध्यक्ष प्रमंडलीय आयुक्त होंगे और क्षेत्रीय शिक्षा उपनिदेशक सदस्य सचिव के अलावा प्रमंडलीय मुख्यालय के जिला शिक्षा पदाधिकारी, जिलों के निजी विद्यालयों से दो प्रतिनिधि (आयुक्त से नामित) और दो अभिभावक प्रतिनिधि (आयुक्त की तरफ से नामित) सदस्य होंगे।

स्कूलों से संबंधित किसी शिकायत का निबटारा और जांच का अधिकार इस समिति को होगा। समिति किसी दोषी व्यक्ति को समन कर बुला सकती है। दस्तावेजों की जांच और किसी मामले में भौतिक सत्यापन या पूछताछ कर सकती है। इस समिति को कोई अभिभावक शिकायत करता है, तो 60 दिनों में सुनवाई करनी होगी।

 

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