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मंथन

बिहार में राम

प्राचीनकाल से ही बिहार की भूमि गौरवशाली रही है। यहां की मिट्टी, यहां का परिवेश, धार्मिक व राजनीतिक रूप से उर्वर रही है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को समेटे बिहार की अपनी एक अलग ही पहचान रही है। यदि हम त्रेतायुग की बात करें तो भगवान राम का बिहार से गहरा संबंध था। भले ही उनका अवतरण उत्तर प्रदेश की अयोध्या में हुआ हो, लेकिन उनके शौर्य और शक्ति का केंद्र बिहार ही रहा है। बहुत कम लोगों का ध्यान इस ओर जाता है, पर बिहार ही वह जगह है, जहां से भगवान राम की अलौकिक प्रसिद्धि जन-जन तक पहुंची थी। विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर और योद्धा बनाने का श्रेय भी बिहार को ही जाता है। सही मायने में इस मिट्टी में ही उन्हें पूर्णता मिली। यहां के बक्सर जिले में महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा करते हुए भगवान राम ने ताड़का नामक राक्षसी का वध किया था। मिथिला की भूमि पर माता सीता के स्वयंवर में पिनाक धनुष को उन्होंने ही तोड़ा था। स्वयंवर में आए हुए दुनियाभर के राजाओं-महराजाओं की शक्ति के घमंड को उन्होंने चकनाचूर किया था।

महर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि बक्सर

बक्सर महर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि मानी जाती है। वे अपने आश्रम में रहकर तपस्या और यज्ञ किया करते थे। सनातन धर्म मे यज्ञ करने की परंपरा रही है। कहा जाता है कि यज्ञ करने से 33 करोड़ देवी-देवता प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन उनके यज्ञ में ताड़का और उसका पुत्र मारीच विघ्न डाल दिया करते थे। ताड़का, सुबाहु और मारीच के आतंक से मुक्ति पाने के लिए महर्षि विश्वामित्र अयोध्या गए, जहां राजा दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण से उनकी मुलाकात हुई। सारी् बातें बताने के बाद अपने यज्ञ की रक्षा के लिए महाराज दशरथ से राम और लक्ष्मण को साथ ले जाने याचना की। स्वीकृति मिल जाने के बाद महर्षि विश्वामित्र, राम और लक्ष्मण के साथ सरयू नदी को पार कर गंगा के किनारे अवस्थित बक्सर आए। अब तक राम को पूरी दुनिया महज राजकुमार ही समझते थे। बक्सर पहुंचकर भगवान राम ने ताड़का का वध कर विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा की। कहा जाता है कि राम के शौर्य को जगाने का काम विश्वामित्र ने बक्सर में ही किया था। बक्सर में ही महर्षि ने राम को धनुर्वेद की शिक्षा विशेष शिक्षा दी थी। हालांकि, बक्सर में राम बहुत ही अल्पकाल के लिए ही ठहरे थे। इसी अवधि में विश्वामित्र ने उन्हें कई दिव्य मंत्र और दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्रदान किया था। कई गुप्त बातें भी बताई थीं। राम के इतने बड़े योद्धा बनने में बिहार, बक्सर, मिथिला और विश्वामित्र की सबसे बड़ी भूमिका थी। भगवान राम को इसी धरती पर अपने शौर्य को प्रदर्शित करने का मौका मिला था।

यहां दो सीतामढी

बिहार में दो सीतामढी हैं। एक जहां मां जानकी का जन्म हुआ और दूसरा जहां मां सीता धरती में समा गईं। जन्म स्थान से तो ज्यादातर लोग परिचित हैं। सीतामढ़ी को हिंदू पौराणिक कथाओं और इतिहास में अति पवित्र स्थान के रूप में माना जाता है, जो किसी को भी त्रेतायुग में ले जाता है। सीतामढ़ी की पहचान विश्व के प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में है। यही कारण है कि देश विदेश से हजारों की संख्या में सीतामढ़ी और सीता से जुड़े स्थल को देखने पर्यटन आते हैं। इस जिले की उत्तरी सीमा पड़ोसी देश नेपाल की सीमा से जुड़ी हुई है। सांस्कृतिक विविधता से रंगारंग संपूर्ण क्षेत्र में आनंद की ऐसी अनुभूति होती है कि मन करता है बस यहीं के हो कर रह जाएँ। पौराणिक काल के इतिहास और भूगोल का विश्लेषण किया जाए तो सीतामढ़ी जिला और आसपास के क्षेत्रों में रामायण काल के प्रसंगों से जुड़े कई ऐसे स्थल हैं। वहीं, नवादा की सीतामढ को मां सीता की निर्वासन स्थली के रूप में जाना जाता है। नवादा जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर मेसकौर प्रखंड क्षेत्र में (तमसा नदी) अब तिलैया नदी के किनारे अवस्थित है सीतामढी। बाल्मीकि रामायण की रचना सीतामढी के पास बारत गांव में की गयी थी। आज भी बाल्मीकि ऋषि के आश्रम के अवशेष यहां मौजूद हैं। किंवदंती है कि जब भगवान राम ने धोबी के उलाहने पर अपने भाई लक्ष्मण को गर्भवती मां जानकी को जंगल में छोड़ने का आदेश दिया था, तब उन्हें तमसा नदी अब तिलैया के जंगलों में छोङा गया था। उस समय यहां महर्षि बाल्मीकि निवास किया करते थे। उन्होंने मां जानकी को शरण दी। जब भगवान राम ने अश्वमेघ यज्ञ का घोङा छोङा तो यही उनके दोनों पुत्रों लव-कुश ने घोड़े को रोककर युद्ध किया तथा युद्ध में हराकर हनुमान को बंदी बना लिया था। मान्यता है कि अश्वमेघ यज्ञ का लव-कुश द्वारा घोङा रोके जाने के बाद हुए युद्ध में सबको परास्त किये जाने की सूचना पर भगवान राम यहां पधारे थे। तब मां सीता ने भगवान राम से अपने दोनों पुत्रों को स्वीकार करने का अनुरोध किया था। इसके बाद भगवान राम ने सीता से दोनों पुत्रों के साथ अयोध्या चलने का अनुरोध किया था। मां सीता ने अयोध्या जाने के बजाय धरती में समाना उचित समझा। उनके अनुरोध पर धरती के फटते ही वह यहां धरती समा गयीं।

मुंगेर ने राजकुमार से भगवान राम बना दिया

मिथिला जाने के क्रम में रास्ते मे एक आश्रम दिखा, जो बिल्कुल वीरान और उजार था। कारण पुछने पर विश्वामित्र ने महर्षि गौतम और उनकी पत्नी अहिल्या की सारी कहानी सुनाई। करुणावत्सल राम को दया आ गई और वहां रखे शिला पर अपना पैर रख दिया। अहिल्या का उद्धार हो गया। अतः बिहार के मुंगेर जिले ने उन्हें राजकुमार से भगवान राम बना दिया।

मां जानकी से मिथिला की धरती ने ही मिलवाया

भगवान राम और बिहार की बात करें तो मिथिला की चर्चा के बिना सब अधूरा ही रह जाएगा। क्योंकि, मिथिला की धरती पर ही स्वयंबर में उन्होंने शर्त के अनुसार पिनाक धनुष को तोड़ा था और माता सीता से उनका विवाह हुआ। धनुष तोड़ने के बाद उनकी प्रसिद्धि दसों दिशाओं में गूंज उठी थी। इस घटना के बाद ही यह साबित हो सका कि राम सिर्फ अयोध्या के राजकुमार ही नहीं हैं, बल्कि वे तो ईश्वर अवतार हैं। दुनिया के पालनकत्र्ता हैं। सृष्टि के रचयिता हैं। क्योंकि, सीता स्वयंमबर में धनुष तोड़ना कोई सामान्य बात नहीं थी। भगवान राम ने यहां अपने अलौकिक शौर्य और शक्ति का प्रदर्शन किया था। सनातन धर्म के इतिहास में बिहार में शक्ति प्रदर्शन की यह सबसे अनोखी घटना है। सीता स्वयंमबर में पूरे विश्व के कोने-कोने से एक से एक रथी-महारथी राजा-महाराजा इसमें हिस्सा लेने पहुंचे थे। कोई किसी से कम नहीं था। लेकिन हद तो तब हो गई जब कोई भी धनुष को तोड़ना तो दूर हिला तक नहीं सका था। यहां तक कि देवता, यक्ष, राक्षस ,गंधर्व सभी मनुष्य रूप धरकर उस सभा में आए थे। पर, ऐसे शूरवीरों के बीच बहुत ही सहजता और निराभिमानता से भगवान राम ने पिनाक धनुष को तोड़ दिया था। इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि भगवान राम के शौर्य, शक्ति और प्रसिद्धि का केंद्र बिहार ही रहा है।