पटना : सरकार द्वारा अनुदानित शिक्षा व्यवस्था से परे भी वंचित समुदाय को सशक्त बनाने के कई माध्यम हो सकते हैं। खासकर स्वयंसेवी संगठन। उन्हीं में से एक “अल्फाबेट” एक ऐसी संस्था है जो इस चीज का मुकम्मल उदाहरण पेश कर रही है।
2010 में कुछ युवाओं ने अल्फाबेट शुरू किया था। इस उद्देश्य से कि वैसे बच्चे जो किसी न किसी कारण से प्राइमरी शिक्षा भी नहीं ले पा रहे, उनको स्कूलों और पढ़ाई से जोड़ कर हाशिये पर लाया जा सके। इस शुरुआत से न सिर्फ उन्हें शिक्षा मिलेगी, बल्कि आर्थिक और अन्य कारणों से ड्रॉपआउट कर जा रहे बच्चों के माध्यम से आंशिक रूप से ही सही, पर राष्ट्र की उन्नति का मार्ग बने। ‘अल्फाबेट’ के बारे में यह जान लेना भी जरूरी है कि इसके संस्थापक सदस्यों में से एक आयुष नोपानी ने हाल ही में सिविल सेवा की परीक्षा में 151वां रैंक हासिल किया। इससे न सिर्फ आयुष की पहचान बढ़ी, बल्कि सुमड़ी में गुम इस संस्थान को भी थोड़ा बहुत नाम मिल पाया।
‘अल्फाबेट’ क्योंकि एक स्वयंपोषित और युवाओं के प्रयास से कार्यरत एक छोटी संस्था है। लेकिन हालिया सफलताओं ने आंशिक तौर पर ही सही पर मनोबल बढ़ाने लायक कैटेलिस्ट का काम जरूर किया है। संस्था की शुरुआत से ही उसमें पढ़ाई कर रहे दो छात्रों ने आर्थिक मदद पा कर बारहवीं की परीक्षा पास की। दोनों छात्र ब्लू व्हेल अकादमी से पढ़े , इनमें से एक ने जेईई मेन्स की परीक्षा भी वास की। वैभव ने बताया कि संस्था द्वारा मेंस की तैयारी के लिए उनका एडमिशन पटना के आकाश इंस्टिट्यूट में भी कराया गया। वहीं वरुण ने बताया कि न सिर्फ आर्थिक मदद बल्कि नैतिक सहायता भी दी जाती थी।
संस्था के संस्थापक सदस्यों से बातचीत पर मालूम चला कि फिलहाल यहां 50 बच्चे हैं और 10 सक्रिय सदस्यों द्वारा सारा काम देखा जाता है। हफ़्ते भर की समय-सारणी बनाई गई है और उसी के अनुसार बच्चों को पढ़ाया भी जाता है और साथ-साथ शुक्रवार को एक्टिविटी क्लासेज कराई जाती है। जिसमें उन्हें योगा, प्रणायाम और अन्य जरूरी चीजों का प्रशिक्षण दिया जाता है। देश में या यूं कहें कि सूबे में कई ऐसी संस्थाएं हैं जो छोटे स्तर पर बड़े सामाजिक बदलाव का बेड़ा उठाये हुए है। पर विडंबना यह है कि इन्हें वो अधिकार और सहायता नहीं मिल पाती
संस्था के कुछ सक्रिय सदस्यों में आयुष नोपानी, एकता नोपानी , आकांक्षा अग्रवाल, शिविका, ईशा, अमन, हर्ष, ऋषभ, और अदिति हैं जो लगातार कार्यरत हैं।
सत्यम दुबें