विकास के नाम पर हमने धरती के साथ अन्याय किया, प्रकृति की हत्या की है- रामाशीष सिंह
प्रज्ञा प्रवाह के फेसबुक लाइव में बोले रामाशीष सिंह
राँची: पर्यावरण एकतरफा विषय नहीं है। इसके दो रूप हैं बाह्य एवं आंतरिक। पर्यावरण को समझने के लिए भारत की दृष्टि को समझना होगा। बाह्य पर्यावरण पर पूरी दुनिया में चर्चा होती है परंतु आंतरिक पर्यावरण पर चर्चा शायद ही देखने को मिलती है। यदि पर्यावरण को समझना है, इस पर चर्चा करनी है तो हमें बाह्य व आंतरिक दोनों पर चर्चा करनी होगी। वसुंधरा परिवार हमारा, ऐसा भारत मानता है। इसीलिए हम सब का ख्याल करते हैं। पर्यावरण का, समस्त जीव-जगत का हमारे ऋषियों ने हमें बहुत अच्छे से समझाया है। यही वजह है कि भारत पर्यावरण को न सिर्फ समझता है बल्कि उस पर व्यापक दृष्टिकोण भी रखता है। उक्त विचार ने कही। सिंह झारखण्ड चैतन्य परिषद (प्रज्ञा प्रवाह) के फेसबुक लाइव में पर्यावरण पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि यदि पर्यावरण को समझना है तो इसे हमारे चरक ऋषि ने बहुत अच्छे तरीके से समझाया है। उन्होंने इसे तीन भागों में बांटा है काल,अर्थ और कर्म। इन तीनों के भी कई अलग-अलग भाग हैं। मतलब कि पर्यावरण को समझना बहुत बड़ा और गंभीर विषय है।
पाश्चात्य के देशों ने पर्यावरण को समझा नहीं
हम जानते हैं कि ओजोन परत में छेद हो गया है। ओजोन परत में छेद किसने किया ? पाश्चात्य के देशों ने, जिसने पर्यावरण को समझा नहीं। प्रकृति को समझा नहीं और जमकर इसका दोहन किया। ओजोन परत मां के उस आंचल की तरह है, जो हमें धूप, ठंडा, बरसात से बचाती है। परंतु हम उस परत को भी सुरक्षित नहीं रख पाए। जिसके वजह से अम्लीय वर्षा हो रही है। पराबैंगनी किरणें सीधे हमारे त्वचा को प्रभावित कर रही है।
हम प्रकृति को माता मानते हैं लेकिन, पाश्चात्य के लोग प्रकृति को सिर्फ एक जड़ मानते
दुनिया में सबसे अधिक ऑक्सीजन देने वाला कोई पौधा है तो शैवाल है, जो समुद्र में बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। हमने समुद्र को भी बुरी तरह प्रदूषित किया। जिस समुद्र की हम पूजा करते थे, वह समुद्र आज बुरी तरह प्रदूषित है। शैवाल के पौधे खत्म हो रहे हैं। हम प्रकृति को माता मानते हैं, उसकी पूजा करते हैं परंतु पाश्चात्य के लोग प्रकृति को कुछ मानते ही नहीं। उनके अनुसार प्रकृति सिर्फ एक जड़ है। उसे तोड़ लो, उसे मरोड़ लो, उसे निचोड़ लो। मतलब जितना दोहन कर सकते हो कर लो। इसका परिणाम हमें यह मिल रहा है कि सांस लेने की शुद्ध वायु नहीं मिल रही। पाश्चात्य के लोगों का मानना है कि प्रकृति उस स्त्री की तरह है, जिसके गर्भ में काफी कुछ छिपा हुआ है। उसका गला दबा, उसका हाथ मरोड़, उसे जितना मार सकते हो मारो और जो कुछ उसके पास है, उसे निकाल लो बिना उसकी जान की परवाह किए।
भारत में विकास का मतलब स्वावलंबी बनना
सिंह ने कहा कि विकास की अवधारणा ने प्रकृति का बहुत नुकसान किया है। भारत में विकास का मतलब स्वावलंबी बनना था परंतु पाश्चात्य में विकास की परिभाषा ही बदल दी। हम भी उसे अपनाते चले गए। जिसका परिणाम यह हुआ कि प्रकृति का हमने बहुत दोहन किया। जिसका परिणाम आज हमें देखने को मिल रहा है।
हमलोगों ने प्रकृति की हत्या की है, इसका परिणाम समस्त जीव-जगत को भुगतना होगा
विकास के नाम पर हमने धरती के साथ अन्याय किया है। हमने प्रकृति की हत्या की है और यह बहुत बड़ा पाप है। पहाड़, नदियां, पेड़ पौधे, जीव जगत सभी प्रकृति के चक्र से जुड़े हुए हैं। हमने किसी एक को भी नष्ट किया तो पूरा चक्र नष्ट होगा और इसका परिणाम समस्त जीव-जगत को भुगतना होगा। यही वजह है कि प्राचीन भारत में हम समन्वय बनाना सीखते थे परंतु विकास की अवधारणा में हम सब कुछ पीछे छोड़ते चले गए।
जंगल ने हमें सब कुछ दिया लेकिन, हमने उसे छोड़ दिया
जंगल ने हमें सब कुछ दिया। हम उसी जंगल को छोड़ते जा रहे हैं। जंगल में रहने वालों को असभ्य कह रहे हैं। उनसे दूरी बना रहे हैं और खुद को संपन्न समझ रहे हैं। परंतु वास्तविक संपन्नता यह नहीं है। वास्तविक संपन्नता तो देखने को तब मिलेगी जब हमारे पास अधिक से अधिक प्राकृतिक संसाधन होंगे। प्रकृति के साथ हमारा सामंजस्य होगा,बायो डाइवर्सिटी (bio-diversity) होगी।
अब भी वक्त है कि हमलोग प्रकृति के करीब जाएं
आजादी के बाद से हमने अंधाधुन वनों की कटाई की। पीपल और बरगद के पेड़ अब देखने को नहीं मिलते। हमने विकास की अवधारणा में प्रकृति का बहुत नुकसान किया है। तुलसी जैसे पौधे को भी हम सुरक्षित नहीं रख पा रहे जबकि तुलसी ना सिर्फ पर्यावरण बल्कि हमारे आरोग्य के लिए भी बहुत ही लाभकारी है। वक्त अब भी है कि हम प्रकृति के करीब जाएं। प्रकृति को मां समझे और उसका दोहन करना बंद करें।