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उच्च शिक्षा का निम्न स्तर

किसी भी देश का भविष्य उसके युवाओं पर निर्भर करता है। कुशल युवा ही देश को एक मजबूत आधार दे सकते है। शिक्षित व कुशल युवा देश की आर्थिक विकास में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। शिक्षा देश के विकास का एक मुख्य घटक है। जिस देश में शिक्षा का स्तर जितना ज्यादा है वह देश उतना ही विकसित है। इसकी तुलना हम यूरोप, अमेरिका, अफ्रिका व एशिया के देशों से कर देख सकते हैं। विश्व के जितने भी विकसित देश है वहां शिक्षा का स्तर बहुत ही अच्छा है और जो राष्ट्र आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं वहां शिक्षा का स्तर निम्न है। शिक्षा और शोध में जो देश आगे हैं, वे आर्थिक रूप से भी आगे है।

भारत में उच्च शिक्षा

आधुनिक समय में उच्च शिक्षा के लिए भारत में राज्य व केन्द्र स्तर पर कई विश्वविद्यालय खोले गए हैं। इन विश्वविद्यालयों में भाषा, तकनीक व अन्य विषयों की पढ़ाई होती है। आईआईटी व एनआईटी तकनीकी शिक्षा के लिए खोले गए हैं। आइआइएम प्रबंधन के लिए। पर, आए दिन उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की कमी की खबर आती रहती है। उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्र-शिक्षक अनुपात बहुत ही खराब है। छोटे शहरों और कस्बों के काॅलेजों में कई विभाग में शून्य नामांकन होते हैं। पटना के लिए ही एक प्रतिष्ठित महाविद्यालय में एक विभाग का अध्यक्ष दूसरे विषय के शिक्षक को बना दिया गया, क्योंकि उस विषय में कोई शिक्षक कार्यरत नहीं थे। ये उदाहरण भारत में उच्च शिक्षा के निम्न स्तर को दिखाता है।

शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए सरकार स्थायी शिक्षक की जगह एडहाॅक या अतिथि शिक्षक नियुक्ति की। पर, ये भी नाकाफी साबित हुए हैं। इन एडहाॅक शिक्षक को पैसे तो एक सामान्य शिक्षक के बराबर मिलते हैं पर सेवा शर्त समान नहीं होते।

शिक्षक बन गए अतिथि

हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय के 5,000 हजार से अधिक शिक्षक कुलपति कार्यालय के बाहर उस आदेश के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। जो अब तक दिल्ली विश्वविद्यालय में लगभग 15-20 वर्षों से एडहाॅक के तौर पर काम कर रहे थे। उन्हें हटा कर उनकी जगह अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति करने का आदेश था। इस आदेश के बाद अब एडहाॅक की जगह अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी और अतिथि शिक्षकों को मेहनताना महीने के हिसाब से नहीं बल्कि घंटे के हिसाब से (प्रति क्लास) दिया जाएगा। देश के सबसे बढ़िया विश्वविद्यालय में गिने जाने वाले विश्वविद्यालय अगर एडहाॅक और अतिथि शिक्षकों के भरोसे है, तो देश के अन्य विश्वविद्यालयों की स्थिति के बारे में आप सोच सकते हैं।

एडहाॅक के रूप में कार्य कर रही महिला शिक्षकों की व्यथा यह है कि उन्हें मेटरनिटी लिव भी नहीं दिए जाते हैं। कई बार महिला शिक्षकों को सिजेरियन डिलीवरी के दूसरे दिन ही क्लास जाना पड़ा है।

न पैसा, न सुरक्षा

अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति मात्र चार महीने या एक सेमेस्टर के लिए की जाती है। यानी प्रत्येक चार महीने बाद उनकी सेवा बढ़ाई जाएगी या नए सिरे से फिर नियुक्ति की जाएगी। इन्हें प्रति क्लास के हिसाब से पैसा दिया जाता है, जिसमें प्रति माह अधिकतम किसी अतिथि शिक्षक को 50 हजार रुपए मिल सकता है। पर, व्यवहार में ऐसा देखा गया है कि अतिथि शिक्षकों को 30 हजार रुपए तक ही मिल रहें हैं। अगर अतिथि शिक्षकों के वेतन का औसत निकाला जाए, तो एक अतिथि शिक्षक को मात्र 12,000 हजार रुपए महीना ही मिल पाता है।

इतना कम मेहनताना और सेवा शर्तें इस करिअर को कितना कम आकर्षक बना देता है आप सोच सकते हैं। यही कारण रहा है कि शिक्षा के क्षेत्र में अच्छे लोग नहीं आना चाहते हैं। एक तो कम पैसा साथ ही असुरक्षा के कारण योग्य लोग इसे अपनी पहली पसंद के रूप में नहीं देखते हैं। मेधावी विद्यार्थी डाक्टर, इंजीनियर, प्रबंधन, प्रशासन या अन्य कोई विकल्प ढूंढ लेते हैं।

जून 2019 में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने संसद को बताया था कि अगले छह महीने के भीतर ही सभी विश्वविद्यालयों के खाली पड़े सीटों को भर लिया जाएगा। इसी आलोक में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सभी राज्य विश्वविद्यालयों और केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के सभी खाली पड़े सीटों को छह महीने के भीतर भर दिया जाए नहीं तो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से मिलने वाली सारी सुविधाएं बंद कर दी जाएंगी। छह महीना बीत चुके हैं पर अभी तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है। कई विश्वविद्यालयों ने अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति कर ही खाना पूर्ति कर रहे हैं।

वे देश जिन्होंने दिया शिक्षा को महत्व

भारत का पड़ोसी देश भूटान आर्थिक ष्टि से भले ही भारत से काफी पीछे है। पर, शिक्षा के क्षेत्र में वहां की सरकार द्वारा उठाए गए कदम बहुत ही क्रन्तिकारी हैं। भूटान की सरकार ने मानव संसाधन के महत्व को देखते हुए शिक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी है। भूटान सरकार ने डाक्टरों और शिक्षकों को सबसे ज्यादा पैसे देने का निर्णय लिया है। इससे न केवल शिक्षा व स्वास्थ्य की गुणवत्ता में सुधार आएगी बल्कि इस पेशे की तरफ योग्य लोगों का रूझान भी बढ़ेगा।

फिनलैंड और सिंगापुर में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को ही शिक्षक के रूप में नियुक्त किया जाता है। बढ़िया सेवा शर्तें और उच्च मासिक आय विकसित देशों में शिक्षा के क्षेत्र में मेधावी लोगों को आकर्षित करता है। जाहिर सी बात है कि अगर योग्य लोग शिक्षा के क्षेत्र में आएंगे तो शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आएगी। आने वाली पीढ़ी को अच्छी और गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा दे पाएंगे।

बिहार में 2014 में स्थाई असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली बिहार के विभिन्न विद्यालयों के लिए निकाली गई थी, जिसकी प्रक्रिया लगभग पूरी हो गई है। इसमें यह देखा गया कि स्थाई वेकेंसी व बढ़िया सेवा शर्तें होने के कारण कई उम्मीदवारों ने बिहार प्रशासनिक सेवा की नौकरी को छोड़ कर असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर काम करना बेहतर समझा। अच्छी सेवा शर्तें योग्य उम्मीदवार को अवश्य ही शिक्षा के क्षेत्र में आकषिर्त कर रहे हैं। भारत को एक बार फिर से अगर विश्व गुरु बनाना है तो इस दिशा में काम करना पड़ेगा। शिक्षित व सशक्त मानव संसाधन के बल पर ही कोई राष्ट्र महान बन सकता है।