पटना : आज 17 दिन से अधिक हो गया है, जब बिहार सरकार ने कोरोना को स्वास्थ्य संकट के रूप में स्वीकार कर कथित तौर पर रोकथाम उपायों को शुरू किया। लेकिन, अब स्थिति और खराब होने लगी है। ग़रीब बिहारी अभी भी देशभर में फंसे हुए हैं। वो भूखे पेट खाने की भीख और मदद मांग रहे हैं। डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी कोरोना से बचाव के लिए पीपीई सुरक्षा किट, एन 95 मास्क, हैंड सनिटाइज़र इत्यादि बुनियादी उपकरणों और सामग्री के लिए निरंतर गुहार लगा रहे हैं।
नौकरी से हटाने की धमकी
बिहार सरकार द्वारा दिए गए हेल्पलाइन नंबर तो लग नहीं रहे हैं या जवाब नहीं दे रहे हैं। गरीब और दैनिक मजदूर को भोजन और राशन प्रदान नहीं किया जा रहा है। डॉक्टरों-नर्सों को पीपीई, N95 मास्क नहीं मिल रहे हैं उन्हें बिना सुरक्षा उपकरणों के काम करने या फिर नौकरी से हटाने की धमकी दी जा रही है। तंग होकर वे अपने खुद के वीडियो बनाने और इसे वायरल करने के लिए मजबूर हैं।
बिहार सरकार हेडलाइन मैनेजमेंट से अपनी साख बचाने की सख्त कोशिश कर रही है। कोरोना परीक्षण किट अनुपलब्ध होने के कारण प्रदेश में जाँच परीक्षण कम हो रही है और जो कुछ हो रही है उसका परिणाम आने से पहले ही मरीज़ मर रहे हैं। सरकार केवल लॉकडाउन लागू करने के लिए परेशान है जैसे कि इलाज करने की लॉकडाउन ही एकमात्र दवा है ।
हमने एक जिम्मेदार विपक्ष के रूप में बिहार सरकार को सभी प्रकार की हरसंभव सहायता और समर्थन की पेशकश की है। हम जनसमस्याओं से सरकार और प्रशासन को सूचित कर रहे हैं। उन्हें उपचारात्मक उपायों का सुझाव दे रहे हैं, लेकिन सरकार इन्हें अनसुना कर रही हैं। ऐसी अपारदर्शिता, अदूरदर्शिता और संकीर्णता के साथ राज्य सरकार इस महामारी से नहीं लड़ सकती ।
मैं एक बार फिर महामारी के खिलाफ इस लड़ाई में सीएम नीतीश कुमार को अपना बिना शर्त समर्थन दोहराता हूं और उनसे अनुरोध करता हूं कि वो केंद्र सरकार से बातचीत करें और इस संकट की घड़ी में अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों की भाँति बिहारवासियों से निरंतर संवाद क़ायम कर राज्य को संबोधित करें। इस बीमारी से हमें सामूहिक रूप से लड़ना होगा। यह एक लंबी लड़ाई है।