पटना, डेस्क : जबतक रहेगा समोसेेे में आलू, तबतक रहेगा बिहार में लालू। देश के एक वरिष्ठ पत्रकार का यह कथन आज भी संसदीय चुनाव में एक कथानक बना हुआ है। लालू प्रसाद के रांची रिम्स में भर्ती होने के बाद भी बिहार में लालू फैक्टर इस लोकसभा चुनाव में भी सिर चढ़ कर बोल रहा है। खासकर, राजद में। टिकट नहीं मिलने पर स्वाभाविक रूप् से नाराज पूर्व मंत्री एमएए फातमी ने स्पष्ट कहा कि अगर चुनाव की लगाम लालू के हाथों होती तो शायद उन्हें यह दिन नहीं देखना पड़ता।
लालू के ब्रांड प्रोडक्ट तेजस्वी की अग्निपरीक्षा
मतलब साफ है कि लगाम अब तेजस्वी के हाथों में है। तेजस्वी भी लालू फैक्टर के ही प्रोडक्ट हैं। लालू के इस ब्रांड प्रोडक्ट की अग्निपरीक्षा भी है, क्योंकि इनके कंधे पर जिम्मेवारी है कि महागठबंधन की कितनी सीटें अपनी झोली में झपटते हैं। वैसे, प्रेक्षकों का कहना है कि टिकट बंटवारे में एनडीए ने बड़ी स्मार्टली डील किया है। उसके पास सबकुछ पहले से ही फिक्सड जैसा था। यही कारण है कि उसने महागठबंधन के टिकट देने के लगभग एक महीने पूर्व ही अपने उम्मीदवारों को टिकट देकर मैदान में छोड़ दिया।
एक प्रचलित पर कठोर कहावत है कि आपरेशन, युद्व और चुनाव में पल-पल का महत्व होता है। शायद इस कठोर सच को सामने रख कर ही एनडीए ने टिकट दे दिया और महागठबंधन में अंतिम दौर तक द्वंद्व बना रहा। हालांकि टिकट बंटवारे में एनडीए ने भी गलती की। वह गलती सीतामढ़ी में एक नाॅन पाॅलिटिकल डाॅक्टर वरूण कुमार को टिकट देने के रूप में सतह पर आ गयी। पर, एनडीए ने रातोंरात अपनी भूल को सुधारते हुए सीतामढ़ी के ताकतवर नेता परिवार के वारिस पूर्व मंत्री सुनील कुमार पिन्टू को जद-यू के सिम्बल पर टिकट देकर गलती सुधार ली।
लालू ने डैमेज कंट्रोल की लिखी स्क्रिप्ट
बहरहाल, दरभंगा सीट से फातमी ने बसपा से टिकट के ऐलान के बाद अचानक ही मैदान नहीं छोड़ा है। बल्कि, इसका करंट जैसे ही रिम्स में लालू प्रसाद को लगा तो उन्होंने अपने विश्वासपात्र शिवानन्द तिवारी को मैनेज करने के लिए लगा दिया। तिवारीजी मैनेजमेंट के दक्ष माने जाते हैं। खासकर, राजद की उस लाॅबी के जिससे फातमी ताल्लुक रखते हैं। सूत्र बताते हैं कि उन्हें मना लेने के बाद शिवानन्द तिवारी ने इस बात पर भी राजी करा लिया कि वे सिवान के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन की पत्नी हेना शहाब के चुनाव प्रचार में जाएंगे। वैसे, शहाबुद्दीन से फातमी के पहले से ही बेहतर संबंध रहे हैं। पारिवारिक। शहाबुद्दीन उन्हें गार्जियन कह कर संबोधित करते रहे हैं। इस सबंध में फातमी से संपर्क करने पर उन्होंने बताया कि अगर वे बसपा से चुनाव लड़ते फिर भी वे हेना शहाब के प्रचार में जाते ही। फातमी ने स्वीकार किया कि उनकी वार्ता निरंतर शिवानन्द तिवारी से होती रही है। पर, चुनाव नहीं लड़ने की तिवारी की सलाह पर वे चुप्पी साध गये।