शकील व फातमी के नामांकन से महागठबंधन की एकता पर सवाल

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पटना। महागठबंधन के दो कद्दावर नेताओं के बगावत के सुर तेज होने के कारण भविष्य में इसकी एकता को लेकर संशय की स्थिति बरकरार हो गई है। एक हैं दरभंगा से भारत सरकार के पूर्व मंत्री एमएए फातमी और दूसरे हैं मधुबनी से पूर्व केन्द्रीय मंत्री डाॅ. शकील अहमद।
दोनों न केवल अपनी सेक्यूलर विचारधारा के लिए जाने जाते हैं, बल्कि इन दोनों की अल्पसंख्यक समुदाय पर मजबूत पकड़ के लिए भी जाने जाते हैं। हालांकि बिहार में महागठबंधन में मजबूत स्थिति रखने वाले राजद ने अल्पसंख्सकों को कई जगहों पर टिकट देकर उन्हें समेटने की कोशिश की है लेकिन उक्त दोनों नेताओं को टिकट से वंचित रचाने का खामियाजा महागठबंधन को भुगतना पड़ सकता है।
जानकारी के अनुसार कांग्रेस तारिक अनवर की स्थिति को बरकरार रखते हुए कटिहार से उन्हें टिकट दिया है, वहीं डाॅ. जावेद को किशनगंज से।
उसी तरह से राजद ने सरफरात आलम को अररिया, डाॅ. तनवीर हसन को बेगुसराय, अब्दुल बारी सिद्दीकी को दरभंगा से, सैयद फैसल हसन को शिवहर से तथा हिना सहाब को सीवान से। दरभंगा में राजद को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि वहां से एमएए फातमी ने स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में नामांकन भर दिए है। वहीं कांग्रेस शासन काल में दो मंत्री पदों को सुशोभित करने वाले मधुबनी से शकील अहमद के मधुबनी से स्वंतत्र प्रत्याशी के रूप में नामांकन देने से महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। उक्त दोनों नेताओं के बारे में बता दें कि दोनों ने अपने शक्तकाल में अल्पसंख्यकों की आवाज बन कर उभरे थे। ऐसी स्थिति में दरभंगा और मधुबनी के अल्पसंख्यक मतों में विभाजन होते दोनों सीटों पर गंभीर वोट असर पड़ सकता है। हालांकि इसको खारिज करते हुए राजद के वरिष्ठ नेता आरिफ हुसैन कहते हैं- अल्पसंख्सक मत बहुत ही संवेदनशील होता है। दोनों नेताओं के बड़े कद को लेकर कोई विवाद हो ही नहीं सकता। लेकिन, अल्पसंख्यक अपना मत वहीं देंगे जहां जीत सुनिश्चत देखेंगे।
(संजय उपाध्याय)

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