सारण क्यों है सुर्खियों में? हॉटसीट किश्त—3

0

पटना : 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की हॉटसीटों की तीसरी किश्त में आज हम सारण लोकसभा सीट की बात करते हैं। सारण सम्पूर्ण क्रांति के जनक जयप्रकाश नारायण की कर्मभूमि रहा है। सारण हाई-प्रोफाइल राजनीतिक रण भी रहा है, जहां से सम्पूर्ण क्रांति में जयप्रकाश नारायण का साथ देनेवाले छात्रनेता लालू प्रसाद यादव लंबे समय तक केंद्रबिंदु रहे हैं। वहीं राजद के लालटेन को फूंक मार कर बुझाने वाले राजीव प्रताप रूडी यहां से 3 बार सांसद चुने गए हैं।

गंगा, गंडक, सोन और सरयू के तट पर बसा सारण न सिर्फ धार्मिक रूप से, बल्कि ऐतिहासिक और राजनीतिक रूप से भी उर्वर भूमि रहा है। 1967 तक सारण सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा, जिसके बाद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने 1977 में जेपी लहर की आंधी में कांग्रेस के गढ़ को ध्वस्त कर दिया। लालू यहां से 1977, 1989, 2004 और 2009 में चार बार सांसद चुने गए। अब बारी थी भाजपा की और भाजपा की ओर से तुरुप का इक्का बने राजीव प्रताप रूडी। रूडी यहां से 1996, 1999 और 2014 में तीन बार सांसद चुने गए।

swatva

सारण का सियासी रण

सारण लोकसभा सीट 2008 में नए परिसीमन के बाद अलग हुआ। इससे पहले इसे छपरा संसदीय क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की ओर से 1957 में राजेंद्र सिंह निर्वाचित हुए थे। इसके बाद 1962 से 1971 तक लगातार तीन बार यहां से कांग्रेस ने रामशेखर सिंह के बल पर साख जमाए रखी। 1977 में लालू आये तो 1996 में राजीव प्रताप रूडी ने भाजपा की नैया पार लगाई। दरअसल, देखा जाए तो यहाँ मुकाबला यदुवंशी और रघुवंशी के बीच का ही होता है। दलों के हिसाब से देखें तो राजद और भाजपा के बीच ही टक्कर मानी जाती है। हालांकि कई दफा मुकाबला त्रिकोणीय भी दिखा, पर अंततोगत्वा जीत इन्हीं दलों में से किसी एक को मिली। माना जाता है कि 2014 में राजीव प्रताप रूडी और भाजपा को राजद और जदयू खेमे के वोटरों में बिखराव का फायदा मिला।

सारण की भौगोलिक-राजनीतिक पटकथा

सारण लोकसभा सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा क्षेत्र हैं- छपरा, सोनपुर, परसा, मढ़ौरा, अमनौर और गड़खा। चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि यहां तकरीबन 16,61,620 मतदाता हैं, जिनमें 8,91,476 पुरुष तो 7,70,114 महिला मतदाता। भौगोलिक स्थिति और जातीय गणित का हिसाब यह कहता है कि परसा, सोनपुर, गड़खा और मढ़ौरा विधानसभा क्षेत्र में राजद का तो अमनौर और छपरा की विधानसभा सीट पर भाजपा का कब्ज़ा होता है। दरअसल, सारण में किसी विशेष जाति का दबदबा तो नहीं, पर यादव और राजपूत वोटरों की संख्या थोड़ी अधिक जरूर है। मुकाबला इसलिए यदुवंशी बनाम रघुवंशी का हो जाता है।

क्या है सारण का गणित

दरअसल, 2014 में सारण की सीट से भाजपा के राजीव प्रताप रूडी ने राजद की राबड़ी देवी को परास्त किया। हालांकि, इससे पहले 2004 और 2009 में लालू यादव ने रूडी को हराया था। सारण में 2019 लोकसभा चुनाव के लिए एनडीए ने एक बार फिर राजीव प्रताप रूडी पर दांव खेला है। वहीं महागठबंधन की ओर राजद ने तेजप्रताप यादव के ससुर चंद्रिका राय को मैदान में उतारा है। हालांकि, ऐसा कहा गया कि चंद्रिका यादव की उम्मीदवारी पर तेजप्रताप यादव उनसे और अपनी पत्नी ऐश्वर्या राय से नाराज़ हो बगावत कर बैठे हैं। यह भी खबरें आईं कि तेजप्रताप ने अपना एक नया मोर्चा खोल दिया, लालू-राबड़ी मोर्चा और उनकी उम्मीदवारी को खत्म करने की मांग पर अड़ गए। इतना ही नहीं, राबड़ी देवी के मनाने के बाद भी वह नहीं माने और उल्टा उन्हें ही सारण लोकसभा सीट पर उम्मीदवारी पेश करने की हठ रख दी। लेकिन, इन तमाम अटकलों पर जल्द ब्रेक लग गया, जब तेजप्रताप यादव ने खुद ट्वीट कर यह कहा कि सोशल मीडिया और मीडिया में अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि मैंने एक नया मोर्चा खोल दिया जो कि झूठ है। मेरी पार्टी राजद है और रहेगी। इतना ही नहीं उन्होंने शनिवार को ट्वीट किया कि “जो भी मेरे और मेरे परिवार के बीच आएगा, उसका सर्वनाश निश्चित है।” ख़ैर, अब एक बार फिर से लालू परिवार के संबंधी चंद्रिका राय और भाजपा के राजीव प्रताप रूडी आमने-सामने होंगे। देखना यह है कि सारण की जनता सिटिंग एमपी राजीव प्रताप रूडी पर विश्वास जताती है या लालू के संबंधी चंद्रिका राय को मौका देते हैं।

सत्यम दुबे

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here