समाज व राष्ट्र में हमेशा प्रासंगिक रहे हैं दीन दयाल उपाध्याय

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पटना: दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रोफेसर प्रकाश सिंह ने कहा कि कुछ लोग राष्ट्र को नकारात्मक तरीके से लेते हैं। दीनदयाल जी का मानना है कि राष्ट्र को नकारात्मक तरीके से वही लोग लेते हैं जिन्होंने राष्ट्र को संघर्ष के दिन के रूप में देखा है। परंतु भारत में परिस्थितियां इसके विपरीत होती हैं। हमारे यहां राष्ट्र को संबंधों के रूप में बंधुत्व के रूप में देखा जाता है।

प्रकाश सिंह प्रज्ञा प्रवाह झारखंड के फेसबुक लाइव में पंडित दीनदयाल उपाध्याय एवं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर अपने विचार रख रहे थे।

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उन्होंने कहा कि हम देखते हैं कि भारत में कहीं भी कोई हादसा हो प्राकृतिक विपदा हो तो तुरंत ही आरएसएस के स्वयंसेवक उक्त स्थल पर पहुंच जाते हैं। सेवा कार्यों में जुट जाते हैं और अधिक से अधिक लोगों को राहत देने का प्रयास करते हैं। हम वर्तमान के कोरोना संक्रमण काल की बात करें या फिर 2013 में उत्तराखंड हादसे की। हर समय संघ के स्वयंसेवक सेवा के लिए अग्रिम पंक्ति में खड़े होते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हर स्वयंसेवक के अंदर राष्ट्र का जो बोध है। राष्ट्र के प्रति जो समर्पण है, वह जीवित है। वह जागृत भाव ही है जो हमें बंधुत्व की ओर ले जाता है। हमें ममत्व की ओर ले जाता है। हमें अपनत्व और राष्ट्र का महत्व समझाता है।

सिंह ने कहा कि हमारा राष्ट्रवाद मातृत्व का राष्ट्रवाद है। इस देश से हमारा मां और पुत्र का संबंध है, इसीलिए हम भारत को मातृभूमि कहते हैं। हिंदुत्व जीवन पद्धति के बोध का आधार हमारा राष्ट्रवाद ही है। जब कभी राष्ट्र के ऊपर विपदा आती है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक विभिन्न माध्यमों से अपनी सेवा कार्य में जुट जाते हैं।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने अंत्योदय का संदेश दिया। एकात्म मानववाद का संदेश दिया। उनके हर संदेश का एक ही मतलब है कि राष्ट्र के प्रति समर्पण रखकर हम अंतिम व्यक्ति की सेवा करें। यही वजह है पंडित दीनदयाल उपाध्याय ना सिर्फ संगठन के लिए बल्कि समाज व राष्ट्र के लिए हमेशा से प्रासंगिक रहे हैं। और वर्तमान परिपेक्ष की बात करें तो पंडित जी की प्रासंगिकता और भी ज्यादा बढ़ जाती है।

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