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रोजगार सृजन को लेकर बाहर से आ रहे मजदूरों से घिरने लगा प्रशासन, लालफीताशाही में बिना निर्देश के कुछ नहीं किया जा सकता

मोतिहारी: बिहार में बड़ी संख्या में कोरोना भय से भाग कर आ रहे मजदूरों को लेकर सरकार हलकान हो गई है। दूसरी ओर हालत ये है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का फ़िलहाल कोई रोजगार है ही नहीं। हालांकि नहर, पईन, तालाब तथा छोटे उद्योगों की बंद पड़ी इकाईयों को भी खोलने का निर्देश सरकार ने दिया है, पर वर्षों से बंद पड़ी इकाईयों को चलाना मुश्किल हो गया है।

केस स्टडी के रूप मे पश्चिमी चंपारण के गांव में पड़ी इकाई को जब बाहर से आये प्रवासी मजदूरों को हैंडल करने का दिया गया तो मजदूरों ने हाथ खड़े कर दिए। मशीन चली ही नहीं। कारण कि वह वर्षों से बंद पड़ी थी। जंग लगी हुई।

आहर, पईन तथा तालाब उड़ाही का कोई ब्लू प्रिंट नहीं

एक अधिकारी ने रोजगार सृजन को लेकर नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि तालाब, आहर, पईन का बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हुआ है। पहले उसे अतिक्रमण मुक्त कराना एक टास्क है तब उसे उड़ाही करा कर रोजगार सृजन करना। जिसे दो-चार महीनों में अमलीजामा पहनाना संभव नहीं जान पड़ता।

दूसरी ओर हालत यह भी है कि बाहर से आये मजदूरों के पास पैसे हैं ही नहीं। नतीजा, उनकी क्रय शक्ति नगण्य हो गयी है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ने लगा है। बिहटा मंडी के खाद्यान्न के थोक व्यापारी मुंशी साव कहते हैं कि पहले जब यही मजदूर आते थे तो छह अथवा साल भर की दैनिक उपयोग की वस्तुएं तथा खाद्यान्न खरीद लेते थे। अब, वे उधार मांगने आ रहे हैं। हालांकि मंडी बंद है बावजूद उन्हें किस गारंटी पर उधार दिया जाए। लाॅकडाउन के कारण देहाती क्षेत्रों आने वाले खाद्यान्न भी ठप्प पड़े हैं।

घोषणा हुई पर न मास्क भेजा गया न साबुन

स्थिति की भयावहता का आलम यह है कि स्थानीय प्रशासन के पास रोजगार सृजन का कोई ब्लू प्रिंट दिया ही नहीं गया। इससे स्थानीय प्रशासन भयभीत है कि अगर अपने मन से कुछ कर भी दिया गया तो धन-राशि का संकट गहरा जाएगा। लालफीताशाही में बिना निर्देश के कुछ किया ही नहीं जा सकता।

प्रखंडों में वर्क फोर्स की भारी कमी

एक अधिकारी ने बताया कि सरकार द्वारा प्रत्येक परिवार चार मास्क तथा एक साबुन प्रति परिवार देने की घोषणा के साथ ही प्रखंड कार्यालयों में गावों से फोन आने लगा। घोषणा तो कर दी गयी, पर मास्क तथा साबून भेजा ही नहीं गया। प्रशासन की और परेशानी यह है कि बार से आने वाले अप्रवासी मजूरों को टेस्ट कर क्वारेन्टाईन भी कराना है, भोजन-नाश्ता-पानी की व्यवस्था भी करानी है। वर्क फोर्स की कमी है-सो अलग।