पटना : जबसे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने राजनीति में उतरने और अपनी खुद की पार्टी लांच करने का ऐलान किया है तब से बिहार की राजनीति में सियासी उफान आ गया है। राजनीतिक विश्लेषक और चुनावी पंडितों के साथ साथ विभिन्न दलों में भी इस पर बहस छिड़ गई है। इसी कड़ी में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुप्पी साध ली है।
दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जब मंगलवार को प्रशांत किशोर को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने हाथ हिलाते हुए जवाब देने से मना कर दिया। नीतीश कुमार ने कहा छोड़िए यह सब और आगे की तरफ बढ़ गए लेकिन जब उनसे दवाब देकर यह सवाल फिर से किया गया तो उन्होंने कहा कि ई सब से हमारा कोई लेना देना नहीं है।
पीके का ट्वीट
बता दें कि, इससे पहले सोमवार को प्रशांत किशोर ने ट्वीट करते हुए कहा था कि वह जन सुराज के एजेंडे पर काम करना चाहते हैं। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा था कि लोकतंत्र में एक सार्थक भागीदार बनने और जन-समर्थक नीति को आकार देने में मदद करने की मेरी खोज ने 10 साल एक रोलरकोस्टर (ऊपर-नीचे होते रहने वाला झूला) की सवारी का नेतृत्व किया। अब मुझे लगता है कि मेरे लिए अगला अध्याय लोकतंत्र के वास्तविक मालिकों यानी जनता के पास जाने का समय है। साथ ही इससे जनता के सुशासन- ‘जन सुराज’ को बेहतर ढंग से समझा जा सकेगा। शुरूआत बिहार से।’
प्रशांत किशोर के इस ऐलान से बिहार में खलबली मच गई है। सबसे ज्यादा खलबली जदयू और भाजपा में ही मची हुई है क्योंकि प्रशांत किशोर ब्राह्मण जाति से आते हैं। ऐसे में बिहार में ब्राह्मण मत को अपना एक तरफा मत मानने वाली एनडीए में मंथन शुरू हो गई है, क्योंकि यदि पीके इसमें सेंध लगाते है तो इसका असर एनडीए पर अधिक पड़ेगा।
गौरतलब हो कि, इससे पहले बिहार उपचुनाव से भी सवर्ण समुदाय के मतदाता एनडीए से नाराज चल रहे है। जिसका सबूत यह रहा कि सवर्णों और भाजपा का गढ़ माने जाने वाला सीट पर भी राजद चुनाव जीत कर आई और सवर्णों ने भाजपा को नहीं बल्कि राजद को अपना मत दिया।