पटना : एनआरसी और सीएए को लेकर जहां 19 दिसंबर को वाम दलों की प्रस्तावित बंदी की पीठ पर सवार होकर कांग्रेस अपनी उपस्थिति पूरे बिहार में दर्ज कराएगी, वहीं 21 वह राजद की पीठ पर सवार होगी।
महागठबंधन में कांग्रेस की स्थिति बिहार में नेतृत्व की नहीं, बल्कि बड़ी क्षेत्रीय पार्टी के नेतृत्व में चलने की हो गई है। अलग बात है कि केन्द्र में कांग्रेस ने एनआरसी को प्रमुख मसला बना कर लीड ले रखा है। लेकिन बिहार में उसकी क्षमता पीछे-पीछे चलने वाली हो गई है।
जद-यू में एनआरसी को लेकर मतभेद
एनआरसी के खिलाफ बिहार में विरोध की मजबूत दस्तक राजद और वाम दलों ने ही दी है। जाप भी मुखर भूमिका में है। इस संबंध में पूछने पर सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि बिहार की स्थितियों पर नजर रखते हुए अपने समर्थक दलों का समर्थन करना पीछे-पीछे चलना नहीं, बल्कि साथ-साथ चलना है। वे आगे कहते हैं कि बिहार में एनआरसी पर खुद सत्तारूढ़ दल कन्फ्यूज्ड है। सरकार के साथ न तो उनके सलाहकार प्रशांत किशोर हैं और न ही जदयू के कई नेता।
किशनगंज अपना बेस बचाने की चुनौती
दूसरी ओर, जदयू के कई नेता एनआरसी पर सरकार के स्टैंड के खिलाफ हो गये हैं। हालांकि कोई खुल कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ बोलने का साहस नहीं कर रहा। इस संबंध में राजद के सीनियर लीडर आरिफ हुुसैन कहते हैं कि नीतीश कुमार को एनआरसी पर अपना स्टैंड क्लीयर करना चाहिए। उनके सलाहकार पीके कुछ और बोलते हैं और आरसीपी कुछ और। और, इन दोनों की बातों को सुनते-समझते नीतीश कुमार चुप रहते हैं।
विधानसभा चुनाव 2020 में है। जदयू खुद धर्मनिरपेक्षता के आधार पर चुनाव लड़ता रहा है। कश्मीर और लदाख के बाद जनसंख्या की दृष्टि से तीसरे सबसे अधिक मुस्लिम घनत्व वाले किशनगंज में कट्टर मुस्लिम व कई मामलों के कथित आरोपी महमूद अशरफ को जदयू ने अपनी पार्टी से लड़ाया था। अभी हाल ही में महमूद दिवंगत हो गये। अब वहां जदयू की असल चुनौती अपना बेस बचाने की है। ऐसे में एनआरसी पार्टी के लिए घातक हो सकता है।