NRC और NPR के गेम में फंस गए नीतीश? पढ़ें, लालू ने क्या रखी थी शर्त!
पटना : राजद की चुनावी रणनीति का खाका लगभग तैयार हो गया है। आज 64 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यसमिति की घोषणा के साथ ही राजद ने यह साफ कर दिया कि वह आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में परंपरागत ‘माय’ समीकरण पर ही भरोसा करेगा। 75 फीसदी पार्टी पदों पर मुस्लिम और यादव नेताओं को जगह दी गई है। राजद की इस रणनीति ने सीएम नीतीश की ‘यूएसपी’ को लिटमस टेस्ट पर डाल दिया है। इसका कारण एमवाई का ‘एम’ है। नीतीश ने एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ विस से प्रस्ताव पास कराकर यह मान लिया कि मुस्लिम वोटर उनके पाले में आ जायेंगे। लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ तब?
लालू ने रखी इस्तीफे की शर्त, पीछे हट गए नीतीश
सूत्रों के अनुसार एनआरसी और एनपीआर पर प्रस्ताव से पहले जब नीतीश—तेजस्वी की मुलाकात हुई, तब नीतीश को एक बार फिर महागठबंधन का नेता मानने की बात उड़ी। यह बात यूं ही नहीं उड़ी थी। अंदरखाने बात आगे भी बढ़ी, लेकिन लालू ने पहले नीतीश को इस्तीफा देने की शर्त रखवा दी। बताया जाता है कि लालू की इस शर्त के बाद नीतीश पीछे हट गए। तब तक एनआरसी और एनपीआर पर विरोध प्रस्ताव पास हो गया था। यह विरोध प्रस्ताव राजद के लिए तो सोने में सुहागा की बात हो गई। लेकिन नीतीश ने भाजपा के परंपरागत वोट बैंक को नाराज किया ही, मुस्लिम भी उनके साथ कितना जुड़ेंगे, यह आनेवाले चुनाव में देखने की बात होगी।
मुस्लिम और भाजपा का वोट बैंक दोनों नाराज
दरअसल, नीतीश कुमार की राजनीति हमेशा से दोधारी तलवार पर चलने की रही है। एनआरसी, एनपीआर और सीएए के मामले में भी उन्होंने यही किया। लेकिन लगातार 15 वर्षों से शासन कर रहे नीतीश कुमार शायद यह भूल गए कि एक गेंद हवा में रखने की रणनीति कभी—कभी बैकफायर भी कर जाती है। ऐसे में यह लगता नहीं कि बिहार के मुस्लिम राजद को छोड़ नीतीश पर भरोसा करेंगे। क्योंकि सीएए का मामला उन्हें लगातार सचेत करता रहेगा।
भाजपा का वोट ट्रांस्फर कराने की चुनौती
स्पष्ट है कि जदयू को नीतीश ने ‘ना खुदा ही मिला, ना विसाले सनम’ वाली स्थिति में डाल दिया है। विधानसभा से एनआरसी और एनपीआर पर विरोध प्रस्ताव पास कराने के बाद कोई गारंटी नहीं कि भाजपा का परंपरागत वोट जदयू को पूरी तरह ट्रांस्फर हो जाए। राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार नीतीश कुमार अपनी ही चालाकियों के जाल में चौतरफा फंस गए हैं। जहां भाजपा एनआरसी और एनपीआर पर छल से प्रस्ताव पास कराने के कारण बिदकी हुई है, वहीं प्रशांत किशोर ने उनकी विकास पुरुष की छवि को लगातार टार्गेट करना शुरू कर दिया है। वह भी आंकड़ों और तथ्यों को सामने रखकर।
जदयू की रैली ने बजाई खतरे की घंटी
हाल ही पटना में संपन्न जदयू कार्यकर्ता सम्मेलन को यदि पार्टी के चुनावी तैयारियों के लिहाज से देखें तो यह साफ हो जाता है कि नीतीश के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। जदयू का यह मेगा शो जहां फ्लॉप रहा, वहीं मामूली भीड़ जुटने से नीतीश भी काफी मायूस हुए। उधर राजद है कि लगातार बढ़त बनाता जा रहा है। टेंशन यह भी है कि अब महागठबंधन के पाले में भी नीतीश को कोई पूछ नहीं रहा। राजद को यह विश्वास हो चला है कि तेजस्वी के पक्ष में हवा बननी शुरू हो गई है।