पटना के गांधी मैदान में 1 मार्च को जनता दल यूनाइटेड की तरफ से कार्यकर्ता सममेलन का आयोजन किया गया था। इस सम्मलेन को लेकर जदयू के नेताओं का दावा था कि गांधी मैदान में कम से कम 2 लाख लोग पहुंचेंगे। लेकिन, दावों की पोल उस समय खुल गई जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मंच से नेताओं को संबोधित कर रहे थे और गांधी मैदान में छिट-पुट भीड़ थी।
इस सम्मेलन के बाद नीतीश कुमार अपने सबसे भरोसेमंद साथे आरसीपी (RCP) सिंह से खासे नाराज हैं। गांधी मैदान में भीड़ नहीं जुटने को लेकर नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह से कहा कि अगर आपसे काम नहीं हो पा रहा है तो बता दीजिए। दरअसल नीतीश कुमार के नाराजगी का मसला यह है कि उन्हें जदयू के संगठन को लेकर लगातार गलत जानकारी दी गई थी।
आरसीपी के कार्यशैली से नाराज
पार्टी के महासचिव तथा संगठन के प्रभारी आरसीपी सिंह तथा पार्टी के अन्य नेताओं के द्वारा यह दावा किया जा रहा था कि बिहार के सभी 72,700 पोलिंग बूथ पर जदयू के अध्यक्ष और सचिव नियुक्त हो चुके हैं। हर विधानसभा में बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं का सम्मेलन हो चुका है। सब मिलाकर बिहार में जदयू कार्यकर्ताओं की संख्या तीन लाख के पार जा चुकी है। प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने दावा किया था कि कम से कम दो लाख कार्यकर्ता तो जरूर आएंगे। आरसीपी के इसी दावे को मानकर लोग यह उम्मीद कर रहे थे कि अगर हर बूथ से 2 आदमी आ जाते तो लगभग डेढ लाख से ज्यादा लोग सम्मेलन में पहुँचते।
बदलाव के लिए विकल्प नहीं है नीतीश के पास
इस सम्मलेन के बाद नीतीश कुमार आरसीपी सिंह, ललन सिंह समेत पार्टी के अन्य नेताओं की खबर ले रहे हैं। लेकिन, सच्चाई यह है कि कार्यकर्ताओं के नाम पर इनके हिस्से में सिर्फ छोटे-बड़े ठेकेदार हैं। बाद बाकी जितने बचे हैं उनकी छवि जनता के बीच ठीक नहीं है। लोगों में स्वीकार्यता नहीं है। मैनेजमेंट तथा गठबंधन के बदौलत चुनाव जीत जाते हैं।
नीतीश पार्टी के अध्यक्ष हैं, मगर इनमें संगठन क्षमता नहीं है। ये आमलोगों से घुलते मिलते नहीं हैं। पार्टी के सर्वे सर्वा आरसीपी सिंह जिनका कार्यकर्ताओं के बीच कोई अच्छी छवि नहीं है। वशिष्ठ नारायण सिंह बूढ़े हो चुके हैं। ललन सिंह को उनकी अपनी जाति के लोग ही पसंद नहीं करते। बिजेंद्र यादव भी लोगों से अब उतना घुलते मिलते नहीं हैं। नए लोगों की जमीन पर कोई पकड़ नहीं है। नीरज कुमार को मोकामा से बाहर के लोग जानते ही नहीं है। संतोष कुशवाहा को आरसीपी सिंह अपने समानांतर नहीं बैठने दे सकते हैं। ऐसे में पार्टी का संगठन के तौर पर कमजोर होना स्वाभाविक है।
जदयू के जानकारों की मानें तो पार्टी में जल्द ही सांगठनिक बदलाव हो सकता है। लेकिन, चेहरा कहां से लाएंगे यह बहुत बड़ी समस्या है।