निर्भया के बहाने भारतीय न्यायतंत्र को फांसी देने की मंशा, कौन जिम्मेदार?
निर्भया के चारों हत्यारे बलात्कारियों को कल शायद फांसी पर लटका दिया जाएगा। लेकिन, उनके बचाव के लिए जो कानूनी तिकड़म किए गए उसने भारत के संवेदनशील लोगों के साथ ही कानून के जानकारों को सकते में डाल दिया है। उससे भारत की न्यायप्रणाली के समक्ष गम्भीर प्रश्न उठ गए हैं। यह पता लगाया जाना आवश्यक है कि निर्भया के चारों दोषियों के संरक्षक कौन लोग हैं, उनकी मंशा क्या है.? निर्भया मामले के बहाने देश में एक और नैरेटिव खड़ा किए जाने के प्रयास हुए कि यहां की कानूनी व्यवस्था लचर है, जिसमें दोषियों को भी बचाया जा सकता है। मतलब यह कि न्याय व्यवस्था के प्रति अविश्वास का माहौल बनाने का षड्यंत्र।
निर्भया मामले की पूरी सच्चाई जब सामने आयी थी तब पूरा भारत उद्वेलित हो उठा था। निर्भया के साथ एक निजी बस के ड्राईवर, कंडक्टर, खलासी क्लीनर ने दुष्कर्म ही नहीं किए बल्कि उसके साथ क्रूरता की सारी हदें पार कर दी। ऐसे जघन्य अपराधियों को कठोर दंड देकर दूसरे ऐसे लोगों को सबक दिया जा सकता है। लेकिन, उन घृणित हत्यारों के बचाव के लिए जिस प्रकार के तिकड़म किए गए उसने कानून के जानकारों को भी चैंकाया है। सर्वोच्च न्यायालय के वकील इंदिरा जय सिंह ने दोषियों को माफ कर देने की अपील की थी। उनके अपील के साथ वह तिकड़म परवान चढ़ने लगा और सारी हदें पार करते हुए इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के दरवाजे पर पहुंच गए। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग में भी इस मामले को लेकर अपील की गई है। कानून के बहाने यह भारत की अस्मिता व संप्रभुता पर प्रहार है।
यह सभी जानते हैं कि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में मुकदमेबाजी का खर्च करोड़ों में होता है। यह खर्च किसने और किस उद्येश्य से उठाया? इस प्रश्न का ऊत्तर भारत को अस्थिर करने व भाारत की छवि को विश्व में बिगाड़ने के लिए सक्रिय ताकतों को उजागर करने के लिए आवश्यक है। क्योंकि भारत के लोगों की भलाई करने वाले का मास्क लगाए ऐसी ताकतें वास्तव में भारत को कमजोर करने के लिए खतरनाक वारस की तरह काम कर रहे हैं। इनके इस खतरनाक अभियान को रोकने के लिए सरकार के साथ ही यहां के प्रबुद्ध नागरिकों का भी यह दायित्व है कि इनके चेहरे को उजागर करें। देशहित में यह आवश्यक है कि सरकार इस तथ्य की जांच कराए। तभी खड्यंत्र कारियों के एजेंडा के बारे में पता चलेगा।