पटना : कोरोना को डाउन करने के संकल्प के साथ लॉकडाउन के बीच आज शनिवार को पटना समेत तमाम बिहार में श्रद्धालुओं ने नहाय खाय के साथ चार दिवसीय चैती छठ का व्रत शुरू किया। राज्य सरकार ने कोरोना से बचाव के लिए पटना में गंगा और बिहार के अन्य भागों में विभिन्न नदियों के सभी घाटों पर जाने से पूर्ण पाबंदी लगा दी है। ऐसे में सभी श्रद्धालुओं से अपील की गई है कि वे इस महापर्व को अपने घर में ही करें।
श्रद्धालुओं को घर की छत पर ही अर्घ्य देने की हिदायत
राजधानी पटना में लाॅकडाउन के कारण पूजन सामग्री एकत्र करने में थोड़ी परेशानी जरूर हो रही है। बावजूद इसके व्रती संयम तथा आस्था के साथ इस महापर्व को अपने घर पर ही मनाने और इसे पूरा करने में जुटे हुए हैं। छठ पूजा मुख्य रूप से भगवान भास्कर की उपासना का पर्व है। इस बार खास यह है कि रवियोग एवं सिद्धयोग में चार दिवसीय छठ महापर्व शुरू हो रहा।
खरना कल, 30 को पहला अर्घ्य, सूर्य नष्ट करेंगे वायरस
बिहार के साथ ही समूचे देश में इस बार चैती छठ में भगवान भास्कर की उपासना से व्रतियों को कोरोना जैसी महामारी से लड़ने की क्षमता मिलेगी। चूंकि सूर्य की रौशनी से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है, इसलिए इसबार का चैती छठ काफी खास महत्व वाला है।
पंडित अक्षर कीर्ति के मुताबिक चैत्र शुक्ल चतुर्थी को रवियोग एवं सिद्धयोग में नहाय-खाय के साथ वासंतिक छठ महापर्व शुरू हो रहा है। इस पर्व को करने से रोग, शोक, भय आदि से मुक्ति मिलती है। सोमवार 30 मार्च को सायंकालीन अर्घ्य पर सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग का संयोग बन रहा है। जबकि 31 मार्च मंगलवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य पर द्विपुष्कर योग का शुभ संयोग बन रहा है ।
क्या है छठ व्रत करने की पौराणिक कथा
छठ व्रत करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से ही चली आ रही है। स्कंद पुराण के मुताबिक राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था। उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था। पर्व के प्रथम दिन नहाय-खाय में लौकी की सब्जी, अरवा चावल, चने की दाल, आंवला की चटनी के सेवन का खास महत्व है। खरना के प्रसाद में ईख के कच्चे रस, गुड़ के सेवन से त्वचा रोग, आंख की पीड़ा समाप्त हो जाती है। वहीं इसके प्रसाद से तेजस्विता, निरोगिता व बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है। भगवान भास्कर को सप्तमी तिथि अत्यंत प्रिय है। विष्णु पुराण के अनुसार तिथियों के बंटवारे के समय सूर्य को सप्तमी तिथि प्रदान की गई। इसलिए उन्हें सप्तमी का स्वामी कहा जाता है। सूर्य भगवान अपने इस प्रिय तिथि पर पूजा से अभिष्ठ फल प्रदान करते हैं।