नीतीश के फैसले पर मायावती ने खड़े किये सवाल तो बचाव में उतरे संजय पासवान
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बड़ा दलित कार्ड खेला है. सीएम नीतीश ने अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत सर्तकता मीटिंग में आदेश दिया कि अगर एससी-एसटी परिवार के किसी सदस्य की हत्या होती है, वैसी स्थिति में पीड़ित परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का प्रावधान बनायें। सीएम नीतीश ने अफसरों से कहा कि तत्काल इसके लिए नियम बनाएं ताकि पीड़ित परिवार को लाभ दिया जा सके।
नीतीश सरकार के बहकावे में कतई न आयें दलित
नीतीश के इस फैसले पर नाराजगी जताते हुए बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि बिहार विधानसभा आमचुनाव के पहले वर्तमान सरकार एक बार फिर एससी/एसटी वर्ग के लोगों को अनेकों प्रलोभन/आश्वासन आदि देकर उनके वोट के जुगाड़ में है जबकि अपने पूरे शासनकाल में इन्होंने इन वर्गों की घोर अनदेखी/उपेक्षा की व कुंभकरण की नीन्द सोते रहे, जिसके हिसाब-किताब का अब समय।
मायावती ने कहा कि अगर बिहार की वर्तमान सरकार को इन वर्गों के हितों की इतनी ही चिन्ता थी तो उनकी सरकार अबतक क्यों सोई रही? जबकि इनको इस मामले में यूपी की बसपा सरकार से बहुत कुछ सीखना चाहिए था। अतः इन वर्गों से अनुरोध है कि वे नीतीश सरकार के बहकावे में कतई न आयें।
बिहार में अब दलितों की भी पुकार सुनी जाएगी
वहीँ नीतीश के इस फैसले का स्वागत करते हुए भाजपा नेता संजय पासवान ने दलितों के लिए मुख्यमंत्री की घोषणा को स्वागत योग्य बताया। पासवान ने कहा कि बिहार की राजनीति में फॉर (for) दलित ऑफ़ (of) दलित बाय (by) दलित की राजनीति देर से आई, लेकिन दुरुस्त आई।
संजय पासवान ने कहा कि बतौर दलित नेता होने के नाते मेरे लिए बेहद खुशी की बात है कि बिहार में अब दलितों की भी पुकार सुनी जाएगी। बिहार की राजनीति में सत्ता पहले सवर्णों के हाथ में थी, फिर ओबीसी के हाथ में गए और अब दलितों के हाथ में जानी चाहिए।
महागठबंधन पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि तथाकथित महागठबंधन जिसमें आप सिर्फ राजद और कांग्रेस बचे हैं उनको भी दलितों का सम्मान करते हुए किसी दलित नेता को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करना चाहिए। बिहार की राजनीति में दलितों को उचित सम्मान मिले, इसके लिए भारतीय जनता पार्टी सदैव काम करते आई है और अब नीतीश कुमार भी इसके पक्ष में है, जिनका हम खुले दिल से स्वागत करते हैं।