मजदूरों के हक की हुंकार को दबा रही नीतीश सरकार!

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पटना: एक तरफ बिहार सरकार के बड़े-बड़े दावे और दूसरी तरफ उन दावों की खुलती पोल। यूं कह लें कि सुशासन के सरकार की कथनी और करनी में फर्क है। एक ओर सरकार खुद को गरीब और असहाय का मसीहा बताती है और दूसरी ओर यही मसीहा उन असहायों को लोहे के पिंजर रूपी नियमों के अंदर कैद करना चाहती है।

क्वारेंटाइन सेंटर की स्थिति बदहाल

जबकि सच्चाई यह है कि क्वारेंटाइन सेंटर पर हंगामा कर रहे प्रवासियों को सेंटर पर प्रशासन द्वारा सुविधा नहीं दी जा रही है। सेंटर पर कुव्यवस्था का आलम यह है कि ना शौचालय ठीक है, ना ही पेयजल की व्यवस्था है और कहीं-कहीं तो खाना मिलता ही नहीं है। इसके कारण क्वारंटाइन किये गए सारे प्रवासी आक्रोशित होकर प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर देते हैं।

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समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण हंगामा

इस तरह के कई मामले बिहार के अलग-अलग जिलों से सामने आ रही हैं। ताजा मामला है लखीसराय जिले के हलसी प्रखंड का जहाँ क्वारंटाइन सेंटर में प्रवासी मजदूरों ने ख़राब भोजन देने को लेकर जमकर हंगामा किया। बीते दिन वैशाली जिले के जंदाहा प्रखंड के नारी खुर्द गांव स्थित पंचायत क्वारंटाइन सेंटर पर रखे गए लोगों को खाना नहीं दिए जाने पर शुक्रवार को जमकर हंगामा किया तथा प्रशासन विरोधी नारे लगाए।

आपदा प्रबंधन विभाग का आदेश

मजदूरों के यही अधिकार को दबाने के लिए आपदा प्रबंधन विभाग ने 13 मई को एक आदेश जारी करती है। बता दें बिहार आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत की ओर से एक निर्देश पत्र जारी किया गया, जिसमें उन्होंने कहा है कि क्वारेंटाइन सेंटर पर जो लोग हंगामा या अनुशासनहीनता दिखाएंगे, उन्हें रेल टिकट का किराया तथा किसी भी तरह की सहायता राशि नहीं दी जाएगी।

उन्हें चुपचाप बस सहना होगा

अगर देखा जाए तो इस निर्देश का सीधा-सीधा मतलब यह निकलता है की क्वारेंटाइन सेंटर में आश्रय लेने वालो को अगर किसी तरह की असुविधा हुई तो वह इसका खुलकर विरोध भी नहीं कर पाएंगे। उन्हें चुपचाप बस सहना होगा। सहना होगा इस सुशासन के सरकार में छाए कुशासन को। सहना होगा इन निर्देशों के पीछे छिपे तानाशाही को और इन सब से ज्यादा सहना होगा अपनी लाचारी को।

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