मजदूर दिवस विशेष: असंगठित क्षेत्र के मनोविज्ञान को संतुलन में रखने की आवश्यकता
आचार्य अरुण दिवाकर नाथ बाजपेई
(पूर्व कुलपति, अर्थशास्त्री, एवं चिंतक)
वर्तमान संकट को देखते हुए असंगठित क्षेत्र के मनोविज्ञान को संतुलन में रखना आवश्यक है
पटना: करोना संकट ने अर्थव्यवस्था के जिस क्षेत्र को सबसे अधिक कष्ट पहुंचाया है वह विश्व भर का असंगठित क्षेत्र है जिसे अनौपचारिक क्षेत्र में कहा जाता है। भारतवर्ष इस समस्या से अछूता नहीं है। सभी ने टेलिविजन और मीडिया चैनल पर देखा होगा कि किस प्रकार से दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गुजरात से मजदूर जो असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे थे वे अपने-अपने घर जाने के लिए कितना परेशान थे क्योंकि जहां वह अभी काम कर रहे थे वहां पर न तो काम था न सुरक्षा ।ऐसी स्थिति में उन्हें अपने घर के अलावा कहीं भी संरक्षण प्राप्त होने की संभावना नहीं थी।
भारतवर्ष का असंगठित क्षेत्र विश्व के असंगठित क्षेत्र से बिल्कुल भिन्न
भारतवर्ष का असंगठित क्षेत्र विश्व के विकसित राष्ट्रों के असंगठित क्षेत्र से बिल्कुल भिन्न है क्योंकि यहां पर यह अधिक बिखरा हुआ है, इसके पंजीयन की व्यवस्था ठीक नहीं है, इनका अपना कोई संगठन नहीं है, ये अधिकांश श्रमिक है वो भी कम पढ़े लिखे, अकुशल ,जिनकी मजदूरी भी कम है,अस्थाई और प्रवासी है। यह हमारी अर्थव्यवस्था का बहुत प्रमुख क्षेत्र है। इसके दो भाग हैं एक तो उद्यमी जिनकी पूंजी लगी हुई है और दूसरे श्रमिक जिनका उल्लेख ऊपर किया गया। असंगठित क्षेत्र का निष्पादन प्रमुख रूप से श्रम शक्ति पर ही निर्भर करता है । इसमें स्वरोजगार में लगे हुए लोगों की भी संख्या बहुत बड़ी होती है । यह क्षेत्र स्थानीय मांग को पूरा करने वाला स्वयं उत्पन्न होने वाला क्षेत्र है । किसी बड़े शहर में झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोग अधिकांशतः असंगठित क्षेत्र के लोग होते हैं।
विकास के बढ़ते क्रम में मीडिया भी असंगठित क्षेत्र का व्यापार है
असंगठित क्षेत्र के अंतर्गत काम करने वालों का बहुत बड़ा वर्ग है। इसमें जो लघु व सीमांत किसान है, भूमिहीन कृषि मज़दूर है, बटाईदार ,मछुआरे ,बीड़ी बनाने वाले, पैकिंग काम में लगे हुए, बिल्डिंग एवम निर्माण उद्योग के कार्यरत मज़दूर, होटल रेस्टोरेंट, कपड़ा मिलो में काम करने वाले, चमड़ा उद्योग, खदान, ईंट भट्टे उद्योग में लगे मज़दूर, ठेके पर लिए गए, बंधुआ मजदूर, सब्जी और फल विक्रेता , कूड़ा बीनने वाले, सफाई कर्मी , कुली, रिक्शा चलाने वाले, घरेलू काम में लगे हुए, मिडवाइफ, अखबार बांटने वाले, नाई, दर्जी,चूड़ी कांच उद्योग,बर्तन,पत्तल बनाने वाले उद्योग, साइकिल एवम् गाड़ी मैकेनिक, लुहार,कुम्हार,सुनार,जुलाहे, हतकर्घा उद्योग में लगे श्रमिक,इत्यादि सम्मिलित होते हैं। विकास के बढ़ते क्रम में मीडिया,आईटी, बैंकिंग तथा इंश्योरेंस सेक्टर में भी असंगठित क्षेत्र का व्यापार है।
असंगठित क्षेत्र अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है
दुर्भाग्य से जब कोई राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय आपदा आती है चाहें वह अर्थव्यवस्था में उच्चावचन से संबंधित हो,मौसम का संकट हो, राजनीतिक या युद्ध संबंधी या महामारी संकट जैसी स्थिति जो कि वर्तमान में आई है, इन सब का सबसे बड़ा प्रभाव असंगठित क्षेत्र पर पड़ता है जो पलट कर पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।
83% श्रम शक्ति असंगठित क्षेत्र में लगी हुई है
भारतवर्ष में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार लगभग 83% श्रम शक्ति असंगठित क्षेत्र में लगी हुई है और लगभग 50% सकल राष्ट्रीय उत्पाद का हिस्सा इस क्षेत्र से सृजित होता है, जिसमें कृषि के कुल योगदान का लगभग 95% ,खदान उद्योग का 18% ,विनिर्माण उद्योग का 27%, विद्युत ,गैस और जलापूर्ति का 3% ,निर्माण उद्योग का 46%, होटल और रेस्तरां एक उद्योग का 51%, परिवहन और भंडारण क्षेत्र का 44% ,बैंकिंग,वित्त और बीमा क्षेत्र का 9% शिक्षा इत्यादि का 12% भाग असंगठित क्षेत्र से उत्पन्न होता है।
असंतुलन को कम करने में असंगठित क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका
कहने का तात्पर्य है कि असंगठित क्षेत्र जहां एक ओर अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा रोजगार देने वाला क्षेत्र है वही सकल राष्ट्रीय उत्पाद में भी इसका योगदान काफी महत्वपूर्ण है। अर्थव्यवस्था में मांग की शक्तियों को निर्धारित करने और उसे स्थिरता प्रदान करने के अतिरिक्त निर्यात में असंगठित क्षेत्र का योगदान उल्लेखनीय है । भारत की जिस प्रकार की भौगोलिक संरचना है उसमे असंतुलन को कम करने में भी इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है। थोक विक्रेताओं से दूरदराज तक सामान को ले जाने का काम यह असंगठित क्षेत्र ही करता है।
केंद्र शासन ने इनके समुचित अध्ययन एवं नीति निर्माण के लिए नेशनल कमीशन फॉर इंटरप्राइजेज इन अनॉर्गनिज्ड सेक्टर (NCEUS)की स्थापना भी की है। इनके संरक्षण हेतु कई कानूनों का निर्माण भी किया गया है। पर उनकी क्रियाशीलता संदेहास्पद है।
संगठितऔर असंगठित दोनों क्षेत्रों में परस्पर समन्वय स्थापित करना आवश्यक
समय की मांग है कि संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में परस्पर समन्वय स्थापित करते हुए एक यथार्थवादी नीति का निर्माण हो जो असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिक और उद्यमी दोनों को समुचित संरक्षण और दिशानिर्देश प्रदान करें।
आपदा काल में प्रबंधन की अलग व्यवस्था हो। क्योंकि इससे पूरी अर्थव्यवस्था की गति निर्धारित होती है। असंगठित क्षेत्र का मनोविज्ञान वर्तमान संकट को देखते हुए कहीं बिगड़ न जाए इसलिए उसे संतुलन में रखना तत्काल आवश्यक है।