महिला किसानों को मिले अलग पहचान

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पटना : राजधानी में महिला किसानों की सशक्तिकरण को लेकर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। बिहार सरकार में कृषि विभाग के उप निदेशक अनिल झा ने महिला किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि जो चीज़ पहले आश्चयर्जनक लगती थी वही चीज़ अब सामान्य लगती है। उन्होंने कहा कि पहले कोई भी महिला किसानों की बात नहीं करता था लेकिन अब उनकी बात की जा रही है। उन्होंने कहा कि मैं खुद सरकार से उनके लिए सुविधाओं की बात करूंगा। अनिल झा ने कहा कि अब ज़मीन हो तो भी और ज़मीन न हो तो भी वो अपना ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवा सकती हैं और सरकार के द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न योजनाओं का लाभ भी प्राप्त कर सकती हैं। कार्यक्रम में महिला किसानों और कृषि बजट पर पर अपनी राय रखते हुए ऑक्सफेम के प्रभास ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में अगर देखें तो किसानों की समस्या को दूर करने के लिए सरकार के द्वारा जो प्रयास किया गया वो अधूरा है। कृषि बजट की राशि भी घटती चली गई। उन्होंने कहा कि सरकार को कृषि बजट में महिला किसानों के लिए अलग से कुछ प्रावधान किया जाना चाहिए। महिला किसानी को बढ़ावा देने के लिए सरकार को कुछ सुविधाओं की घोषणा करनी चाहिए। ऑक्सफेम इंडिया की कार्यकारी निदेशक रानू भोगल ने भी महिला किसानों को आगे बढ़ाने और उनको पहचान दिलाने के लिए हरसंभव मदद की बात कही। उन्होंने कहा कि महिला किसानों की अपनी अलग पहचान होनी चाहिए। इसके लिए हमें कड़ी मेहनत की जरूरत पड़ेगी। सेवा भारत की रेनाना झाववाला ने कहा कि विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रयास से समाज मे परिवतर्न साफ-साफ दिख रहा है। उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि यदि हम और प्रयास करेंगे तो हमें और भी सफलता मिल सकती है। गुजरात की शिल्पा ने कहा कि 60 से 70 प्रतिशत किसानी का काम महिलाएं ही कर रही है लेकिन एक किसान के रूप में उनकी पहचान नहीं बन पाई है। उन्होंने कहा कि खेती की ज़मीन उनके नाम पर नहीं होने की वजह से उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। भोपाल से आए आशीष मंडल ने कहा कि सामाजिक आर्थिक सशक्तिकरण के तौर पर यदि महिला किसानों के उत्पादन को बाजार में उतारा जाए तो उनको मार्किट मिलने की पूरी संभावना है।

मधुकर योगेश

swatva

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