मधेपुरा में लालू—शरद को पप्पू से मिल रही कड़ी टक्कर, हॉट सीट—किश्त 2

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पटना : बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट मिथिला और कोसी क्षेत्र का राजनीतिक मंच है। विकास के मामले में पिछड़ा यह क्षेत्र अपने राजनीतिक आकाओं की मंशा का भुक्तभोगी है। यह सीट बिहार के दिग्गज राजनेताओं का अखाड़ा मानी जाती है। कभी बिहार की राजनीति के केंद्रबिंदु लालू प्रसाद यादव भी इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 1967 में भागलपुर लोकसभा क्षेत्र से अलग होने के बाद मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र सामने आया। तब से लेकर अब तक यहां यादव प्रतिनिधियों का दबदबा रहा है। कभी राजेन्द्र प्रसाद यादव तो कभी शरद यादव। कभी लालू प्रसाद तो कभी पप्पू यादव का सिक्का यहां खूब चला है। वहीं राजद और जदयू जो बिहार की दो बड़ी क्षेत्रीय पार्टियां हैं, उनके बीच ही मुकाबला देखने को मिलता है। 2019 के आम चुनाव में यहां मुकाबला बड़ा दिलचस्प हो गया है। कुछ लोग इसे त्रिकोणीय कहते हैं, तो कुछ दो पक्षीय।

क्या है यहां का गणित?

एनडीए ने यहां से दिनेश चंद्र यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है, वहीं महागठबंधन ने जदयू के बागी नेता शरद यादव को राजद कोटे से मैदान में उतारा है। इससे राजद का विरोध कर अपनी नई पार्टी बनाने वाले पप्पू यादव नाराज हो गए और उन्होंने निर्दलीय ही दांवा ठोक दिया। बहरहाल, यह कयास पहले से लगाया जा रहा था कि राजद सुप्रीमो लालू यादव और उनके परिवार से तल्खियों की वजह से पप्पू यादव का टिकट काटा जायेगा और हुआ भी वही।

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मधेपुरा का सियासी इतिहास

मधेपुरा लोकसभा सीट 1967 के चौथे लोकसभा चुनाव से प्रकाश में आया। 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी तो 1968 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में बीपी मंडल सांसद रहे। 1971 में कांग्रेस की ओर से राजेंद्र प्रसाद यादव तो 1977 में भारतीय लोकदल की ओर से बीपी मंडल संसद भवन पहुंचे। 1980 के आम चुनाव में राजेंद्र प्रसाद यादव ने कांग्रेस के टिकट पर दोबारा जीत दर्ज की तो वहीं 1984 में कांग्रेस की ही ओर से महावीर प्रसाद यादव जीते। 1989 में जनता दल की ओर से संसद भवन पहुंचे रामेन्द्र कुमार यादव। 1991 और 1996 के चुनाव में जनता दल के टिकट पर शरद यादव सांसद चुने गए। 1998 में राजद से लालू प्रसाद यादव तो वहीं 1999 में जदयू की ओर से शरद यादव तीसरी बार सांसद चुने गए। 2004 के चुनाव में लालू यादव ने शरद यादव को शिकस्त दी और सांसद चुने गए लेकिन उन्होंने उसी वर्ष इस्तीफा दे दिया। उपचुनाव हुए और राजद की ओर से पहली बार सांसद चुने गए पप्पू यादव। 2009 के चुनाव में शरद यादव रिकॉर्ड चौथी बार सांसद चुने गए। 2014 में राजद ने पप्पू यादव पर दांव खेला और दांव सही साबित हुआ, जब पप्पू यादव ने शरद यादव को तकरीबन 50000 वोटों से परास्त किया।

मधेपुरा में जातीय गणित का खेल

नए परिसीमन के बाद मधेपुरा लोकसभा सीट में 6 विधानसभा क्षेत्रों का विघटन हुआ। आलमनगर, बिहारीगंज, मधेपुरा, सोनबर्षा, सहरसा, और महिषी। मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में तकरीबन 18,84,216 मतदाता हैं, जिनमें 56 फीसदी पुरूष, तो 44 फीसदी महिला मतदाता हैं। 23 अप्रैल को चौथे चरण में यहां चुनाव है और मधेपुरा यादव बहुल क्षेत्र है। मधेपुरा क्षेत्र में तकरीबन 3,30,000 वोटर हैं तो वहीं 1,80,000 मुस्लिम, 1,70,00 ब्राह्मण, और 1,10,000 राजपूत वोटर भी हैं। 1989 के बाद से जनता दल की साख यहां लगातार बढ़ती दिखी। हालांकि यह माना जाता है कि 1998 में लालू यादव की जीत ने राजद के लिए एक कैडर वोट इस क्षेत्र में खड़ा कर दिया, जिसमें सेंध मार पाना मुश्किल है।

वर्तमान सांसद पप्पू यादव हैं घेरे में

मधेपुरा के वर्तमान सांसद पप्पू यादव लगातार विवादों के घेरे में हैं। दरअसल, जन अधिकार पार्टी के संरक्षक पप्पू यादव, एक चैनल के द्वारा किये गए स्टिंग आपरेशन में चुनावी खर्च पर दिए गए बयान की वजह से सुर्खियों में हैं। पप्पू यादव का वीडियो वायरल हुआ जिसमें वे उनके द्वारा किये गए चुनाव खर्च जो ब्यौरा बताते नजर आ रहे हैं वह वास्तविक ब्यौरे से मेल नहीं खाता। हालांकि, पप्पू यादव की चल सम्पति के दिये गए ब्यौरे से ज्यादा का खर्च बताना, उनकी आलोचना का मुख्य कारण बन रहा है। बहरहाल, इस स्टिंग आपरेशन में पप्पू यादव के अलावा कई और दलों के राजनेता भी संलिप्त पाए गए हैं। खैर, अब देखना दिलचस्प है कि यादव बहुल क्षेत्र में जनता किसे अपना प्रतिनिधित्व सौंपती है।

सत्यम दुबे

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