क्या है हॉट सीटों का इतिहास, भूगोल और वर्तमान? किश्त—1 बेगूसराय
पटना : 2019 के लोकसभा चुनाव से जुड़े कुछ रोचक अप्डेट्स की पहली किश्त में आज हम बेगूसराय सीट की बात करते हैं। कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाने वाले बेगूसराय में राजनीतिक हालात दिलचस्प मोड़ ले चुका है। पूर्व में यहां से कांग्रेस के अलावा जदयू, राजद और जनता पार्टी के उम्मीदवार तक जीते हैं। पर आज़ादी के इतने सालों बाद पहली बार भाजपा यहां 2014 के लोकसभा चुनाव में जीती और सांसद चुन कर आये कद्दावर नेता दिवंगत भोला बाबू।
दरअसल, वर्ष 2018 में भोला बाबू की मृत्यु हो गई। अब बेगूसराय सीट पर भाजपा की जिम्मेदारी मिली फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह को। बेगूसराय सीट जिसे बिहार का लेनिनग्राद भी माना जाता है, वो 2019 लोकसभा चुनाव में काफ़ी अहम बन चुका है। न सिर्फ महागठबंधन के तनवीर हसन की वजह से बल्कि बिहार की राजनीति के रास्ते देश की राजनीति में एंट्री मारने की कोशिश में जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार भी यहीं से मैदान में हैं। दिवंगत भोला बाबू भाजपा के ‘लकी चार्म’ रहे तथा 2014 में सांसद बनने से पहले वर्ष 2000 में वे विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के टिकट से विधायक चुन कर आये थे।
बेगूसराय की राजनीतिक पृष्ठभूमि
बहरहाल, बेगूसराय जिले में 2009 के परिसीमन से पहले 2 लोकसभा क्षेत्र थे, बेगूसराय और बलिया। परिसीमन के पहले तक बेगूसराय कांग्रेस तो बलिया सीट वामपंथ के पास रही। एक बार नजर डालते हैं अब तक के लोकसभा चुनावों पर 1952 के पहले लोकसभा चुनाव से लेकर 1967 के चौथे लोकसभा चुनाव तक यह सीट कांग्रेस के मथुरा प्रसाद मिश्रा के पास थी। 1967 में पहली और आखिरी दफ़ा सीपीआई के योगेंद्र शर्मा यहां से चुन कर आए। 1971 और 77 के चुनाव में श्याम नंदन मिश्रा एक बार कांग्रेस तो दूसरी बार जनता पार्टी के टिकट पर जीत कर सांसद चुने गए। 1980 और 84 में कृष्णा शाही कांग्रेस की ओर से दो दफ़ा सांसद चुनी गईं। और 1989 में ललित विजय सिंह बदलती सरकार में जनता दल से सांसद चुने गए पर बहुत लंबे समय तक नहीं रह सके। कृष्णा शाही तीसरी बार 1991 में यहां से फिर संसद पहुंची। 1996 में पहली बार निर्दलीय चुन कर आए रामेन्द्र कुमार। 1998 के 12वीं लोकसभा चुनाव में सदस्य निर्वाचित हुए कांग्रेस के राजो सिंह, वहीं 1999 के 13वीं लोकसभा चुनाव में राजद ने अपना खाता खोला और सांसद बने राजवंशी महतो। 2004 के 14वीं और 2009 के 15वीं लोकसभा में बेगूसराय सीट जदयू के पास रही। 2004 में राजीव रंजन सिंह तो 2009 में बेगूसराय के पहले मुस्लिम सांसद चुन कर आए डॉ मोनजिर हसन। 2014 में बेगूसराय की जनता ने भोला बाबू को जिताया और भाजपा का केसरिया ध्वज पहली बार यहां लहराया।
क्या कहता है बेगूसराय का गणित
बेगूसराय में कुल 19,53,007 वोटर हैं, जिनमे से 60 फीसदी पुरूष तो 40 फीसदी महिला मतदाता हैं। बेगूसराय में 29 अप्रैल को चौथे चरण में चुनाव होना है। यहां जातीय गणित का बड़ा दिलचस्प खेल है। बेगूसराय भूमिहार बहुल क्षेत्र है, जहां भूमिहारों की संख्या 4.5 लाख है, तो वहीं 2.5 लाख मुस्लिम और 80000 यादव वोटर हैं। पिछली बार रनर अप रहे तनवीर हसन 60000 वोटों से पराजित हुए थे। इस बार भोला बाबू की गैर-मौजूदगी में भूमिहार वोटों के बंटने का फायदा देख महागठबंधन ने तनवीर हसन पर दांव खेला है। इस बार भाजपा सारा दारोमदार अपने ब्रांडेड चेहरे गिरिराज सिंह पर डालकर गणित साध रही है। कयास लगाया जा रहा है कि जो प्रत्याशी वोटों के बंटने और ध्रुवीकरण को अपने पक्ष में करने में सफल रहेगा, वो बाज़ी मार लेगा। कन्हैया कुमार के अलावा डीयू और नलसार से अकादमिक शिक्षा ग्रहण कर आये गौरव कुमार सिंह भी युवा चेहरे के रूप में मैदान में उतर रहे हैं। दिलचस्प ये है कि गौरव पढ़े-लिखे युवा भी हैं और भूमिहार भी। अब इससे किसका नफ़ा किसका नुकसान है, यह देखना भी बड़ा दिलचस्प होगा।
इस सीट के बारे में एक और रोचक तथ्य भी है। दरअसल, 2014 में भाजपा के टिकट से जीत कर आए भोला बाबू , 2009 में नवादा से सांसद चुने गए थे। इस बार बेगूसराय में भाजपा का चेहरा बने गिरिराज सिंह भी 2014 में नवादा से सांसद हैं। इस बात पर सबकी नजर टिकी है कि क्या गिरिराज सिंह, भाजपा और भोला बाबू की साख को 2019 में भी बरकरार रख पाते हैं या नहीं। खैर लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है।
सत्यम दुबे