पटना : नीतीश कुमार एनडीए में बने रहेंगे या नहीं, इसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। मोदी कैबिनेट के शपथ ग्रहण से लेकर बिहार में नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल विस्तार तक, बिहार की राजनीति नीतीश कुमार के इर्द—गिर्द घूमती रही। अब इसमें रणनीतिकार प्रशांत किशोर का तड़का भी लगने की चर्चा है। अभी तक नेपथ्य में चल रहे पीके ने आंध्र की सफलता के बाद अचानक बिहार की राजनीति में फिर इंट्री मारी है। इधर उनके लिए मंच भी बिल्कुल तैयार है क्योंकि रघुवंश बाबू और मांझी के बाद राबड़ी देवी भी जदयू को भाजपा से पीछा छुड़ाकर राजद महागठबंधन में आने का आफर दे चुकी हैं। पिछले चार-पांच दिनों के घटनाक्रमों से एक बार फिर सुगबुगाहट शुरू हो गई है कि एनडीए में सबकुछ ठीक नहीं है। ऐसे में प्रशांत किशोर की ताजा इंट्री राजद—जदयू तालमेल के लिहाज से काफी अहम मानी जाती है।
एनडीए में सबकुछ ठीककाक नहीं
एनडीए में दोनों बड़ी पार्टियों—भाजपा और जदयू के नेताओं के बयानों से साफ झलकता है कि अंदरखाने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। दोनों दलों को करीब से जानने वाले भी कहते हैं कि दोनों दलों में एक दूसरे के प्रति अविश्वास इस कदर बढ़ गया है कि कोई भी बड़ा नेता मामले को संभालने के लिए आगे नहीं आना चाहता। नीतीश कुमार की तरफ से भी अब तक खुलकर तो बयान सामने नहीं आए हैं, लेकिन जदयू के दूसरे नेताओं के आक्रामक तेवर से मामला कितना गंभीर है, वह साफ झलकता है।
राजद से तालमेल के लिए लाए गए
लेकिन प्रशांत किशोर के लिए नया टास्क—’जदयू—राजद तालमेल’, इतना आसान भी नहीं। ताजा घटनाक्रम को आगे बढ़ाते हुए अगर बिहार में एनडीए गठबंधन टूटा तो इससे नीतीश सरकार पर क्या असर पड़ेगा, यह भी देखना होगा। ऐसे में राजद को साधने के लिए नीतीश को किसी मंझे हुए रणनीतिकार की बहुत जरूरत होगी, जिस भूमिका में प्रशांत किशोर माहिर रहे हैं। यही कारण है कि मीडिया में भी प्रशांत किशोर के बिहार में फिर सक्रिय होने को जरूरी माना जा रहा है। पीके ही वह शख्स हैं जो पूर्व की भांति पर्दे के पीछे रहकर लालू—नीतीश की भावी रणनीति को अमल में लाने की दिशा में काम कर सकते हैं।
पीके ने पूर्व में भी की थी कोशिश
दरअसल, जदयू के राजद के साथ जाने का फार्मूला प्रशांत किशोर का ही था। बिहार में एनडीए के साथ सरकार बनने के बाद भी वे चाहते थे कि जदयू और राजद एकबार फिर एक हो जाएं। इसके लिए उन्होंने लालू यादव से पांच बार मुलाकात भी की थी। लेकिन बात नहीं बनी। फिर, लोकसभा चुनाव के दौरान जब लालू की किताब के माध्यम से यह बात जब मीडिया में लीक हुई तब नीतीश कुमार ने मीडिया के सामने आकर सफाई दी। नीतीश ने ऐसी किसी भी कोशिश से साफ तौर पर इनकार किया कि उन्होंने आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के पास जेडीयू उपाध्यक्ष और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को भेजा था। नीतीश कुमार ने उस समय यह भी कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार बनेगी और जदयू इसमें शामिल होगा।
अब चूंकि बिहार में भाजपा—जदयू के बीच मामला फिर बिगड़ता दिख रहा है, ऐसे में प्रशांत किशोर का फिर से लाइम लाइट में आना काफी अहम हो गया है। हालांकि, प्रशांत किशोर ने बदलते घटनाक्रम के बारे में अभी कुछ कहा तो नहीं है, लेकिन कहा जा रहा है कि एनडीए में नीतीश कुमार काफी आहत महसूस कर रहे हैं। यही कारण है कि नीतीश कुमार को एक बार फिर से प्रशांत किशोर की जरूरत पड़ गयी और उन्होंने आरजेडी और जेडीयू को करीब लाने की दिशा में काम करना शुरू भी कर दिया है।