कपड़े धोने वाली अब धोएगी वंशवाद के दाग, मुन्नी के सहारे सहयोगियों को चित करना चाहते हैं लालू
बीते दिन भाजपा और जदयू कोटे से राज्यसभा उम्मीदवारों के नामांकन के साथ-साथ राजद द्वारा घोषित बिहार विधान परिषद के लिए उम्मीदवारों के नाम चर्चा में रहे। राष्ट्रीय जनता दल द्वारा बिहार विधानसभा कोटे से विधान परिषद के द्विवार्षिक चुनाव 2022 के लिए मो॰ कारी सोहैब , मुन्नी रजक और अशोक कुमार पांडेय को अपना उम्मीदवार बनाया है।
देश में सिर्फ लालू यादव ही हैं सामाजिक न्याय के पुरोधा और वंचितों की आवाज
इन तीनों उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा चर्चा मुन्नी देवी को लेकर है। मुन्नी देवी को लेकर यह प्रचारित किया जा रहा है कि दूसरों का कपड़ा धोने और स्त्री करने का काम करने वाली महिला को लालू यादव ने बिहार विधान परिषद का टिकट थमा दिया। इसके बाद बिहार से लेकर देशभर में सोशल मीडिया पर सुनियोजित तरीके से लालू यादव को एक बार फिर से सामाजिक न्याय के पुरोधा के तौर पर स्थापित करने की शुरुआत कर दी गई है। मुन्नी देवी की उम्मीदवारी को लेकर लोग कई तरह की बातें कह रहे हैं। लेकिन, उन बातों का निष्कर्ष यही है कि लालू यादव देश भर में एक ऐसे नेता हैं, जो किसी को भी सदन पहुंचा सकते हैं। सामाजिक न्याय के असली पुरोधा और वंचितों की आवाज देश में सिर्फ लालू यादव ही हैं। वहीं, मुन्नी देवी की उम्मीदवारों को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं भी शुरू है, इसे हर तरह के लोग अलग-अलग नजरिए से देख रहे हैं।
परिवारवाद के आरोप से मुक्ति चाहते हैं लालू
मुन्नी देवी की उम्मीदवारी को लेकर राजनीति में रुचि रखने वाले लोगों का कहना है कि लालू यादव पर सबसे ज्यादा परिवारवाद का आरोप लगता है। इसका ताजा उदाहरण मीसा भारती को राज्यसभा उम्मीदवार बनाया जाना। ऐसे में लालू यादव परिवारवाद के आरोप से मुक्ति के लिए कपड़ा धोने और स्त्री करने वाली मुन्नी देवी को उम्मीदवार बनाया है।
ए टू जेड के नारों को सार्थक करने में राजद
इसके साथ ही हाल ही में तेजस्वी यादव के मेंटरो ने यह कैंपेन चलाया है कि राजद अब सामाजिक न्याय के साथ-साथ ए टू जेड की पार्टी बन गई है। इस ए टू जेड के नारों को सार्थक करने के लिए राजद ने अति पिछड़ा समाज की मुन्नी देवी को उम्मीदवार बनाकर इस नारे को चरितार्थ करने में जुटे हैं।
बिहार की राजनीति में चर्चा का केंद्र बनाने के लिए लालू यादव ने ऐसा कदम उठाया
इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि लालू यादव बहुत दिनों बाद बिहार की राजनीति में सक्रिय हुए हैं। लालू यादव ऐसे समय में बिहार की राजनीति में सक्रिय हुए हैं, जब एनडीए में स्थिति ठीक नहीं चल रही है तथा बिहार की राजनीति को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। ऐसे में एक बार फिर बिहार की राजनीति में अपने आप को चर्चा का केंद्र बनाने के लिए लालू यादव ने ऐसा कदम उठाया है।
JDU-BJP की तरह चाल चले लालू
साथ ही यह भी चर्चा है कि जदयू और बीजेपी ने राज्यसभा चुनाव के लिए जिन उम्मीदवारों को टिकट दिया है, उसे लेकर दोनों दल यह दावा कर रहे हैं कि ये लोग सामान्य कार्यकर्ता हैं और सामान्य पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखते हैं। दोनों दल कार्यकर्ताओं की मेहनत और लगन के आधार पर निर्णय लेती है। इसलिए जदयू ने सबसे पहले राज्यसभा उपचुनाव के लिए पार्टी में 30 साल से सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे अनिल हेगड़े तथा झारखंड जदयू के प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो को उम्मीदवार बनाया। वहीं, बीजेपी ने सामान्य पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले सतीश चंद दुबे और शंभू शरण पटेल को उम्मीदवार बनाया है। इसलिए राजद ने कारी सोहैब, मुन्नी रजक और अशोक कुमार पांडेय को उम्मीदवार बनाया।
तीसरी सीट के लिए राजद को 17 वोट की आवश्यकता इसलिए दलित को किया जा रहा आगे
संख्याबल के मुताबिक महागठबंधन में कीच-कीच जारी है। 76 विधायक होने के कारण राजद को 2 सीटें आसानी से मिल जाएगी। तीसरे सीट के लिए कांग्रेस और वामदल में खींचतान जारी है। राजद के 14 विधायक तथा वामदलों के 16 विधायक होने के बाद महागठबंधन जादुई आंकड़े से एक कदम पीछे रह जा रही है, ऐसे में वामदल को सीट अपने खाते में लेने के लिए कांग्रेस या AIMIM के विधायकों का समर्थन जरुरी होगा। वहीं, राजद को तीसरी सीट जीतने के लिए वामदलों के समर्थन के आलावा 1 वोट की आवश्यकता है।
इसके अलावा सबसे अहम बात यह है कि सहयोगी दलों को झांसे में लेकर लालू ने जिस तरह से उम्मीदवार का ऐलान किया है उस हिसाब से मुन्नी देवी का चेहरा आगे करना राजद की मजबूरी है। क्योंकि, राजद के अन्य सहयोगी दल लगातार यह कह रहे थे कि राजद ने विधान परिषद चुनाव को लेकर 1 सीट का वादा वादा किया गया था। लेकिन, सहयोगी दलों को कॉन्फिडेंस में लिए बगैर राजद ने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। इसलिए राजनीतिक जानकार यह कहते हैं कि राजद मुन्नी देवी का चेहरा इसलिए आगे की है। क्योंकि, दलित के नाम पर वामदल विरोध नहीं कर पाएंगे, क्योंकि वामदल भी दलित, अति पिछड़ा तथा वंचितों के आवाज के लिए लड़ाई लड़ता है, अगर ये सारे दल मुन्नी देवी की उम्मीदवारी का विरोध करते हैं, तो इसका प्रत्यक्ष नुकसान होगा।