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याद आए आंबेडकर, वक्ता बोले : नई शिक्षा नीति में बाबा साहब के विचारों का समावेश

पटना : मंगलवार को पटना के बी आई ए सभागार में बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के महापारिनिर्वाण दिवस के निमित्त भारतीय शिक्षण मंडल, दक्षिण बिहार प्रांत एवं बिहार यंग थिंकर्स फोरम के संयुक्त तत्वाधान में ‘अम्बेडकर एक शिक्षाविद एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’ विषय पर विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए बी आर शंकरानंद जी ने कहा कि अंग्रेजी शिक्षा नीति का उद्देश्य मानव निर्माण नहीं था बल्कि इसका मूल उद्देश्य भारतीयता एवं भारतीयों के विवेक को नष्ट करना था। हमें शिक्षा में भारतीय आचरण और मूल्यों को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें महापुरुषों के जीवन को समझने के लिए विशिष्ट क्षेत्रों में उनके योगदान को समझने और उसका अध्ययन करने कि आवश्यकता है।

बाबासाहेब अम्बेडकर ने अत्यंत विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी अपने आपको न केवल सामजिक जीवन में स्थापित किया बल्कि समाज के सभी वर्गों के उत्थान एवं उनके विकास के निमित्त अथक कार्य किया। बाबासाहेब अम्बेडकर के पदचिन्हों पर चलकर एवं उनके विचारों को आत्मसात कर के ही उनको सच्ची श्रद्धांजली दी जा सकती है।

नई शिक्षा नीति समाज में व्याप्त सभी प्रकार की विषमताओं को समाप्त करने का प्रयास

राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि इसका का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य बाबासाहेब के विचारों का शिक्षा के क्षेत्र में अनुशरण करना है। नई शिक्षा नीति समाज में व्याप्त सभी प्रकार की विषमताओं, चाहे वह सामाजिक विषमता हो, आर्थिक विषमता हो, शारीरिक विषमता हो या भौगोलिक विषमता हो, को समाप्त करने के दिशा में एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रयास है।

शिक्षा का उद्देश्य समाज को सकारात्मक रूप से परिवर्तित करना

प्रोफेसर शेफाली रॉय जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि शिक्षा का उद्देश्य समाज को सकारात्मक रूप से परिवर्तित करना है। इसका उद्देश्य स्वमूल्यांकन है, इसका उद्देश्य विनम्रता है। बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के विचारों पर प्रकाश डालते हुए हुए उन्होंने कहा कि डॉ अम्बेडकर ने अपने विचारों के माध्यम से समाज को सभी वर्गों के लिए बेहतर बनाने का प्रयास किया।

डॉ. अम्बेडकर के समाज में समानता, समरसता एवं न्याय लाने के प्रयास को भी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में आत्मसात करने के आवश्यकता है। शिक्षा नीति के उपर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि नीति के साथ-साथ हमें अपने अपने नियत को भी बदलने कि आवश्यकता है। हमें अपने अंदर के चेतना को जागृत करने कि आवश्यकता है तभी हम अपने सामाजिक क्षमता को पूर्ण रूप से प्राप्त कर पाएंगे।

सभ्यता और संस्कृति के पृष्ठभूमि को समझने की आवश्यकता

प्रोफेसर गुरुप्रकाश पासवान ने संगोष्ठी में अपनी बात रखते हुए कहा कि हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति के पृष्ठभूमि को समझने की आवश्यकता है। हमारी संस्कृति में संवाद का एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, यह प्राचीनकाल से हमारी सभ्यता का आधार रहा है। बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर संवाद की इस संस्कृति के एक महान वाहक थे, जिन्होंने समाज के विभिन्न आयामों में अपने संवाद एवं अपने विचारों के माध्यम से अपना विशिष्ट योगदान दिया।

बाबासाहेब अम्बेडकर सिर्फ वंचितों के नेता नहीं थे अपितु उनके व्यक्तित्व का एक बहुत व्यापाक पक्ष था, जिसे राजनीतिक कारणों से सामाजिक चेतना का हिस्सा नहीं बनने दिया गया। अम्बेडकर जी के विचारों को समझने के लिए आवश्यक है कि हम समरसता एवं सामाजिक न्याय के विषय में उनके विचारों को समझें।

संगोष्ठी की अध्यक्षता भारतीय शिक्षण मंडल के दक्षिण बिहार प्रांत अध्यक्ष प्रोफेसर बीरेंद्र कुमार ने की।