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बंगाल को लेकर पूरे देश में आंदोलन खड़ा करने की तैयारी

वेबिनार के माध्यम से देश के बुद्धिजीवियों ने रखे विचार

पटना : पश्चिम बंगाल में लगातार हो रही हिंसा को लेकर देशभर के बुद्धिजीवियों ने रविवार को प्रज्ञा प्रवाह के बैनर तले राष्ट्रीय वेबिनार के माध्यम से एकत्रित होकर उस पर चिंता व्यक्त की और निर्णय लिया गया कि बंगाल का पड़ोसी राज्य होने के नाते बिहार के बुद्धिजीवी इस पर चिंता करें और बंगाल में हो रही हिंसा के संबंध में राज्यपाल को ज्ञापन दें।

बंगाल में पीड़ित देशवासियों की सहायता के संबंध में पहल करने की मांग करें। इसके अलावा और राष्ट्रीय स्तर पर बुद्धिजीवियों का एक प्रतिनिधिमंडल बनाकर भारत के राष्ट्रपति और उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भी बंगाल हिंसा की जमीनी हकीकत से संबंधित ज्ञापन सौंपा और इस दिशा में शीघ्र ठोस कदम उठाने की मांग करें।

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद जो हिंसा हुई उसे महज पोस्ट-पोल प्रतिक्रिया के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि अगर जड़ में जाकर इसकी पड़ताल करेंगे तो पता चलेगा कि 1946 में डायरेक्ट एक्शन डे के दिन जो ‘कोलकाता कीलिंग’ हुई थी उसके बाद से ही सुनियोजित षड्यंत्र के तहत बंगाल में हिंसा की जाती है। यह बंगाल के एक और विभाजन की ओर इशारा करता है। उक्त बातें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मॉलिक्यूलर मेडिसिन के शिक्षक प्रो. गोवर्धन दास ने कहीं। वे रविवार को प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय वेबिनार में बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे विषय था- ‘बंगाल में हिंसा व संविधान के संघीय स्वरूप पर बढ़ते खतरे।’

भाजपा की पकड़ बढ़ने से हिंदू समाज में साहस और मनोबल बढ़ा

प्रो. गोवर्धन दास ने कई दस्तावेजों के आंकड़े और घटनाओं का उदाहरण देते हुए बताया कि आजादी के ठीक बाद पहले कांग्रेस और उसके बाद 3 दशकों से अधिक समय तक बंगाल में वामपंथी सरकारों में किस प्रकार विदेशी प्रभाव में आकर वहां डेमोग्राफिक चेंज लाया गया। यही कारण है कि मुर्शिदाबाद और 24 परगना जैसे जिलों में आज सरस्वती पूजा जैसे पर्व करने पर भी हिंदू समाज को खतरे का सामना करना पड़ता है। पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव में 34000 नामांकन नहीं हो पाए थे और इस बार जो विधानसभा चुनाव हुए हैं उसमें यह बात गौर करने वाली है कि 91% मुसलमानों के वोट सिर्फ तृणमूल कांग्रेस को गए हैं वहीं यह भी देखने वाली बात है कि हिंदुओं के 65% वोट भाजपा के खाते में आए हैं। एक और चिंताजनक बात है कि मुसलमानों के जो वोट कांग्रेस समेत विभिन्न दलों में बंट जाते थे, वे इस बार एकमुश्त होकर तृणमूल के खाते में गए हैं यानी कि अपनी एकता को लेकर पश्चिम बंगाल के मुसलमान सतर्क हैं। भाजपा की पकड़ बढ़ने से वहां के हिंदू समाज में साहस और मनोबल बढ़ा है इससे इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन चुनौती इतनी बड़ी है कि अभी से पूरे देश को एक होकर बंगाल की समस्या के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि पश्चिम बंगाल की वर्तमान समस्या से पूरे भारत को बड़े संकट का सामना करना पड़ेगा।

भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदू समाज की स्थिति की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि विभाजन के समय पाकिस्तान में हिंदुओं की जनसंख्या 22% थी जो घटकर 1% से भी कम रह गई है। इसी प्रकार बांग्लादेश में विभाजन के समय हिंदुओं की जनसंख्या 33% थी जो अब घटकर मात्र 7% रह गई है। वही इस डेमोग्राफिक आंकड़े के विपरीत बंगाल और बिहार के पूर्वी हिस्से में मुस्लिमों की जनसंख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है। इतने अप्राकृतिक तरीके से जनसांख्यिकी में परिवर्तन ऐसे ही नहीं हो गया, बल्कि इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी ताकतों द्वारा लंबे समय से सुनियोजित षड्यंत्र चलाया जा रहा है।

बंगाल की हिंसा भारतवर्ष के लिए चिंता का विषय

इससे पूर्व परिचर्चा का आरंभ करते हुए प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक जे. नंदकुमार ने विषय प्रवेश कराया और कहा कि वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल में जो हिंसात्मक कार्य हो रहे हैं वह कानून के विरुद्ध तो है ही, साथ ही संवैधानिक मर्यादा के खिलाफ भी है और भारत के संघीय ढांचे को कमजोर करने का कुत्सित प्रयास भी है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के समय से और उसके बाद जो भी हो रहा है वह सीधे-सीधे भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता पर हमला है। यह सिर्फ बंगाल के लोगों की नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष के लोगों की के लिए चिंता की बात है और इसलिए देश के कोने-कोने के बुद्धिजीवियों को इस पर गंभीरता से विमर्श करके इस दिशा में ठोस पहल करना चाहिए। इस परिप्रेक्ष्य में आज का यह विषय अत्यंत ही प्रासंगिक एवं ज्वलंत है।

इराक व सीरिया की तरह बांग्लादेशी घुसपैठिए वामपंथी गुंडों के साथ मिलकर करते अत्याचार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्वी क्षेत्र के प्रचारक और राम पद पाल ने पश्चिम बंगाल की भौगोलिक जानकारी देते हुए बताया कि बांग्लादेश के साथ पश्चिम बंगाल की बाई 100 किलोमीटर लंबी सीमा है और भौगोलिक कारणों से हर जगह सुरक्षाबलों की तैनाती संभव नहीं है। इसी का लाभ उठाकर आए दिन हजारों लाखों की संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिए बंगाल में आते हैं और वहां का माहौल और फिर करते हैं। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार इराक और सीरिया में नृशंस तरीके से हिंसा होती है उसी प्रकार यहां बांग्लादेशी घुसपैठिए वामपंथी गुंडों के साथ मिलकर अत्याचार करते हैं। बंगाल चुनाव के बाद कम से कम 3500 हजार गांव में हिंसा हुई है। कबीलाई तरीके से सो डेढ़ सौ के झुंड में आते हैं और अपने राजनीतिक विरोधी कार्यकर्ता के घर पर हमला बोल देते बोलते हैं उनके घरों को आग लगा दिया जाता है, सारे सामान तोड़फोड़ कर नष्ट कर दिए जाते हैं, मां-बाप के सामने बच्चों को नृशंस तरीके से हत्या कर दी जाती है। सामूहिक बलात्कार की घटनाएं भी सरेआम हो रहीं हैं। इसमें एक बात सामने आई है कि अधिकतर बलात्कारी बांग्लादेश से आए हुए मुसलमान है जिनकी उम्र 18 से 25 वर्ष के बीच रहती है। दुख की बात है कि सामूहिक दुष्कर्म करने वाले 8-10 मुसलमानों के बीच एक दो हिंदू समाज के भी लड़के रहते हैं। कोलकाता महानगर में भारतीय मजदूर संघ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एवं अन्य राष्ट्रीय विचार के संगठनों के कार्यालयों पर तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने कब्जा कर लिया है।

जब असम व बंगाल जैसे प्रांतों को बांग्लादेश के साथ मिलाकर एक ग्रेटर इस्लामिक कंट्री बनाने की मांग की जाएगी

वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल के अलग-अलग हिस्सों में हिंदू समाज के प्रति जो घृणा देखी जा रही है वह महज तात्कालिक नहीं है बल्कि इसकी जड़ें 100 साल से भी अधिक पुरानी है। 1905 में ब्रिटिश सरकार द्वारा बंग भंग के प्रयास शुरू किए गए थे उस समय तो गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के प्रयासों से मामला शांत हो गया था लेकिन उसके बाद से जब जो मौका मिला विभाजन का रिश्ता करते हैं अपना सिर उठाती नहीं। और 1947 में आखिरकार मुसलमानों ने अपने लिए दो हिस्सों में पाकिस्तान के रूप में अलग देश ले ही लिया। उसी पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा आज बांग्लादेश है। समय नारा चलता था- “हंसकर लिए हैं पाकिस्तान, लड़ कर लेंगे हिंदुस्तान।” वह दिन दूर नहीं है जब आसाम बंगाल जैसे प्रांतों को बांग्लादेश के साथ मिलाकर एक ग्रेटर इस्लामिक कंट्री बनाने की मांग की जाएगी।

बंगाल में जो आग लगी है उससे बिहार और झारखंड अछूते नहीं

प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्र संयोजक रामाशीष सिंह ने कहा कि ऐसे नाजुक समय में बिहार और झारखंड के बुद्धिजीवियों को चाहिए कि वह एकत्रित होकर राज्यपाल के पास जाकर ज्ञापन सौंपा क्योंकि बंगाल में जो आग लगी है उसे से बिहार और झारखंड अछूते नहीं है। झारखंड के साहिबगंज पाकुड़ जैसे इलाके और बिहार के किशनगंज अररिया पूर्णिया कटिहार जिला के पहले ही घुसपैठियों के कुकृत्यों से आतंकित हैं और अगर इस पर भी लगाम नहीं लगा तो या आज धीरे-धीरे मधुबनी दरभंगा मुजफ्फरपुर जैसे क्षेत्रों में भी आ जाएगी।

इस राष्ट्रीय कार्यक्रम में अखिल भारतीय संयोजक जे. नंदकुमार, क्षेत्र संयोजक रामाशीष सिंह, बिहार प्रांत के संयोजक कृष्ण कांत ओझा, वीर कुंवरसिंह विश्वविद्यालय के कुलपति समेत 100 से अधिक बुद्धिजीवी, शिक्षक, पत्रकार उपस्थित थे।