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तेजस्वी ने बताया, क्या-क्या हुआ सदन में पहली बार

पटना : तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए कहा कि लोहिया जयंती और भगत सिंह के शहादत दिवस 23 मार्च पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी पुलिस से करोड़ों लोगों द्वारा निर्वाचित माननीय सदस्यों को जूतों से पिटवाने और वेशम के अंदर बंदूक़ की नोक पर काला पुलिसया क़ानून पास करा लोकतंत्र को शर्मसार करने का कलंकित कार्य किया। नीतीश कुमार सदन में निरंतर झूठ बोल रहे है।

उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि आज से 46-47 वर्ष पूर्व 1974 में अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठ विपक्ष के समाजवादी सदस्यों ने सदन चलाया है। लेकिन पुलिस ने कभी सदन के अंदर विधायकों को नहीं पीटा। लेकिन संघी मुख्यमंत्री ने ऐसा किया।

उन्होंने कहा कि 1978 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी जी सशस्त्र बिल लेकर आए थे। विपक्षी सदस्यों ने आपत्ति की। उन्होंने लोकतांत्रिक मर्यादाओं का निर्वहन करते हुए स्वयं उठकर उस बिल को select committee के पास भेजा। संशोधन किया।

इसी सदन में 1986 में नेता प्रतिपक्ष कर्पूरी जी सहित विपक्षी सदस्यों ने HEC के मामले को लेकर 3 दिन-रात इसी सदन में विरोध प्रदर्शन किया। 1986 में नीतीश कुमार भी इसी सदन के सदस्य थे। क्या नीतीश कुमार को याद नहीं है? कितना झूठ बोलते है? उस वक्त तीन दिन सदन में धरना, विरोध प्रदर्शन और नारेबाज़ी करने के बावजूद को विपक्ष के सदस्यों को पुलिस ने बलपूर्वक नहीं हटाया था।

अब तो नीतीश कुमार जूतों से माननीय सदस्यों को पिटवा रहे है। इन्हें शर्म आनी चाहिए। सदन में वेशम के अंदर पुलिस को खड़ा कर बंदूक़ की नोक और दंगा विरोधी दस्ते के लाठी-डंडों के दम पर पुलिस बिल पास करवा रहे है।

तेजस्वी ने कहा कि नीतीश कुमार बताए, क्या पहली बार विधानसभा अध्यक्ष कक्ष के बाहर नारेबाज़ी हुई है? क्या पहली बार आसन पर कोई चढ़ा है? क्या पहली बार किसी विधेयक का विरोध हुआ है? फिर किस बात का अहंकार नीतीश कुमार पाले हुए है?

हाँ! पहली बार सदन के इतिहास में बंदूक़ की नोक पर गोली चलाने वाला कोई काला क़ानून पास हुआ? हाँ! पहली बार सदन के अंदर माननीय विधायकों को पुलिस के हाथों चप्पल-जूतों से पीटवा गया? हाँ! पहली बार महिला विधायकों की साड़ी खोली गयी? उनके ब्लाउज़ में हाथ डाला गया? उनकी चैन तोड़ी गयी? उनके बाल पकड़ घसीटा गया?

मुख्यमंत्री किस मुँह और चरित्र से विधानसभा अध्यक्ष की मर्यादा की बात करते है। इस पूरे सत्र में सत्ता पक्ष ने आसन और माननीय अध्यक्ष महोदय को अपमानित करने का काम किया। अध्यक्ष महोदय पर संरक्षण के आरोप लगाए गए। नीतीश कुमार के मंत्रियों ने भरे सदन में अध्यक्ष को व्याकुल ना होने की धमकी दी? पहली बार नीतीश कुमार के मंत्रियों ने अध्यक्ष को उंगली दिखाने का काम किया? किस मर्यादा और लोकतांत्रिक परंपरा की बात नीतीश कुमार कर रहे है? उन्हें माफ़ी माँगनी चाहिए।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि नीतीश जी और उनके मंत्रियों ने इस कार्यकाल में सदन के अंदर लोकतांत्रिक विमर्श का स्तर गिराने का काम किया है। उन्होंने मुझे धमकी देने का काम किया। मेरे ख़िलाफ़ जाँच और कारवाई करने की धमकी दी। माले और कांग्रेस के विपक्षी सदस्यों को देख लेने की धमकी दी।

विधानपरिषद के अंदर सड़क छाप भाषा का प्रयोग करते हुए उन्होंने संख्या बल का हवाला देकर सत्ता पक्ष के सदस्यों को मार पीट के लिए उकसाने का काम किया। नीतीश कुमार ने इस सत्र में कभी भी मेरे तार्किक और तथ्यपूर्ण सवालों का जवाब नहीं दिया। सवाल पूछने पर वो भड़क जाते है।आपा खो देते है।

मुख्यमंत्री दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करने की बजाय उन्हें संरक्षण देकर क्लीन चिट दे रहे है। उनके इन्हीं क्लीन चिटों से अफ़सरशाही बढ़ी है। अधिकारी जान लें, नीतीश कुमार ने अपनी पारी खेल ली है, अब ये आपका career ख़राब करना चाहते है। इन अधिकारियों के बारे में क्या कहा जाए। वो तो इनसे भी बड़े पलटीबाज है। Exit पोल के बाद हमारे पास सबसे पहले और सबसे अधिक फ़ोन इनके ही वर्षों से वफ़ादार अधिकारियों के आए थे।

हमारे पास 200 से अधिक इनके पुलिसकर्मी और प्रशासनिक अधिकारियों की फ़ुटेज है। हमने सभी को चिह्नित किया है। बर्खास्त और दागी स्वजातीय अधिकारियों के ज़रिए नीतीश कुमार जो गुंडागर्दी करवा रहे है। वो सब संज्ञान में है।

बिहार पुलिस जदयू पुलिस बन गयी है। नीतीश कुमार और जदयू पुलिस अच्छे से जान लें, हम राजद के लोग है। हम भाजपा के लोग नहीं जो पुलिस अत्याचार करेगी और हम सह लेंगे। जदयू पुलिस बेचारे भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं को पीट सकती है लेकिन राजद के नहीं। बिहार विधानसभा में CM द्वारा लोकतंत्र का चीरहरण, विधायकों की पिटाई, बेरोजगारी, महँगाई, किसान बिल के विरुद्ध कल, 26 मार्च को पूरे महागठबंधन ने बिहार बन्द का आह्वान किया है।