द्वापर काल से जुड़ी है बिहार के नवादा जिला के नारदीगंज प्रखंड सूर्य मंदिर की गाथा

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– पूरी होती है भक्तों की मनोवांछित मुरादें

नवादा : जिले की पौराणिक व ऐतिहासिक सूर्य मंदिरों में शुमार है नारदीगंज प्रखंड क्षेत्र के हंडिया गांव स्थित सूर्य नारायण मंदिर की गाथा। द्वापर काल से इसकी गाथा चलती आ रही है। लेकिन इतिहासकार व पुरातत्व की निगाहों से ओझल होने के साथ शासन प्रशासन से भी उपेक्षित है।

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सरकार व प्रशासन इसकी जितनी अनदेखी कर ले लेकिन श्रद्धालुओं की आस्था कम होने के बजाय दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं, सूर्य उपासना को लेकर श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना करने आते हैं। सच्चे मन से मांगी गयी मुरादें भास्कर पूरी करते हैं।

माना जाता है कि कोई भी याचक खाली हाथ वापस नहीं लौटता । उनकी मनोवांछित मुरादें पूरी होती है। द्वापरकालीन मंदिर इस लिए माना जाता है कि द्वापर युग में मगध सम्राट जरासंध का इन सभी क्षेत्रों में साम्राज्य रहा है। जरासंध की राजधानी राजगीर थी। वहां से दक्षिण बोधगया राजमार्ग नारदीगंज सड़क से पश्चिम तीन किलोमीटर दूरी पर हंडिया गांव स्थित है।

जहां भास्कर विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि जरासंध की पुत्री धन्यावती अपने आराध्य देव भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के लिए धनियावां पहाड़ स्थित मंदिर में इसी मार्ग से प्रतिदिन जाया करती थी। सूर्य मंदिर के आगे तालाब में स्नान कर भगवान सूर्य की पूजा-अर्चना करती थी। मान्यता है कि मंदिर के निकट स्थित सरोवर में स्नान के उपरांत भगवान सूर्य की पूजा अर्चना करने से चर्म रोग से छुटकारा मिलता है। कुष्ठ व्याधि समेत अन्य रोगों से मुक्ति मिलती है। शरीर रोगों से मुक्त हो जाता है।

प्रत्येक रविवार को पूजा अर्चना करने के लिए यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। श्रद्धालु रविवार को नमक वर्जित रखते हैं। सूर्य उपासना करते हैं। मन्नतें पूरी होने पर बच्चों का मुंडन संस्कार भी कराते हैं। इतना ही नहीं चुनाव के समय उम्मीदवार भास्कर के चौखट पर माथा टेकना नहीं भूलते हैं। कार्तिक में श्रद्धालुओं की भीड़ और बढ़ जाती है। चैती व कार्तिक छठ में हजारों की संख्या में छठ व्रती यहां आते हैं। आसपास के क्षेत्र से ही नहीं दूसरे जिले व दूसरे राज्यों से भी छठ व्रती सूर्य उपासना के लिए यहां आते हैं। नहाय खाय से लेकर अर्घ्य दान तक श्रद्धालु अपना समय मंदिर परिसर में ही गुजारते हैं। आस पास के श्रद्धालु के अलावा दूर दराज के लोग भी यहां पहुंचते हैं। इसके साथ ही विभिन्न तरह के स्टॉल लगा कर पूजा सामग्री बेची जाती है।

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