मातृत्व कानून के होने के बावजूद प्रवासी मज़दूर महिलाओं को विशेष राहत नहीं मिला: अंजना मिश्रा

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प्रवासी मज़दूर महिलाओं की समस्याओ पर पीयू में विमर्श

पटना: कोरोना संक्रमण के दौर में प्रवासी मज़दूर अनेक प्रकार के कष्ट झेलने को विवश हैं। उनपर पूरे समाज, मीडिया और देश की नज़र है। सरकारें उनके कष्ट निवारण के अपने अपने स्तर पर यथासंभव प्रयास कर रही हैं। लेकिन, इस बीच प्रवासी मज़दूरों के परिवार की महिलाओं और प्रवासी मज़दूर महिलाओं की समस्याओं पर किसी का विशेष ध्यान नहीं गया।

ये उस वर्ग की समस्या है जो सदा हाशिये पर रही है। ऐसी समस्याएं चर्चाओं से हमेशा अदृश्य रही हैं। रविवार को पटना विश्वविद्यालय के यूजीसी वीमेंस स्टडीज सेंटर और पीजी डिपार्टमेंट ऑफ लॉ के संयुक्त तत्वावधान में संवाद सीरीज के अंतर्गत आयोजित वेबिनार में इस विषय पर गम्भीर विमर्श हुआ।

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पटना उच्च न्यायालय की रिटायर जज अंजना मिश्रा ने इस विमर्श में मुख्य वक्ता के तौर पर कहा कि यह विडंबना है कि अंतरराष्ट्रीय विधानों, संवैधानिक अधिकारों और विशेषकर 1961 के मातृत्व कानून के होने के बावजूद ऐसी महिलाओं को कोई विशेष राहत नहीं मिल सकी।

राष्ट्रीय महिला आयोग की लीगल एक्सपर्ट और आयोजन की वक्ता पलक जैन ने अनौपचारिक क्षेत्र के महिला कामगारों की समस्या और कानूनी अधिकारों पर विशेष बल दिया। इतिहासकार पद्मश्री उषा किरण ने अपने राज्य में रोजगार और असंगठित कामगारों के अनिवार्य पंजीकरण की बात रखी।

बीआईटी मेशरा की पूर्व प्रमुख डॉक्टर मंजू भगत ने इस दिशा में स्वयं सहायता समूहों और अन्य लोगों को सहयोग करने का आह्वान किया। वहीं महिला यूजीसी महिला अध्ययन केंद्र की अध्यक्ष प्रोफेसर सुनीता राय ने बताया कि महिला श्रमिकों के श्रम के बिना राष्ट्र निर्माण की कल्पना भी असम्भव है।

इस अवसर पर पीजी डिपार्टमेंट ऑफ लॉ के विभागाध्यक्ष डॉक्टर सलीम जावेद ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन गुरु प्रकाश व डॉक्टर राकेश रंजन ने किया।

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