हिंदुओं को क्रिमिनल क्यों बता रहे रेरा अध्यक्ष अमानुल्लाह? इस जिहाद से कैसे निपटेंगे नीतीश!
पटना : बिहार सरकार की संस्था रेरा के अध्यक्ष और पूर्व गृहसचिव आईएएस अफसर अफजल अमानुल्लाह इन दिनों सोशल मीडिया में अपनी हेट क्राइम की स्पीच को लेकर चर्चा में हैं। आईएएस की नौकरी के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पसंदीदा अफसर रहे और आज भी उनकी कृपा से बिहार रेरा के अध्यक्ष पद पर सुशोभित श्री अमानुल्लाह की हेट क्राइम में क्रिमिनल कोई और नहीं, बल्कि बहुसंख्यक हिंदू कम्यूनिटी है, जबकि इसमें पीड़ित पक्ष को वे खुलेआम मुस्लिम अल्पसंख्यक बताते हैं। लेकिन ऐसा करने में वे अपनी मौलिक सामुदायिक कट्टरता को छिपा नहीं पाते। अब चूंकि वे बिहार सरकार की तरफ से रेरा अध्यक्ष के पद पर आसीन हैं, तब यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या उनके तर्क बिहार सरकार की इस मामले में संवैधानिक सोच से मेल खाते हैं या नहीं?
सोशल मीडिया पर रिटायर्ड आइएएस की हेट क्राइम स्पीच से बवाल
बिहार सरकार में गृहसचिव रहे अफजल अमानुल्लाह एक आईएएस होने के साथ ही एक और बड़ी उपलब्धि अपने साथ रखते हैं। वह है उनका अल्पसंख्यक होना। भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में उनकी दूसरी हैसियत समाजवादी सरकारों को काफी सूट करती है। इसका मूल कारण अल्पसंख्यक वोटबैंक है। यही कारण है कि अपनी नौकरी के दौरान श्री अमानुल्लाह सदैव बिहार कैडर में अच्छी पोस्टिंग पाने वालों में सबसे खुशनसीब अफसर रहे। ऐसे में वर्तमान में सोशल मीडिया में उनका नया अवतार और उसके एजेंडे को लेकर बहस उठनी स्वाभाविक है कि वह कितनी सही और कितनी असंवैधानिक है। इसे लेकर बिहार के जनमानस का एक बड़ा हिस्सा सशंकित है कि अमानुल्लाह की हेट क्राइम की स्पीच धार्मिक समानता की संवैधानिक मर्यादाओं की कसौटी को कपट वाली चतुराई से छलने की कोशिश तो नहीं। साफ कहें तो क्या यह अपनी सांप्रदायिक सोच को जायज ठहराने के लिए पीड़ित बन इसे कानूनसम्मत बताने का जिहादी एजेंडा नहीं है?
अपने वीडियों में क्या कहते हैं पूर्व गृह सचिव अमानुल्लाह
आइए एक नजर डालते हैं कि अफजल अमानुल्लाह सोशल मीडिया पर कर क्या रहे हैं। बिहार में कई अहम ओहदों पर काम कर चुके अमानुल्लाह इन दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से इंकलाब का आह्वान कर रहे है। आईएएस की नौकरी से रिटायर होने के बाद अमानुल्लाह साहब गोल-गोल घुमावदार बातें कर मुसलमानों पर कथित अत्याचार के विरोध में आवाज उठा रहे हैं। बहुसंख्यकों द्वारा अल्पसंख्यकों पर कथित अत्याचार की बातें करते हुए वे राजनीति के क्षेत्र में प्रचलित विक्टिम सिंड्रोम का कार्ड बड़ी होशियारी से चल रहे हैं। फेसबुक पर चल रहे उनके विडियो चर्चा में हैं। उनके समर्थक फोन करके उनका विडियो देखने का आग्रह कर रहे हैं।
राम मंदिर विरोधी पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते हैं रेरा अध्यक्ष
स्पष्ट है कि सोशल मीडिया पर श्री अमानुल्लाह किसी खास ऐजेंडे पर काम करते दिख रहे हैं। उनका लक्ष्य क्या है इसके बारे में बहुत कुछ अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन, उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि से उनके लक्ष्य के बारे में सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। उनकी पत्नी प्रवीण अमानुल्लाह नीतीश सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। उनके ससुर सैयद सहाबुद्दीन बाबरी मस्जिद के लिए कानूनी व राजनीतिक लडाई लड़ने वाले चर्चित नौकरशाह और राजनीतिज्ञ थे। आईएसएस की नौकरी से रिटायर होने के बाद अमानुल्लाह को वर्तमान में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रेरा के अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठा दिया है।
बात हिंदू—मूस्लिम एकता की, लेकिन जिहादी सोच के साथ
अपने वीडियो में अमानुल्लाह हिंदू—मुसलिम एकता की बात करते—करते अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यकों के अत्याचार की बात करने लगते हैं। इसमें वे धर्म आधारित भारत की जनसांख्यिकी की चर्चा करते हुए वे कई गलत डाटा व तथ्य बड़ी ढिठाई से प्रस्तुत करते हैं। विडियो में वे बताते हैं—’लोग कहते हैं कि पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या अब कम हो गयी है। जबकि आजादी व बंटवारे के समय जो संख्या थी, वहीं संख्या आज भी है’।
आंकड़ों और रिपोर्टों को दरकिनार कर विक्टिम दिखने की कोशिश
साफ है कि अपने वीडियो में श्री अमानुल्लाह राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय संस्थाओं के आंकड़े व रिपोर्ट को दरकिनार कर सफेद झूठ बोलने से परहेज नहीं करते। उनके वीडियो में दिये बयान से यह साफ हो जाता है कि वे भारत के नागरिकों को नहीं, बल्कि एक खास धार्मिक समूह विशेष जिससे वे आते हैं, उसे सम्बोधित कर रहे हैं। इससे उनके नैसर्गिक उद्देश्यों और इन्टेंशन का भी पता चल जाता है। तथ्यों को छिपाकर या उसे तोड़—मरोड़कर एक पूर्व आईएएस अधिकारी कुछ कहता है तो उसे कानून की दृष्टि से अपराध है। लेकिन यहां अमानुल्लाह हेट क्राइम की बात करते-करते खुद उसी रास्ते पर चलते दिख रहे हैं। भारत में जहां धार्मिक और अन्य आधारों पर कानून की नजरों में सभी समान होते हैं, वहां एक पूर्व आईएएस अधिकारी खुलेआम सोशल मीडिया पर कानून का मजाक बनाने पर तुल जाए तो इससे उसके मौजूदा और पूर्व के कार्यकालों में किये अहम फैसलों पर शक होना वाजिब बनता है।