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संकट में चंपारण का मलाही दही

बिहार सरकार का प्रयास है कि देश की थाली में हमारे राज्य का एक व्यंजन अवश्य हो। हमारे प्रदेश में स्थानीय स्तर पर बहुत से ऐसे व्यंजन हैं जिनमें देश-विदेश के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता है। लेकिन आधुनिकता के अंधाधुंध अनुकरण वाले इस नये दौर में संरक्षण व प्रचार-प्रसार की कमी के कारण ऐसे व्यंजन भी परंपराओं एवं जीवनशैली पुराने ढंगों की तरह विलुप्त होते जा रहे हैं। चंपारण का मलाही दही ऐसा ही एक व्यंजन है जिसका अस्तित्व संकट में है।

मिट्टी के बरतन का उपयोग

नारायणी नदी के जल से सिंचित क्षेत्र मे मलाही नामक स्थान पर एक विशेष प्रकार का दही बनाया जाता है। यह ऐसा दही है जो छेना और खोए की तरह ठोस होता है। और स्वाद में समान्य दही से बिल्कुल भिन्न। मिट्टी के वर्तन में विशेष तरीके से जमाए जाने वाले इस दही की ख्याति मुगल दरबार तक फैली थी। कोलकता के धनी व्यापारी भी इसके प्रशंसक थे। बदले जमाने में यह दही अब संकट में है। इस क्षेत्र के दुग्ध उत्पादक किसान अब इसे नहीं बनाते क्यों कि स्थानीय स्तर पर उन्हें इसकी कीमत नहीं मिल पाती है। अंग्रेजों के शासन में जमींदा

चंपारण में मलाही दही की बिक्री

र इस दही के खरीददार थे। वहीं चंपारण के लोग कोलकाता में धनी लोगों तक यह दही पहुंचा कर अच्छा पैसा कमाते थे।

पखवारे भर नहीं होता खराब

यह दही पंद्रह दिनों तक खराब नहीं होंता है। जमाना बदलने के साथ इस दही की ब्रांडिग नहीं की गयी जिसके कारण इस दही का अस्तित्व संकट में है। चंपारण में पहले इस दही का उत्पादन लगभग सभी किसानों के घर में होता था। लेकिन, अब बहुत खोजने के बाद इसके उत्पादक मिलते हैं। इस व्यवसाय पर मलाही सहित मंझरिया,चटिया, बडहरवा, सोंनवल सहित कई गांवों के सैकड़ो परिवार आश्रित रहकर पीढ़ी दर पीढ़ी से इसे करते आ रहे हैं।

मुगल व अंग्रेज भी थे दीवाने

दही विक्रेताओं नागा यादव, चन्देश्वर यादव, अमेरिका यादव, सोनालाल प्रसाद जैसे किसान कहते हैं कि पूर्वजों के समय से ही हम सुनते देखते आ रहे हैं कि यहां के बाजार में अंग्रेज लोग जब विलायत से आते तो इस दही की मांग होती थी। इस दही के स्वाद की चर्चा इंगलैंड में होती थी। मुगल काल में भी इस दही की काफी ख्याति थी। अब भी पटना, मुजफ्फरपुर, बेतिया, मोतिहारी सहित कई जगहों से जब भी लोग इस तरफ आते हैं तो इस बाजार में आकर दहीं की हांडी लेना नहीं भूलते हैं। अरेराज पशु चिकित्सक अवधेश कुमार के अनुसार समग्र गव्य विकास योजना के तहत पशुपालन को बढावा देने के लिए सरकार के तरफ से ऋण की व्यवस्था है। साथ ही उक्त गांव में टीम समय समय पर जाकर पशुओं को दवा टीका आदि मुहैया कराती रहती है।

रूपेश राज