गोगोई ने क्या कहा कि झेंप गए शेम-शेम करने वाले, जानिए कब कांग्रेस ने कार्यकर्त्ता को बनाया था जज

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पटना : सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई ने गुरुवार को राज्यसभा सांसद के तौर पर शपथ ली। जब वह सदन में शपथ ले रहे थे, तब कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों के नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला, अभिषेक मनु सिंघवी , कपिल सिब्बल, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने हंगामा किया। हंगामा करने वाले और ‘शेम-शेम’ का नारा लगाने वाले को रंजन गोगोई ने जवाब देते हुए कहा कि वो लोग जल्द ही मेरा स्वागत करेंगे, वहां पर कोई भी आलोचक नहीं है। गोगोई के इस आत्मविश्वास को देखकर वहां शेम-शेम करने वाले कुछ सांसद झेंप गए।

ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए नामित किया गया है। केंद्र सरकार की ओर से सोमवार देर शाम जारी किए गए नोटिफिकेशन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पूर्व सीजेआई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया था। पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई को राज्यसभा भेजे जाने की खबर के बाद से ही राजनीतिक गलियारों में उथल-पुथल सी मची हुई है।

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पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई का 13 महीने का कार्यकाल कई दृष्टि से ऐतिहासिक रहा। 3 अक्टूबर 2018 को उन्होंने भारत के 46वें चीफ जस्टिस का पदभार ग्रहण किया था। गोगोई 17 नवंबर 2019 को रिटायर हुए थे। उन्होंने 9 नवंबर 2019 को राम मंदिर पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था।

रंगनाथ मिश्रा

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए नामित किए जाने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने अत्यंत तल्ख शब्दों में कहा कि गोगोई ईमानदारी से समझौता करने के लिए याद किए जाएंगे। सिब्बल एक बड़े अधिवक्ता माने जाते हैं। कपिल सिब्बल के इस प्रकार की ट्प्पिणी वाले ट्विट के बाद सोशल मीडिया पर उनसे प्रश्नों की झडी लग गयी। न्यायमूर्ति बहरूल इस्लाम से लेकर न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा तक की बातें शुरू हो गयी।

कांग्रेस ने बहरूल इस्लाम को इनाम स्वरूप राज्यसभा भेजा

बहरूल इस्लाम 

वस्तुतः इंदिरा गांधी ने 1983 में सुप्रीम कोर्ट के जज बहरूल इस्लाम को इनाम स्वरूप राज्य सभा भेजा था। बहरूल इस्लाम ने एक कांग्रेसी मुख्यमंत्री पर एक बैंक घोटाले में मुकदमा चलाने से रोक दिया था। जबकि, उस मुख्यमंत्री के खिलाफ गवाह भी उपलब्ध था और कागजी सबूत भी। यदि उस बैंक घोटाले में उस शीर्ष नेता को सजा हो गई होती तो बाद के वर्षों में जो बड़े पैमाने पर घोटाले हुए, वे शायद नहीं होते।

आज मंदिर-मस्जिद को लेकर देश में कोई तनाव नहीं

दूसरी ओर, यह कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगई ने लंबे समय से चल रहे राम मंदिर विवाद में जो निर्णय दिया, उसके इनाम स्वरूप उन्हें राज्यसभा में मनोनीत किया गया। यदि इसे मान भी लिया जाए तो रंजन गोगई ने देश हित में ही तो काम किया था। उनका यह निर्णय देश में शांति स्थापना के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। उससे पहले के सैकड़ों सालों में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर दोनों पक्षों के हजारों लोगों की जानें जा चुकी थीं। न्यायपलिका पर से लोगों का विश्वास उठता जा रहा था।

वैसे भी संविधान के अनुच्छेद-142 में मिले अधिकार का उपयोग करते हुए ही सबसे बड़ी अदालत ने राम मंदिर पर निर्णय दिया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा कराए गए खुदाई में मिले सक्ष्य की रिपोर्ट से भी पता चला कि अयोध्या में वह विवादित स्थल पूर्व में मंदिर ही था।

राफेल मामले में रंजन गोगोई के रुख को लेकर सवाल उठाने का प्रयास किया जा रहा है जबकि कोर्ट के समक्ष उस मामले में घोटाला का कोई सबूत ही नहीं उपलब्ध कराया गया था। उल्टे कांग्रेस के नेताओं पर ही देश की सुरक्षा को लेकर गैर जिम्मेदार रवैया अपनाने की बात सामने आयी थी। यहां तक कि उस संबंध में कपिल सिब्बल ने कहा था कि राफेल सौदे को लेकर यदि मुझे कोई सबूत हाथ लगेगा तो मैं पीआईएल जरुर दाखिल कर दूंगा। सिब्बल साहब को आज तक कोई सबूत नहीं मिला।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई साहब जब चार न्यायाधीश के साथ व्यवस्था के विरूद्ध प्रेस कान्फ्रेंस में सामने आए तो कांग्रेस व उनके सहयोगी दल के लोगों को अच्छा लगा। वहीं राफेल और राम मंदिर मामले में फैसला उनके मनोनुकूल नहीं हुआ तो वहीं लोग उनकी ईमानदारी पर प्रश्न उठाने लगे हैं। यह संकुचित दृष्टि है जिससे देश का अहित होगा।

बर्षों से राममंदिर के नाम पर देश को जलने का पटाक्षेप करके इन्होने देश को एक अंतहीन विवाद से छुटकारा दिलाया। इसके लिए वे सदा याद किए जाते रहेंगे। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश के कार्यालय को भी न्यायमूर्ति गोगोई ने आरटीआई के दायरा में ला दिया। न्याय के कुछ ठेकेदार इसे क्रांतिकारी कदम मानने में अपनी तौहिन समझेंगे।

राज्यसभा में ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर राज्यसभा मे 12 सदस्य नामांकित होते है। अपेक्षा की जाती है कि विभिन्न क्षेत्र की ऐसी हस्तियों को मनोनीत किया जाए जो देश को मार्गदर्शन दे सकें। ऐसे अनेक लोग होते है जो चुनाव के दलदल मे नहीं जाना चाहते है।

सकारात्मक चिंतन वाले इस मुख्य न्यायधीश के अनुभव, चिंतन, ज्ञान का उपयोग राष्ट्रहित में हो इसके लिए इनका राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा मनोनयन सराहनीय कार्य साबित हो सकते हैं।

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