गांधी के विचार और मानवाधिकार की अवधारणा एक : प्रो. आचार्य

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पटना : समाज के लिए किए जाने वाला हर अच्छा काम मानवाधिकार के अंतर्गत आता है। पूरे मानव जाति की भलाई और बेहतरी के लिए व्यवस्थित तरीके से किए जानेवाले काम भी मानवाधिकार के अंतर्गत आते हैं। मानवाधिकार आयोग की सदस्य श्रीमती ज्योति कालरा ने पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट में मानवाधिकार पर आयोजित एक कार्यक्रम में उक्त बातें कही। मानवाधिकार आयोग के रजत जयंती समारोह पर पटना के एएन सिन्हा इंस्टिट्यूट में राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘गांधी सत्याग्रह और मानवाधिकार’ विषय पर आयोजित की गयी थी।
इस अवसर पर श्रीमती कालरा ने कहा कि ऊंच-नीच की भावना और गैर-बराबरी से सारी समस्या उत्पन्न होती है। अफसोस कि बात है कि आज समाज में ये हो रहा है। गांधी के विचार और मानवाधिकार में कोई अंतर नहीं है। गांधी के विचार पूरे समाज के लिए थे, मानवता और मानव जाति के लिए थे। इसलिए गांधी के विचार और मानवाधिकार से जुड़े सारे मुद्दे एक हैं।
प्रसिद्ध गांधीवादी और विचारक प्रो. नंद किशोर आचार्य ने कहा कि गांधीवाद कोई वाद नहीं है। सत्य को तलाशने की पद्धति है। उनके द्वारा किया गया सत्याग्रह केवल विरोध की भावना तक सीमित नहीं था, बल्कि उससे परे था। मानवाधिकार को समझने का सबसे आसान तरीका उसकी प्रस्तावना को जानना है। जैसे संविधान को समझने के लिए प्रस्तावना को समझना जरूरी है। उन्होंने कहा कि प्रियम्बल में लिखी बाते संविधान की आत्मा होती है, उसमें कही बातों को हर हाल में फॉलो करना होता है। और अगर आप उसे नहीं मानते तो आप संविधान को भी नहीं मानते। मानवाधिकार के प्रियम्बल में समूचे मानव जाति को एक समान माना गया है। और आप कहीं से भी उसका उलंघन करते हैं तो आप मानवाधिकार का उलंघन करते हैं। आमतौर पर लोग मारपीट को हिंसा मानते हैं, लेकिन गांधी कहीं इससे भी आगे जाकर सोचते थे। उनकी नजर में किसी तरह का शोषण, किसी तरह की ठगी या कोई भी ऐसा काम जिससे मनुष्यता को ठेस लगती हो मानवाधिकार का उलंघन है। क्योंकि जब आप किसी के साथ हिंसा करते हैं तो आप सिर्फ उसके साथ हिंसा नहीं करते, बल्कि खुद के साथ भी हिंसा करते हैं। यही मनुष्य की आत्मसिद्धि में सबसे बड़ी बाधक है। यही गांधी का विचार है। यही सत्याग्रह है। यही गांधी का विचार है। किसी तरह का आघात किसी पर भी हो, वो मानवाधिकार का उलंघन है। आजकल तो मानवाधिकार भी अलग- अलग हो गए हैं। स्त्रियों के मानवाधिकार, मज़दूरों के मानवाधिकार, राजनीतिज्ञों के मानवाधिकार, और न जाने कौन-कौन से मानवाधिकार। एक को अधिकार दिलाने के लिए दूसरे के अधिकार का हनन नहीं कर सकते हैं। एक को न्याय दिलाने के लिए दूसरे के साथ अन्याय नहीं किया जा सकता है।
मानस दुबे

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