दूरदर्शन में दो दशकों से प्रमोशन नहीं, पेक्स कर्मियों में रोष

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लोक प्रसारक दूरदर्शन और अकाशवाणी प्रसार भारती बोर्ड का एक अभिन्न अंग है। सबसे पहले केंद्रीय सरकार की सारी उद्देश्यों एवं योजनाओं के प्रचार-प्रसार की जिम्मेवारी आकाशवाणी की रही है। लेकिन, सन् 1969 में दूरदर्शन के आगमन के पश्चात् केन्द्र सरकार के प्रचार-प्रसार की सारी जिम्मेदारियां धीरे-धीरे दूरदर्शन के कार्यक्रम अधिकारियों पर आ गई। किसी समय में दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले सीरियल ‘हमलोग’, ‘महाभारत’ और ‘रामायण’ ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध करते रहा। लेकिन, जब से आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी का दूरदर्शन में ट्रांसफर किया गया, तब से दूरदर्शन की गुणवत्ता धीरे-धीरे कम होने लगी, क्योंकि आकाशवाणी में सिर्फ आडियों का क्वालिटी देखा जाता है, जबकि दूरदर्शन में आडियो एवं विजुअल दोनों की गुणवत्ता देखी जाती है। साथ ही साथ कैमरा के फ्रेम व शाॅट आदि का ज्ञान, लाईटिंग, भेष-भूषा, प्रस्तुति पर ध्यान दिया जाता है। इन सारी विद्याओं का अभाव आकाशवाणी में काम करनेवाले कार्यक्रम कर्मचारी एवं पदाधिकारीयों में होता है। इसके कारण दूरदर्शन की गुणवत्ता धीरे-धीरे कम होती गई।
दूसरा कारण यह रहा है कि प्रोडक्शन यूनिट में प्रोडक्शन अस्टिेंट की भूमिका अहम् होती है। यह प्रोडक्शन का बैक-बोन कहा जाता है। दूरदर्शन में काम करने वाले प्रोडक्शन अस्टिेंटों की पदोन्नति लगभग 28 सालों से नहीं हुआ है। पूर्व दूरदर्शन महानिदेशक त्रिपुरारी शरण के समय में कुछ लोगों का पदोन्नति पेक्स (इन-सीटू) में कर दिया गया। बाकि को ज्यों का त्यों छोड़ दिया गया। इनसे काम पेक्स का लिया जाता है, जबकि सैलरी प्रोडक्शन अस्टिेंट का मिलता है। फिर भी ये सारे कार्यक्रम अधिकाशी कुंठित मन से अपने कार्यों का निपटारा करते आ रहे हैं। ऐसी विषम परस्थिति में भारत के सभी केन्द्रो पर दो-तीन ही रेगुलर पेक्स हैं, जबकि बाकि सारे कार्य पेक्स (इन-सीटू) कर रहे हैं।
दूसरी ओर दूरदर्शन में काम करने वाले ट्रांसमिशन एक्जेक्युटिव, जिनका कार्य दूरदर्शन के कार्यक्रमों का टीवी देखकर सिर्फ मॉनिटरिंग करना है। ट्रांसमिशन एक्जेक्युटिव का सन् 1992 बैच से लेकर 2003 तक का प्रोमोशन PEX (REGULAR) में कर दिया गया है, जबकि उनके पास प्रोडक्शन का कोई अनुभव ही नहीं रहा है।
प्रोडक्शन विभाग में कार्य करने वाले प्रोडक्शन असिस्टेंट एवं पेक्स (इन-सीटू) का प्रोमोशन सन् दो दशकों से नहीं हो सका है। ऐसी स्थिति में कार्यक्रम अनुभाग में काम करने वाले production assistant में काफी रोष व्याप्त है। इन लोगों ने अपनीे मांगो के संबंध में आवेदन पिछले दिनों E-mail के द्वारा प्रसार भारती के सी.ई.ओ., दूरदर्शन महानिदेशक, सचिव सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय एवं आकाशवाणी के महानिदेशक को भेजा। लेकिन, फिर भी न जाने क्यों इन लोगों का प्रामोशन विगत 28 सालों से लंबित पड़ा है, जबकि दूसरी ओर प्रोग्राम स्टाफ एसोसिस्टन (PSA) के तहत TREXME कैडर का प्रोमोशन लगातार होते जा रहा है और प्रोडक्शन अस्सिटेंट का नहीं। प्रोडक्शन अस्सिटेंट एवं PEX (In-SITU) अपनी संगठन ADP-3 के तहत अपनी मांगो के पूर्वी के लिए लगातार संघर्षरत है। लेकिन, PSA संगठन वाले अदालत में अजूल-फिजूल केस डालकर इनलोगों का प्रोमोशन से वंचित करते हैं। इस संगठन के नेता बीसो साल से नई दिल्ली कार्यालय में पद स्थापित हैं और अपने प्रभाव द्वारा जोड़-तोड़ कर अपने हिसाव से कार्य करवाते रहे हैं।
दूरदर्शन के विश्वसनीय सूत्रों की मानें, तो दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के इंजिनियरिंग यानि अभियांत्रिक संवर्ग में नियमित अंतराल पर नियुक्तियों एवं पदोन्नतियों होती गयी इसके चलते 70 प्रतिशत कर्मचारी अभियोजिन संवर्ग में पदोन्नति का अभाव है तो दूसरी ओर इंजीनियरिंग संवर्ग के आगे उनकी वरिष्ठता तो कहीं टिकती ही नहीं, उनकी मेरिट की उपेक्षा कर कई निर्णायक शीर्ष पदो पर इंजिनियर बैठा दिये जा रहे है, जबकि न वे केवल कार्यक्रमो के निर्माण की बारिकायों का अनुभव है और न उनके स्तर से ही न्याय कर सकते है। स्थिति तो यह हो गयी है कि एक दूरदर्शन केन्द्र पर तीन निदेशक होते हैं। एक कार्यक्रम का, दूसरा इंजीनियरिंग का और तीसरा न्यूज का और तीनों में जिसका वेतनमान ज्यादा होगा, वही केन्द्र का प्रमुख होगा।
सरकार के इस प्रसारण संस्था में लंबे समय से जुड़े लोगों का कहना है कि प्रसार भारती अपने अस्तित्व में आने से पहले के नियमों को ही हरी झंडी दिखा देता तो भी ऐसी स्थिति पैदा नहीं होती, क्योंकि तब अराज पत्रित अधिकारी आठ साल की सेवा के बाद पदोन्नति के लिए अर्हता हो जाया करते और राजपत्रित अधिकारी तीन साल की सेवा के बाद, पांच साल बाद उन्हें सेलेक्शन ग्रेड मिल जाया करता और उनका वेतन भारत सरकार के डिप्टी सेकेटरी के बराबर हो जाता, उसी हिसाब से उनका प्रोटोकाॅल भी बढ़ता और कार्यकुशलता भी।
दूरदर्शन के लिए सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि दूरदर्शन का अलग महानिदेशक, उप महानिदेशक है फिर भी यहां काम करने वाले अराजपत्रित कर्मचारियों एवं राजपत्रित पदाधिकारियों को कैडर का नियंत्रण आकाशवाणी करता है ऐसा क्यों? जबकि दूरदर्शन के पास सारी व्यवस्थाएं एवं आर्हताएं मौजूद है। इन कारणों से दूरदर्शन में काम करनेवाले प्रोग्राम पदाधिकारीयों में काफी रोष व्याप्त है। इसे दूर करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि प्रसारण की सरकारी व्यवस्था सुचारू चल पाए।

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